स्थानीय निकायों के चुनावों का आगाज हो गया, प्रदेश के मतदाता शहरी और ग्रामीण सरकारों का चुनाव करेंगे, इन चुनावो के लिए राजनीतिक दलों ने उम्मीदवारों की सूची जारी कर दी है, प्रदेश में कांग्रेस और भाजपा के बीच सीधा मुकाबला है ,छत्तीसगढ़ जोगी कांग्रेस निष्क्रिय हो चुकी है, बसपा अपना अस्तित्व खो चुकी है ,आप अपनी उपस्थिति दर्ज कराने से ज्यादा कुछ कर नही पायेगी, ऐसी स्थिति में भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए बागी बड़ी समस्या होंगे, स्थानीय निकायों के चुनावों में निर्दलीय कई लोग अपनी किस्मत आजमाएंगे ,अपनी राजनीतिक हैसियत का पता लगाएंगे, टिकिट वितरण के साथ ही दोनों राजनीतिक दलों में बगावती सुर देखने मिल रहे, संतुष्ट सभी को कर पाना तों संभव नही, पर क्या समदर्शिता से टिकिट वितरण हुआ, भाजपा महतारी वंदन योजना के बाद महिला सशक्तिकरण की ओर अग्रसर दिख रही ,महिलाओं कों उनके लिए आरक्षित सीटों के आलावा अनारक्षित सीटों से भी टिकिट मिली ,बिलासपुर में महापौर के लिए महिला उम्मीदवार मैदान में उतारा, सत्ता और संगठन के बीच संतुलन साधने की पूरी कोशिश हुई, राजनांदगांव में रमन सिह की पसंद चली, तों सरगुजा जशपुर में मुख्यमंत्री ,बस्तर में प्रदेश अध्यक्ष का जोर दिखा ।
हर क्षेत्रीय छत्रप कों महत्ता दी गई ,उनकी सहमती से उम्मीदवार तय किए गए,भाजपा उम्मीदवारों के चयन में असहमति या असंतोष का स्वर उतना प्रस्फुटित नही हो रहा, जीतना इस समस्या से कांग्रेस जूझ रही है ,सीधे मुकाबले की इस लड़ाई में चुनावी मैदान से पहले कांग्रेसियों की राजीव भवन की लड़ाई सबके सामने आ गई ,कांग्रेसियों ने अपने ही नेताओं पर टिकिट बेचने का आरोंप लगाया ,यदि ये सत्यता है तों कांग्रेस की सुधरने की संभावना नगण्य है ,और यदि ये सिर्फ आरोंप है तों समन्वय की कमी है ,विधानसभा चुनावों की हार के बाद भी लगता है कांग्रेस ने कोई सबक नही लिया है,गुटबाजी और बिखराव ,पारिवारिक राजनीति कों प्रश्रय देने की पुरानी परम्परा अभी भी निभाई जा रही है । महापौरों के उम्मीदवारी तय करने के मानक में झोल ही झोल है,व्यक्तिगत पसंद जीत की संभावनाओं पर भारी है,राजधानी में मिली महापौर पद की उम्मीदवारी बताती है की सामन्य कार्यकर्ता और महिला मोर्चा के नेत्रियों के मेहनत का मूल्याकं नही हुआ, या फिर धरना प्रदर्शन सारी राजनीतिक गतिविधियों की कोई अहमियत ही नही है,जिन महिला नेत्रियों ने सारी निजी दायित्वों कों परे रख ,कांगेस में सक्रियता जीवंतता बनाए रखी वों घर बिठा दी गई,उनके नामों पर मुहर नही लगी,बिना किसी सक्रियता के सहभागिता के अर्धांगिनी होने का लाभ मिला ,पति की राजनीतिक सक्रियता, लोकप्रियता कांग्रेस के मापदंडो के उपर भारी पड़ी ,पूर्व महापौर,सभापति रहते सांसद का चुनाव हार गए ,अपने लिए ही मतदान नही करवा सकें, फिर भी उन्हें अपने राजनीतिक पूण्य का लाभ मिला, आस जगी, कोशिश करेंगे पहले वों शहर के प्रथम नागरिक थे, अब प्रथम नागरिक के पति कहलाए, सरपंच पति की तरह राजधानी में महापौर पति का चलन हों, ऐसा राजनीतिक उन्नयन होंगा ,कांग्रेस योगदान से नही, ना ही निष्ठा और सक्रियता कों परिवार कों बड़ा मानती है,उसके आगे राजनीतिक समीकरणों पर भी विचार नही होता, डेढ़ दशक से राजधानी की सत्ता पर कांग्रेस विराजमान है, शायद उसने इसे स्थाई समझ लिया है।
सारे कार्यकर्त्ता और कांग्रेसी नेत्रियां पस्त,नेता और नेता का परिवार मस्त, अस्त व्यस्त राजनीतिक समीकरण से जीत कैसे मिलेगी ,संबंध क्या राजनीति के सारे बंधन तोड़ सत्ता वरण करवा पायेगी, योग्यता पर भारी जुगाड़ है ,उम्मीदवारी के लिए संबंध सिर्फ आधार है,इसी एक आधार पर चुनाव जीतने की आस है,मतदाताओं का विकास हों ना हों, राजधानी विकसित हों ना हो, परिवार तों विकसित होंगा, एक ही घर में शहर के दो प्रथम नागरिक रहेंगे इससे ज्यादा क्या पारिवारिक विकास होंगा,विकसित परिवार होंगा । कांग्रेस लगता है सर्व वर्ग के प्रतिनिधित्व की जगह विशेष वर्ग की पार्टी होने की अपनी पहचान छोड़ परिवार विशेष की पार्टी होने का प्रयास कर रही ,सभापति रायपुर का यदि कांग्रेस जीती तों कौन होंगा इसकी कयास लगाने की जरूरत भी नही है,अदला बदली फिर होंगी । माहौल ऐसा भी बनाया जायेगा शहर का सबसे बड़ा समाजसेवी बताया जायेगा, किरणमयी की जीत के समीकरणों से जीतने दूर हुए आप है ,उतनी ही दूर जीत आपसे हुई है । गंभीरता का आभाव है, आलम ये है की महिला सुरक्षित सीट पर पुरुष का नाम है ,यदि इस सजगता से उम्मीदवारी तय की गई है तों जीत के प्रति आपकी सजगता संदेहास्पद है,संदेह से भरा पूरा टिकिट वितरण है, रण में रणबाकुरों की शौर्यता नही, जुगाड़ का शौर्य है राजधानी ,न्यायधानी ,संस्कारधानी से लेकर जगदलपुर तक धन -धन और धन ही धन ,धन से खुलेंगे क्या सत्ता के दरवाजें ,मिलेगी जीत कैसे जब --------------------------आवाज जनता की,कार्यकर्ता की नही सुनी जा रही है
चोखेलाल
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मुखिया के मुखारी में व्यवस्था पर चोट करती चोखेलाल
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