USAID के फंडिंग वाले विवाद में अब प्रोपगेंडाबाज प्रशांत भूषण का नाम उजागर हुआ है। X यूजर ‘द स्टोरी टेलर’ ने खुलासा किया है कि प्रशांत भूषण अपने संस्थान ‘संभावना इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक पॉलिसी एंड पॉलिटिक्स’ के माध्यम से उस ‘इंटरन्यूज’ से जुड़े थे जिसे USAID फायदा दे रहा था।
इस इंटरन्यूज का काम दिखाने को दुनिया भर में ‘स्वतंत्र मीडिया’ को बढ़ावा देना है लेकिन हकीकत में ये फैलाता प्रोपगेंडा है। अगस्त 2024 में भी ये भारत विरोधी गुटों के साथ मिलकर सत्ता परिवर्तन के उद्देश्य से काम कर रहा था। इसके अलावा इसका उद्देश्य अलग-अलग मीडिया आउटलेट को पैसा देकर फैक्ट चेक के नाम पर सोशल मीडिया पर सेंसरशिप करना और सूचनाओं को नियंत्रित करना है।
वहीं भूषण के संभावना इंस्टिट्यूट की बात करें तो 20 साल पहले इसकी स्थापना कुमुद भूषण एजुकेशन सोसायटी के अंतर्गत हुई थी। इसका उद्देश्य दिखाया जाता है कि ये संस्थान अन्याय से निपटने और उसपर चिंतन करने का काम करते हैं, लेकिन अगर इसकी परतें खंगालेंगे तो वामपंथी इकोसिस्टम का असर यहाँ पर पूरा-पूरा दिखेगा।
हिमाचल प्रदेश के कंगरा जिले के पालमपुर के कंदबारी गाँव में संगठन के लिए जगह ली गई थी, लेकिन बाद में ये अड्डा बना वामपंथियों का। जहाँ अक्सर योगेंद्र यादव, हर्ष मंदर, मेधा पाटकर, प्रतीक सिन्हा, नंदिनी राव, रवीश कुमार जैसे वामपंथी जुड़े रहते हैं। इसके अलावा प्रणजॉय गुहा, रवलीन कौर, मनु मुदगिन, नीतू सिंह, भाषा सिंह, स्वाति पाठक, अतुल चौरसिया, अपूर्वानंद झा जैसे पत्रकार प्रशांत भूषण के संगठन से प्रत्यक्ष तौर पर जुड़े हुए हैं। अब सबसे खास बात। अगस्त 2024 में इसी जगह एक वर्कशॉप हुई थी जिसे सपोर्ट कर रहा था वही इंटरन्यूज जिसे न सिर्फ जोर्ज सोरोस वाली ओपन सोसायटी फाउंडेशन से फंड मिलता है बल्कि यूएसएड भी इसे भारी मात्रा में फंडिंग देती है।
इंटरन्यूज और USAID का संबंध
विकीलिक्स द्वारा दी जानकारी के अनुसार, बता दें कि यूएसएड ने इस इंटरन्यूज को करीबन 472.6 मिलियन डॉलर (4106 करोड़ रुपए) दिए हुए हैं और यही इंटरन्यूज भारत में डेडलीड्स के अंतर्गत चलने वाले ‘फैक्ट शाला’ के साथ काम करता है, जिसके प्रमुख चेहरे द प्रिंट के शेखर गुप्ता, द क्विंट की ऋतु कपूर और बीटरूट न्यूज के फाय डिसूजा हैं। इन कनेक्शन्स से समझा जा सकता है कि कैसे भारत में फैक्ट चेकिंग और मीडिया लिटरेसी के नाम पर सूचनाओं को सेंसर करने में USAID का पीछे से हाथ है।
इतना ही नहीं इसी यूएसएड ने उस वार्षिक अंतर्राष्ट्रीय भ्रष्टाचार विरोधी सम्मेलन (आईएसीसी) को भी वित्त पोषित किया है जिसने साल 2022 में भारत विरोधी दिशा रवि को बोलने के लिए मंच दिया था। दिशा रवि वही हैं जिनका नाम 2021 में भारत विरोधी टूलकिट में आया था और दिल्ली पुलिस ने उन्हें पकड़ा था। आईसीसी की लिस्ट में एक संजय प्रधान भी थे जो ओपन गवर्नमेंट पार्टनरशिप के अंबेसडर हैं। यही ओजीपी उस ‘वी-डेम इंस्टिट्यूट’ को फंड देते हैं जो बेबुनियाद डेटा देकर भारत विरोधी प्रोपगेंडा फैलाने का काम करता है।
इक्वेलिटी लैब्स और इंटरन्यूज कनेक्शन
एक यूजर तापेश यादव ने इंटरन्यूज और इक्वेलिटी लैब्स के बीच फंड देने के कनेक्शन को भी उजागर किया है। ये इक्वेलिटी लैब्स अपने आपको दलित नागरिक अधिकार संगठन के रूप में बताता है, लेकिन हकीकत में ये जातिगत रंगभेद, इस्लामोफोबिया और धार्मिक असहिष्णुता पर केंद्रित एजेंडे को बढ़ाने का काम करता है।
इसी ने अन्य संगठनों के साथ मिलकर ‘संयुक्त राज्य अमेरिका में जाति: दक्षिण एशियाई अमेरिकियों के बीच जाति का सर्वेक्षण’ नामक रिपोर्ट तैयार की थी। इसके अलावा ट्विटर पर जब सीईओ जैक डोर्सी ने ‘ब्राह्माणवादी पितृसत्ता को तोड़ो’ लिखा अभियान चलाया था और बाद में पता चला था कि उसे डिजाइन करने वाले इक्वालिटी लैब्स के कार्यकारी निदेशक थेनमोझी सुंदरराजन ही थे।
बता दें कि यूएसएड का प्रोपगेंडा नेटवर्क अभी भी पूरी तकरह एक्सपोज नहीं है, ये किस संस्था को फंड देते थे, वो संस्था किससे जुड़ी थी, उस संस्था के लोग कैसे नैरेटिव बनाते थे और यूएसएड द्वारा दी धनराशि का प्रयोग किन कामों में होता था… इन सबका खुलासा अभी और भी होना बाकी है। दशकों से यूएसएड ने अमेरिकियों के पैसों का गलत इस्तेमाल किया है और अब धीरे-धीरे सबका पता चला रहा है।
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