विश्व के प्रसिद्ध मार्केटिंग गुरुओं में से एक फिलिप कोटलर का प्रसिद्ध कोट्स है -मार्केटिंग इज आल अबाउट ए परसेप्शन और यही राजनीति पर लागु होती है ,मतलब विपणन और राजनीति जनअवधारणाओं के अनुरूप चलने को बाध्य होती है,उत्पाद की पैकेजिंग कितनी भी आकर्षक कर लीजिए बिना गुणवत्ता के वों ब्रांड नही बन सकती ,न जन आकर्षित होंगे ,न जनधारणानाए विकसित होंगी,मजाल है ये बात राजनीतिज्ञ समझ जाए ,ब्रांड के इस दौर में बार -बार उनके हारने की वजह यही है ,इस बार तों आई आई टी जैसे संस्थान से शिक्षित पूर्व नौकरशाह राजनेता भी नही समझ पाए ,दिल्ली हार गए,भर्ष्टाचार के मुद्दे पर आये ,भर्ष्टाचार के मुद्दे पर गए ,फर्श से अर्श तक का सफ़र फिर बाधित हुआ, आप बनकर आये थे आपदा बनकर रुखसत हुए ,पर उनकी विपदा कम नही हो रही, हारे दिल्ली लोगों की नजर पंजाब पर भी गड़ गई,पुरानी दोस्त कांग्रेस पीछे पड़ गई ,बाकि क्षेत्रीय छत्रपों की तरह नही है केजरीवाल हर वाल पर अपनी राजनीतिक हैसियत लिखने की तमन्ना लिए वों राज्य दर राज्य चुनाव लड़ते रहे ,कांग्रेस को उसके वोट बैंक से महरूम करते रहे,खैरियत कैसे मनाती कांग्रेस उनकी, सों खैर खबर ले रही, राष्ट्रीय पार्टी आप को उसकी हैसियत बता रही,हार के मजे ले रही कांग्रेस, आप की हार में भी मजे ले रही ,हम तों डूबे सनम तुमको ना छोड़ेंगे ,नौटंकी की राजनीति टंग गई ,सत्ताच्युत हो उचित दोस्ती ना करने का परिणाम भोग लिया ,पर कुकर्मो से किसको जीत मिली है ,बुद्धजीवियों के प्रश्रय ने आत्ममुग्धता में ला दिया ,बरनाल मूवमेंट का शिकार बना दिया, बुआ की मूंछे होती तों मै उसको चाचा ना कहता की पट्टी पढ़ाई जा रही ,कांग्रेस और आप के वोट मिल भी जाते तों भी आपकों सत्ता से जाना था, हे !बुद्धजीवियों वों 40% वोट जों नही पड़े वों शायद पूरा आप का ही था ,शायद ऐसे ही लोकतंत्र की हत्या होती है ?ऐसे कुतर्क किसी की जीत को छोटी करने का तर्क किसी की हार को महिमामंडित करने का जतन है ।
देश की साक्षरता दर बढ़ गई,मतदाता जागरूक शिक्षित हो गए, पर आप की राजनीति पुराने ढर्रे की, शिक्षित मतदाता को आपका कदाचार दिखा, आपकी सत्ता लोलुपता दिखी, पलटी मारने की क्षमता ,नौटंकी बाज होने की असलियत ने असल में आपको हराया ,गुणवत्ता विहीन राजनीति का हश्र गुणवत्ता विहीन उत्पाद जैसा ही होना था,पैकेजिंग आपकी चली नही ,मुद्रा तों कमाया आपने पर मत नही कमा पाए, तोता तों रह गया सत्ता की मैना उड़ गई, आपदा दिल्ली की विपदा ना बन जाए पंजाब में अपनी शिक्षा और अपनी राजनीतिक सूझ का खुद दर्शन करिए ढहते आधार को धार दीजिए।
