तमिलनाडु :तमिलनाडु के मदुरई में स्थित पवित्र थिरुपरनकुंद्रम पहाड़ी को लेकर बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। इस पहाड़ी पर प्राचीन मुरुगन मंदिर स्थित है, लेकिन मुस्लिम समुदाय इसे वक्फ संपत्ति बताते हुए यहां धार्मिक अधिकारों की मांग कर रहा है।
मामला तब और गरमाया, जब प्रशासन ने मुस्लिमों को पकाया हुआ मांस ले जाने की अनुमति दे दी, जबकि हिंदू संगठनों ने इस फैसले का कड़ा विरोध किया।
मंगलवार (4 फरवरी) को हजारों हिंदू श्रद्धालुओं और संगठनों ने मदुरई के पलक्कनाथम में जोरदार प्रदर्शन किया। विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल, हिंदू मुन्नानी, आरएसएस और भाजपा सहित करीब 50 से अधिक संगठनों ने भगवा ध्वज के साथ रैली निकाली और धार्मिक नारे लगाए। प्रशासन ने किसी अप्रिय घटना को रोकने के लिए इलाके में धारा 144 लागू कर दी और हिंदू संगठनों के प्रवेश पर रोक लगा दी। इसके खिलाफ हिंदू संगठनों ने मद्रास हाई कोर्ट में याचिका दायर की, जिसके बाद कोर्ट ने 4 फरवरी को शाम 5 बजे से 6 बजे तक प्रदर्शन की अनुमति दी। सुरक्षा के मद्देनजर 3500 से अधिक पुलिसकर्मियों को तैनात किया गया।
इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (IUML) के सांसद नवाज कानी ने पुलिस अधिकारियों से बात कर पहाड़ी पर बकरा और मुर्गा ले जाने, कुर्बानी देने और खाने की अनुमति बहाल करने की मांग की। मुस्लिम पक्ष का कहना है कि पहाड़ी पर स्थित सिकंदर बादुशाह दरगाह को 400 साल पहले सुल्तान सिकंदर ने बनवाया था, इसलिए यह वक्फ संपत्ति है।
डीएमके विधायक अब्दुल समद ने 21 जनवरी को पहाड़ी का अनौपचारिक सर्वेक्षण करते हुए इसे मुस्लिमों की संपत्ति बताया। नवाज कानी ने इसे 'सिकंदर पहाड़ी' बताते हुए कहा कि मुस्लिमों को यहां धार्मिक गतिविधियों की पूरी स्वतंत्रता होनी चाहिए। थिरुपरनकुंद्रम पहाड़ी सिर्फ मुरुगन मंदिर का स्थल नहीं है, बल्कि ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी की जैन गुफाएं भी यहीं स्थित हैं। इनमें ब्राह्मी लिपि में अभिलेख खुदे हुए हैं। साथ ही, यहां एक प्राचीन शिव मंदिर भी मौजूद है। कुछ समय पहले इन ऐतिहासिक जैन गुफाओं को कट्टरपंथियों द्वारा हरे रंग से रंगने की घटनाएं भी सामने आई थीं।
मुस्लिम पक्ष इस पहाड़ी पर अपना दावा दशकों से कर रहा है। 1931 में भी एक ऐसा ही विवाद उठा था, जब इस्लामवादियों ने इसे 'सिकंदर हिल्स' बताते हुए अपनी संपत्ति घोषित करने की कोशिश की थी। 12 मई 1931 को प्रिवी काउंसिल ने इस विवाद पर फैसला देते हुए माना कि मुरुगन मंदिर ने पहाड़ी के खाली हिस्सों पर ऐतिहासिक कब्जा साबित कर दिया है और इसे पीढ़ियों से अपनी संपत्ति के रूप में माना जाता रहा है।
हलांकि, इस मामले में सवाल ये है कि, अगर 1931 में ही इस मामले पर कानूनी निर्णय आ चुका था, तो बार-बार इस पहाड़ी को वक्फ संपत्ति बताने की कोशिश क्यों की जा रही है? क्या प्रशासन और सरकार इस विवाद को शांत करने के लिए ठोस कदम उठाएंगे या इसे राजनीतिक रंग दिया जाएगा? क्या हिंदू धार्मिक स्थलों पर इस तरह की दावेदारी एक नई परंपरा बनती जा रही है? थिरुपरनकुंद्रम विवाद ने मदुरई ही नहीं, बल्कि पूरे देश में धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान से जुड़े गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। इस मामले पर आगे क्या कदम उठाए जाएंगे, यह देखना बाकी है।
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