कांग्रेस की कथनी और करनी का अंतर उसे रसातल में पहुंचा चुकी, सत्ता सुख से वंचित कांग्रेस का रुख नही रहा बदल, बचे मजबूत किले भी ढहेंगे,देश वाला हाल कांग्रेस का छ.ग. में हो रहा। बदलते हवा का रुख पहचानना ,समझना और वैकल्पिक व्यवस्था करने में समझदारी है,बदलते हवा के रुख से दीपक के अस्तित्व पर संकट गहराता है, सों दीपक कों अपने अस्तित्व कों बचाना था, वों वही कर रहे, राजनीति में सामर्थ्यवान होकर भी कोई आपका ही रहे ये जरुरी नही है । हवा के रुख की तरह आस्थाए बदलती है, और यदि व्यवस्था, सत्ता की परिवर्तित हो जाए तों, परावर्तन अवश्यंभावी हों जाता है ,छत्तीसगढ़ की राजनीति में मध्यप्रदेश के ज़माने से आदिवासी हितों की बात होती आई, पर कभी हुई नही , सक्षम आदिवासी नेतृत्व पनप ना पाए इसकी पूरी व्यवस्था की गई ,आदिवासी नेता कुछ समय के लिए धूमकेतु की तरह चमके फिर नेपथ्य में चले गए, मंत्री तों बने ,पर मंत्री बनाने का स्थाई राजनितिक हैसियत नही पा सके, मेधा के धनी पूर्व नौकरशाह और छत्तीसगढ़ के प्रथम मुख्यमंत्री स्व.अजित जोगी ने मिसाल कायम की थी ,पर वों मसल दिए गए जाति के मसले पर, गैरों की क्या कहे उनके अपने कांग्रेसी उन्हें फर्जी आदिवासी कहते थे ,उनकी जाति का मसला उनकी दूसरी पीढ़ी तक नही सुलझा ।पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार के दौरान हुए मरवाही उपचुनाव में छोटे जोगी का नामाकंन फंसा, पुत्रवधू का जाति प्रमाण पत्र विवादों में घिरा ,बस्तर में सोढ़ी और नेताम परिवार कभी चमके ,दशकों तक राजनीति के शिखर में रहे और अब सिफर हो गए, यही हाल छ .ग . के आदिवासी राजघरानों का है । धीरे -धीरे राजनीतिक पकड़ कम होती गई, छत्तीसगढ़ के उदय के साथ और कम हुई और अब न्यूनतम हों गई, आदिवासी आरक्षित सीटों पर मज़बूरी है ,इन्हें लड़ाने की, रस्म वों निभाई जा रही है ।
प्रदेश कांग्रेस के वर्तमान मुखिया और उनके पूर्ववर्ती दोनों आदिवासी है, वर्तमान अध्यक्ष कों लोकसभा की उम्मीदवारी नही मिल पाई ,ये अलग बात है की पुरे प्रदेश में सबकी उम्मीदवारी उनके द्वारा तय की गई बताई गई, पूर्ववर्ती प्रदेश अध्यक्ष कों चला चली की बेला में कैबिनेट मंत्री बनाया गया ,पूर्व आदिवासी खाद्य मंत्री राजनीतिक हिसाब किताब के समीकरणों के आधार पर कभी उपर कभी नीचे होते रहे, पर सक्ष्म नही हो पाए । कांकेर से विधायक थे ,आदिवासी IAS अफसर पर दोबारा विधायकी की टिकिट नही पा सके, प्रतिभाओं का मुल्यांकन नही हो रहा, किसे पुरुस्कृत और किसे तिरस्कृत करना इसका कोई तय पैमाना रहा ,ना है और शायद ना होने वाला है,तभी तों अनपढ़ लखमा मंत्री पद से पुरुस्कृत होते है, मंत्री बनाना आपका अधिकार था, तों फिर इस शराब घोटाले की जवाबदारी किसकी है? या फिर उन्हें बनाया सिर्फ इसलिए गया था की मौका मिले ,और आप चौका मारे, मंत्री लखमा का कहना था की मै अनपढ़ हूँ, अफसरों ने घोटाला किया ,मै पढ़ना नही जानता ,उसी लखमा की भाव भंगिमाए बदल गई, ED रिमांड के बाद कोर्ट जाते हुए कहने लगे मै कुछ नही बोलूँगा ,मेरे वकील बोलेंगे, न्यायालय में जवाब देंगे।