देश के विपक्षी दलों और बुद्धजीवियों को महाकुंभ बहुत खटक रहा,अटक गई है उनकी सांसे, हिन्दू अस्मिता देखकर स्मृति बोध बता रहा उनका उन्हें की PDAपर संकट है, सैलाब जों उमड़ा है आस्था का, वों उन्हें अखर रहा,भूखे प्यासे कारसेवकों पर गोली चलाने वालों को श्रद्धालुओं के भूख प्यास की चिंता है, ,गिरगिट भी शरमा जाए इन औरंगजेबी प्रवृतियों वाले नेताओं से पिता को खदेड़ पार्टी और सत्ता पर बेजा कब्जा करने वाले, आदर्श की बात कर रहे ,खुद वीआईपी बन डुबकी लगाए,अब वीआईपी व्यवस्था पर सवाल उठा रहे ? व्यथा दूसरी है, घटता जनमत हार पे हार उस पर तथाकथित अयोध्या नरेश की मिल्कीपुर में हार बता रहा आपका भविष्य है ,27 में सत्ताधिश होने का नारा अब नारा ही रहेगा । आप के लिए दिल्ली और सपा के लिए लखनऊ बहुत दूर है, अव्यवस्थाए हुई पर व्यवस्था कितनी बड़ी है भीड़ इतनी श्रद्धालुओं की उमड़ी आप के दौरे ए हुकुमत में, जिसने आवाज दी वों साज लेगा, हिन्दू समागम को सम्हाल लेगा,अव्यवस्था की कीमत न चुकानी पड़े बड़ी ये श्रद्धालुओं और आयोजकों की कामना है ,स्वतंत्रता आंदोलन की अव्यवस्था ने ही तों हमे बटवारा दिया ,अब ना कटेंगे ना बटेंगे, हिंदुत्व के शिखर पर चढ़ेंगे,सत्ता से तों दूर है आप अब जनमत रूठ रहा, तथाकथित धर्मनिरपेक्षता की पोल खुल रही,वोट रूपी मैना आपकी बहुत दूर उड़ चली, छत्तीसगढ़ में भी शहर और गाँवो के सरकारों की ताजपोशी होनी है, पसोपेश में खड़ी कांग्रेस, भाजपा के पेशानी पर बल है, शराब अब भी पकड़ी जा रही वैध -अवैध की सीमा तोड़ मतदाताओं तक पहुँच रही, कैसी ये कानून व्यवस्था ? कैसा ये सुशासन है ? स्नीफर वाला गुण भी क्या चुनावी होता है? जब्ती शराब की सिर्फ चुनावों में बाकि समय सांय -सांय अवैध शराब कैसे खपाई जाती है ? पीठ खुजाने की पुरानी परम्परा निभा रहे, शराब लाने वाले गरीब पकड़ा रहे ,मंगाने वाले अमीर चैन की बंशी बजा रहे,मध्यप्रदेश से आई शराब का पता चल गया ,पर उसी पुलिस को आरोपी कहां है फरार नही पता ? बड़े लोगों की बड़ी बातें, सरकार की भी कई है रीति रिवाजे ,अब इसमें बड़े कारिंदों के टूट जाए कस्में वादें, पड़ोसी जिलों में दो बड़े कारिंदे थे जामगांव में तोता मैना बनकर मिलते थे,नजर लग गई सरकारी, पड़ोस का आशियाना छिन गया, प्रेम के अब वों नजारे कहां,दिल्ली दूर बहुत है मीटिंग के वों अवसर कहां ,सवाल कैरियर का है,अब सिंह कितना भी गरजे, उन्हें तों केंद्र में चौधरी बनना है,मेरे रंग में रंगने वाली.....ये दिल तुम बिन कहीं लगता नहीं ....कबूतर जा -जा तक की बात है,हसरते हर की एक ,कारण अनेक परिणाम एक ----------------------सबकी मैना उड़ी जा रही
चोखेलाल
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मुखिया के मुखारी में व्यवस्था पर चोट करती चोखेलाल
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