पूरी सुशीलता के साथ ऐसा बयान की छत्तीसगढ़िया आनन्दित हों जाए, कांग्रेस के संचार प्रमुख ने कहा की भाजपा सरकार नौकरियों का व्यापार कर रही है, प्रदेश में वन एवं पुलिस की भर्तियों में बोलियां लग रही, सविस्तार उन्होंने इन भर्तियों कों घपला बताया, इन आरोपों के साथ उन्होंने अपनें तथ्य भी रखे, सत्यता इसमें कितनी है, ये तों नही पता ,बयान आरोपों का संग्रह है ,सिर्फ दो विभागों तक सीमित है, पर संचार प्रमुख ने विपक्ष के दायित्व कों निभाने की कोशिश की, वरना नेता प्रतिपक्ष ,प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और पूरी कांग्रेस मौन है। नौकरी की भर्ती में घोटाले नही होने चाहिए ,विपक्ष कों इसके लिए पुरे दंभ खंभ से आवाज उठानी चाहिए, वरना सरकार स्वेच्छाचारी, जनहित से विमुख हो जाती है ,संचार के इस युग में संचार प्रमुख कांग्रेस का बयान कितना संचारित और असरदार हुआ ये वक्त बतायेगा। कांग्रेस कों सबूतों के साथ सड़क पे उतरना चाहिए ,जन आंदोलन खड़ा करना चाहिए,कांग्रेसी विधायकों में नारे लगाने का दम है ,धरना देने का माद्दा है,विधानसभा परिसर में अभी- अभी हमने देखा है ,जोश यदि विधानसभा परिसर वाला मुद्दे का था, तों ये मुद्दा उससे बड़ा है, छत्तीसगढ़ियों के भविष्य से जुड़ा है ,आरोंप लगाकर कर्तव्यों की इतिश्री ना हो, पर अभी तक कांग्रेस मौन है ,संदेह है उसे, उलटबासी का डर है, इतिहास के पन्नों के खुलने का ,पुराने घपले घोटालों की जांच चल रही,पूर्व मंत्री ,विधायक उसकी आंच में झुलस रहे, जेल की हवा खा रहे, कई अधिकारी व्यापारियों का भी यही हाल है, कइयों कों अपनी बारी का इंतजार है ,इस परिस्थिति में भी ये बयान राजनितिक सुचिता का करती है बखान, पर बयान पे भी कुछ सवाल है ,राजनितिक बवाल के आसार है ,आरोपों सहित खेड़ा खदेड़ दी गई कांग्रेस से क्यों काहे किसी कों पता नही आहे ?वनरक्षकों की भर्ती में यदि घोटाला हुआ तों वन विभाग का आलाअधिकारी कौन है ? और उसे किसने ये पद दिया ? कितनों की वरिष्ठता ताक पर रखकर उनके माथे पर तिलक क्यों किया?
कैट पे याचिकाए उनकी पदोन्नति के खिलाफ कैसे लगी क्या उनका इतिहास पता नही था आरा मिल प्रकरण घोटाला में बचते -बचते आज वों वन विभाग के प्रमुख बनाए गए उनकों ये उच्चतम स्थान पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार ने ही दिया ,जिनके हाथ रंगे हो भर्ष्टाचार से, काले कारनामों की कड़िया बेड़िया नही पदवियां दिला दे, तों फिर ऐसे विभाग प्रमुख के रहते यही होना था ,सत्ताबदल गई व्यवस्था वैसी ही रही। पुलिस भर्ती में भी आरोंप है ,हैदराबाद की निजी कंपनी पर सवाल ही सवाल है,शारीरिक मापदंड से पहले आर्थिक मापदंड मापे गए ये बयान है , निजी लोग, निजी कंपनी हमेशा निजता पा जाती है ,सरकार उन्हें राजदार बनाती रही है, ये पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार पर भी नख से सिर तक लागु होता है, सरकार का यही कारोबार था रेत,शराब ,चावल ,PSC,राजीव मितान ,गोबर ,महादेव ये सतरंगी घोटालों के रंग से पूरी कांग्रेस सरकार सारोबार थी, फिर भी आपका भर्ष्टाचार से है सरोकार अच्छा ,डिप्टी कलेक्टर ,DSP से लेकर PSC के हर पदों की बंदर बाँट हुई, अध्यक्ष सोनवानी आरोपों की फेहरिस्त के साथ कहा है,अपनों कों क्या बनाने चले थे ,क्या बना दिया, खुद के साथ उनकों भी जेल बुला लिया, तब क्यों वाणी खामोश थी ? तब क्या संचार के तार बेतार से नही जुड़े थे ?या फिर कानों में घोटाले वाली कागज की रुइयां थी या फिर आका के फरमान की मजबूरियां थी ? या फिर कका कों बड़े भर्ष्टाचार की छुट थी? भतीजों की भी मौज और लुट थी ,राजपत्रित अधिकारियों से कर्मचारियों के भर्ती में तब भी घोटाले हुए तब क्यों मौन व्रत, या फिर ऐसी ही परम्परा आपकी पुरानी है, सिपाही अंदर, अधिकारी करे सब अंदर, फिर भी काटे मौज या फिर नेतृत्व कर्ता की भर्ष्टाचार में पारंगता कों ही आप गुण समझते है?
लगता है भूल गए ,जिस सीबीआई कों आपनें ही बैन किया था, उसमें आप चैन ढूंढ रहे ,जिनकों{ CBI }छत्तीसगढ़ की धरती में पांव रखने की मनाही थी, उनसे अपराधियों के पांवो के निशान ढूंढवाने की आपकी वकालत ,सब है सही सलामत ? क्या जागा है विश्वास आपका सीबीआई पर, या कही और है आपकी आई ,जों एजेंसी कल तक आपके नजरों में जाँच के लायक नही थी ,वों जाँच सांच आंच के लायक लगने लगी ,अवैध -वैध में फर्क कैसे करें आपकी बातों का मतलब क्या समझें ,चिंता छत्तीसगढ़ीयों के भविष्य की है या अपने भविष्य की ,पक्ष से विपक्ष में जाते ही नजरिया बदल गया, ये सारोकार उस सरकार में भी रखते, अपनी सरकार कों दबंगता की जगह सुशीलता सिखाई होती ,तों आज भी आप आनंद में रहते, नपने दो मापदंड दोहरे ,ये ब्रम्हज्ञान पाने के लिए सत्ता से बेदखली क्या जरुरी थी ? सत्ता के गुरुर में सुरूर चढ़ गया था ,हर दिन सावन ,सब हरा ,बस रहा पांच साला आरोपों की झड़ी नही सबूतों की झड़ी लगाईए ,कुछ ना हो तों जन आंदोलन जाँच पर अड़ जाइए, वरना पक्ष- विपक्ष के आरोपों से राजनीतिक सुचिता नही बढ़ेगी ,राजनीतिज्ञों के लिए फिर छत्तीसगढ़ी में यही कहावत चलेगी ---------------------------------------- नकटा के नाक कटाए सवा हाथ बाढय
चोखेलाल
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मुखिया के मुखारी में व्यवस्था पर चोट करती चोखेलाल
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