अनपढ़ मंत्री के दोनों बयानों के बीच का अंतर उनकी मासूमियत की मुखौटे कों उतार देता है, ये हटधर्मिता ,जनादेश की अवहेलना का भाव, अहम् ब्रह्मास्मि का उदघोष करने वाले लखमा यदि अनपढ़ है, तों फिर ये तय है, की उन्हें कोई और गढ़ रहा है,वों गढ़े हुए वाक्य रटकर दोहरा रहे है, व्यवस्था में कोई खोट है, रिमांड में चाय पानी ,खाने के आलावा क्या अति आत्मविश्वास भी मिलता है? यदि लखमा की पसंदगी के कारण की व्याख्या की जाए तों क्या निकलेगा, उनकी एक ही योग्यता है की वों किसी के प्रतिद्वंदी नही है। अपने द्वंद में मस्त ,अपने कोंटा में व्यस्त, अब जों राजनीति में सत्ता में कोंटे में रहना चाहे ,उसे कैसे नही मिलता वरदहस्त,वरदहस्त की महिमा जेल में भेंट मुलाकात, जन सांख्यिकी रूप से बहुल छत्तीसगढ़ में क्या आदिवासी प्रतिभाओं की कमी है ? त्रिस्तरीय पंचायतों में आरक्षण, आरक्षित संसदीय और विधानसभाओं की सीट फिर भी सक्षम आदिवासी नेतृत्व का आभाव क्यों है? यदि ऐसा होता तों फिर वर्तमान मुख्यमंत्री अपनी जगह पर नही होते, परिवारवादी राजनीति दुसरे वर्गो के राजनीतिज्ञों कों शीर्षस्थ पदों पर पहुंचा देती है, सत्ता पीढ़ी -दर पीढ़ी कायम रहती है,पर आदिवासियों के साथ ऐसा नही हो रहा ,वजह तों कुछ न कुछ होंगी, दीपक के लौ कों बुझाने की चेष्ठा क्यों ? मुखिया वों तों कांग्रेस पार्टी के है,आप तों सरकार के मुखिया थे, चुनाव तों सरकार के कार्यों के आधार पर लड़ा गया, फिर इस हार की =जवाबदारी किसकी ? कांकेर में संविधान की मज़बूरी थी तों रायपुर दक्षिण में चहेते परिवार कों टिकिट दे दी,फिर भी हार । समय की मांग है परिवर्तन ,ना आप समय पहचान रहे ,ना परिवर्तित हो रहे, ना आदिवासी आपके चहेते बन पा रहे ,आदिवासियों के प्रदेश में नेतृत्व उन्हें देना नही चाह रहे, झुनझुना कोई क्यों कब तक बजायेगा? श्रेष्ठता का नारा वों क्यों नही अपने लिए लगायेगा, कमल की शोभा आदिवासियों से है ,तों हाथ उनके मजबूत है, ये बात अलग है की आपके हाथ उन्हें नेतृत्व देने से कपकपा रहे ,सत्ता की धूरी बदल गई ,कोई धुर नही है आपका आदिवासी हितों की बात पर धुल झोकेंगे, आँखों में तों फिर --------------------समय आदिवासी सुशासन का -आपका समय सांय सांय {सन्नाटे} का
चोखेलाल
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मुखिया के मुखारी में व्यवस्था पर चोट करती चोखेलाल
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