मुखिया के मुखारी –सत्ता से बेदखल सांसद -संविधान का सम्मान नही अपमान कर रहे 

मुखिया के मुखारी –सत्ता से बेदखल सांसद -संविधान का सम्मान नही अपमान कर रहे 

संविधान देश का विधान जिसके विधि के अनुसार देश के हर नागरिक और सरकारों कों अपने कर्तव्य पथ पर चलना है,पर क्या संविधान का परिपालन हो रहा, कर्तव्य बोध से ज्यादा अधिकार बोध हो तों फिर जनकल्याण कैसे होगा, यदि जनकल्याण के लिए अधिकारों का हनन हो तों फिर संविधान कैसे बचेगा, संतुलन प्रकृति का शाश्वत सत्य है ,सत्य से विमुख होकर सत्ता संचालन असंतोष को अराजकता तक पहुंचा देता है,बिना कर्तव्य बोध के कार्यों से स्वार्थ सिद्धि तों हो सकती है, समावेशी विकास नही हो सकता,अधिकारों के हनन से समाज समावेशी नही हो सकता। यदि समाज सभ्य है तों उसे कर्तव्य और अधिकारों का सामंजस्य पता होगा,देश की वर्तमान सामजिक ,राजनीतिक एवं भौगोलिक परिस्थितियां गर्व और आत्मावलोकन का मौका देती है। वैदिक काल  सभ्यता, विशाल भू -भाग ऐतिहासिक, मध्यकाल में शुर वीरों की धरती पर शौर्य का हास्, विदेशी आक्रंताओं का सरताज होना, आधुनिक काल में अग्रेजों की गुलामी, धर्म के आधार पर देश का बटवारा बताता है ,की हमे आत्मावलोकन की आवश्यकता है।तत्कालीन एवं वर्तमान परिस्थितियों में हमने जीवन मूल्यों कों विस्मृत कर दिया, आदर्शो के परिपालन में कोताही बरती ,आज हम फिर उसी मोड़ पर खड़े है ,सामंजस्य की जगह स्वार्थो की मिलावट, सत्ता की भूख ,तर्क और कुतर्क के बीच अंतर नही फिर भी हम कहते अपने कों सभ्य, संविधान में लोकतंत्रीय व्यवस्था है ,जिसमे शत -प्रतिशत मत पाकर ना कोई जन प्रतिनधि बनता है , ना शत -प्रतिशत सीटे जीतकर कोई सरकार बनती है,बहुमत और अल्पमत का सामंजस्य है लोकतंत्र, मत भिन्नता लोकतंत्र के माथे का टीका है, और वही यदि मन भिन्नता हो जाए तों कलंक का टीका ,जब बौद्धिकता के उपर भ्रम हावी होने लगे तों मान लीजिये सामाज स्वार्थी हो रहा है,संयुक्त परिवार से एकाकी परिवार तक का हमारा सफर बताता है, की हम स्वार्थी परिवेश के आदी और अनुगामी हो गए ,भ्रम जीतना सामाज में है उससे ज्यादा राजनेताओं में है । वादे जनकल्याण के, इरादे स्वकल्याण के, गरीबी सालों में दूर नही हुई, ये कैसा लोकतंत्र ,मूलभूत आवश्यकताओं के लिए जन क्रंदन तों फिर क्यों किसी का अभिनंदन ? वर्तमान राजनीति सिद्धांतों से ज्यादा मुफ्त की राजनीति पर टिकी है, वही जीत की गारंटी है ,राज्यों की नारी सशक्तिकरण की योजनाए नाम महतारी वंदन ,भविष्य में ना बन जाए महतारी क्रंदन का कारण, मुफ्त के पैसों से पसीने की कमाई अच्छी इन योजनाओं में जीतने पैसे सरकार खर्च कर रही उतने में कई संयंत्र स्थापित हो जायेंगे।

महतारी के बेरोजगार सपूतों कों स्थाई रोजगार मिल जाएगा, टैक्स का हमारा पैसा हमी कों दे मुफ्त का बता रहे, अपने स्वार्थ के लिए माँ से लेकर सबकों स्वार्थ का पाठ पढ़ा रहे ,धर्म ,जाति, लिंग के आधार पर भेद की अनुमति संविधान नही देता, धर्म के नाम पर कानून अलग -अलग ,जाति के नाम पर सुविधाए अलग -अलग ,लिंग के नाम पर कई मुफ्त की योजनाए बसों में बैठने का आधार इसे ही बनाए है, कहां है समानता?समदर्शिता दूर की कौड़ी ,न्यायप्रियता  लोकतंत्र की नही किसी और लोक की बात हो गई ,हक़ का हस्तांतरण सौदे से हो तों जायज पर नाजायज कब्जों कों सहने की मज़बूरी कौन सा न्याय है? मंदिर टूटे मस्जिद बने ,पर कोई मस्जिद टूटकर मंदिर बना तों वों भी बताइए, गलत दोनों है पर गलत किसने किया बताइए ,मस्जिद के सामने नारे जय श्री राम के लगाने से भावनाए भड़कती है ,तों फिर मस्जिदो के लाउडस्पीकरों से पुरे शहर कों सुनाये जाने वाले अल्लाह हु अकबर के नारों के लिए मापदंड क्या होगा?

कुंभ की जमीन पर दावे वक्फ के किए जाए, वक्फ पुस्तैनी जमीन का तों फिर किसकी पुस्ते यंहा सनातन काल से रह रही है,सनातन के समागम विश्व धरोहर पर आपत्तियां, मीन मेक निकालने की प्रवृतियाँ ,मनदोष नही भाव दोष है,अपने गौरव कों तिरोहित कर महिमा मंडन आक्रंताओ का बताता है, कि अंश मात्र दोष आक्रंताओ वाला आपमें भी है ,विरासत कों माथे से लगाए कब किस सनातनी ने राजनेता होकर भी आराध्य के आगे सर झुकाया, आस्था कों ही अपनी निष्ठा माना, भगदड़ में हुई मौतों के लिए कब किसके अश्रु झरे, जिन्होंने निहत्थे कारसेवकों पर गोली चलाई उन्हें मौत दी वों ,श्रद्धालुओं के मौत का हिसाब पूछ रहे, बिस्वा भर पैतृक जमीन नही, राजनेता बन जमीर बेच बेहिसाब सम्पतियों के जागीरदार हो गए, सैफई में नाचे -नचाए अब कुंभ पर सफाई मांग रहे ,तर्क कुतर्क का नीर क्षीर का सामर्थ्य नही ऐसे बुद्धजीवी संचार माध्यमों में बहस का भौंडा प्रदर्शन कर रहे, तथ्यहिन वक्ता चिल्ला - चिल्लाकर कुतर्को से अपने आप कों प्रवक्ता साबित कर रहे, चाटुकार सब सत्ता के राजदार ,नीतियों में राज रख राजनीति कर रहे ,ऐसे बुद्धजीवियों की भरमार जिन्हें नही एहसास तर्क और कुतर्क के भार का, संविधान लेकर चलने वाले भारत राज्य से लड़ने की उद्घोषणा करने लगे, बात संविधान के सम्मान की और आचरण -78 की बुजुर्ग 66 उम्र की राष्ट्रपति कों थकी {बेचारी} बता रही,बेदखली सत्ता से छटपटाहट दे रही और इस हड़बड़ाहट में ------------------सत्ता से बेदखल सांसद -संविधान का सम्मान नही अपमान कर रहे 

चोखेलाल
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मुखिया के मुखारी में व्यवस्था पर चोट करती चोखेलाल






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