दुर्ग : दुर्ग जिला अस्पताल के मदर चाइल्ड वार्ड में नवजात शिशु अदला-बदली का मामला अब डीएनए परीक्षण तक पहुंच चुका है। कलेक्टर ऋचा प्रकाश चौधरी ने इस मामले की जांच के लिए गठित समिति और जिला अस्पताल के सिविल सर्जन डॉ. हेमंत साहू को डीएनए टेस्ट कराने का आदेश दिया है। जल्द ही परीक्षण की प्रक्रिया पूरी की जाएगी।सिविल सर्जन डॉ. साहू ने बताया कि मामले की जांच के लिए गठित समिति ने अपनी जांच प्रक्रिया पूरी कर ली है और रिपोर्ट बाल कल्याण समिति के समक्ष प्रस्तुत कर दी है। समिति ने रिपोर्ट की समीक्षा करने के बाद बच्चों के सर्वोत्तम हित में डीएनए परीक्षण कराने के निर्देश दिए हैं। इसके लिए अस्पताल प्रशासन ने दोनों नवजात शिशुओं का स्वास्थ्य परीक्षण करवाया, जिसमें पाया गया कि दोनों पूरी तरह स्वस्थ हैं और डीएनए टेस्ट के लिए उपयुक्त हैं।
संभावना है कि आज ही परीक्षण की प्रक्रिया शुरू कर दी जाएगी। शबाना कुरैशी के परिवार के सदस्य बच्चे को लेकर जिला अस्पताल पहुंचे और नवजात को शबाना के साथ शिशु वार्ड में भर्ती करवा दिया। उनका कहना था कि जब तक यह स्पष्ट नहीं हो जाता कि किसका बच्चा कौन सा है, वे मां और बच्चे को अस्पताल से डिस्चार्ज नहीं करवाएंगे। इसके बाद कलेक्टर ने सिविल सर्जन को डीएनए परीक्षण की तैयारी करने का निर्देश दिया। हालांकि, एक बड़ी चुनौती यह है कि शबाना और उसके परिवार ने डीएनए टेस्ट के लिए सहमति दे दी है, लेकिन साधना ना तो बच्चा लौटाने को तैयार है और ना ही डीएनए टेस्ट कराने के लिए।
अब जिला प्रशासन उन पर दबाव डालकर परीक्षण सुनिश्चित करेगा। शबाना के परिजनों ने जिला प्रशासन पर लापरवाही का आरोप लगाते हुए दोषी कर्मचारियों और अधिकारियों को निलंबित करने की मांग की है। उनका कहना है कि घटना के कई दिन बीत चुके हैं, लेकिन अभी तक जिम्मेदार कर्मचारियों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। साथ ही, प्रशासन साधना को बच्चा लौटाने या डीएनए टेस्ट के लिए राजी कराने में भी असफल रहा है। सिविल सर्जन डॉ. हेमंत साहू के अनुसार, दोनों नवजात शिशुओं के जन्म के बीच 7 मिनट का अंतर है। 23 जनवरी को दोपहर 1:25 बजे शबाना कुरैशी (पति अल्ताफ कुरैशी) ने एक पुत्र को जन्म दिया, जबकि 1:32 बजे साधना सिंह ने भी एक पुत्र को जन्म दिया। अस्पताल प्रशासन ने नवजात की पहचान सुनिश्चित करने के लिए जन्म के तुरंत बाद उनके हाथों में मां के नाम का टैग बांधा और मां के साथ बच्चे की तस्वीर खींची। बावजूद इसके, अस्पताल में शिशुओं की अदला-बदली हो गई।
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