छत्तीसगढ़ में शहरी सरकार का चुनाव हो गया,चुनावी यज्ञ में पूर्णआहुति मतों के रूप में डाल दी गई ।15 फरवरी को किसी के माथे जीत का सहरा बंधेगा तों किसी को हार की कसक होगी ,छत्तीसगढ़ के अधिकांश नगरीय निकायों एवं त्रिस्तरीय पंचायतो में कांग्रेस का परचम लहराया था, तब सत्ता थी ,सत्ता संसाधन पैदा कर लेती है,आकर्षण खुद पैदा हो जाता है,अभी प्रदेश के 14 नगर निगमों में कांग्रेसी महापौर है,शत प्रतिशत वही परिणाम क्या कांग्रेस अब भी दोहरा पायेगी संशय है ? निकाय चुनावों से पहले सत्ता विहीन पार्टी की अंतर्कलह सड़को पर आ गई,कार्यकर्ता मायूस टिकिट वितरण से असंतुष्ट दिखे, टिकिट वितरण में पैसे लेने देने के भी आरोंप लगे,राजीव भवन में हंगामा हुआ तों सुबोध ने बिना बोध के पूर्व महापौर बिलासपुर को वाकयुद्ध में उलझा दिया, खुद कार्यकर्ताओं के सामने उलझ गए,सुलझा कितना मसला ये परिणाम बताएगा ।उलझनों की कई इबारतें दिखी है, बिलासपुर कांग्रेस कमिटी में आम कार्यकर्ताओं को सत्ता में महत्ता मिली नही वही हाल निकाय चुनावों में रहा ,मै अपने ,अपनों के अपने से उपर का सियासती समीकरण नही बना,यह स्थिति प्रदेश व्यापी है ,असंतोष के स्वर प्रस्फुटित होते रहे,प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की नेतृत्व क्षमता फिर दांव पे है,तिलंगे अलग -अलग राहों पे है,दुरी ताकत से जोर आजमा रहे एक दुसरे को नीचा दिखाने का पूरा प्रयास कर रहे।
सत्ता के साथ संसाधन और आकर्षण दोनों गया,कांतिहिन चेहरों से चुनावी क्रांति करने कांग्रेस निकली है,राजधानी का प्रथम नागरिक चुनने जों दांव चला है, लगता है वों अपनी पुरानी जीतों को हार में बदलने पर खुद आमादा है,हाल यही बिलासपुर ,चिरमिरी और कोरबा है, दुर्ग बच जाए ,दुर्ग वाले का भरोसा कम है ,बिखरी -बिखरी ताकते गर्वित सत्ता गवाएं नेता ऐसे में क्या करे आम कार्यकर्ता ? हिन्दू मुस्लिम का भी एंगल खुल गया ,पांच साल जों थे दुलारे जिन्हें सत्ताधीश ने था गोद में बिठाया ,जिनके लिए पूरी चुनाव प्रणाली प्रत्यक्ष से अप्रत्यक्ष हो गई, शहर के प्रथम नागरिक जिनकी पुरे प्रदेश की सत्ता में थी पूरी धमक, वों कसक बता रहे अपनी चुनाव प्रचार में ना बुलाने का कारण अपना मुस्लिम होना बताया ,वैसे दो वार्डो की पार्षदीय की उम्मीदवारी पाए प्रदेश के इकलौते दंपति है,इसकी वजह क्या है ? वैसे ये फैसला जब कांग्रेसियों का ही है तों फिर ये सार्वजनिक रुदन क्यों ? या जैसे निपटाए गए महंत दास थे ,वैसा निपटना दुबे जी को रास नही आया होगा ,विश्वास के लिए आपका इतिहास आड़े आया होगा, जों हाल उधो का दिल्ली में है वही हाल माधो का रायपुर में है। सत्ताहीनता में निकायों में चुनावों की लड़ाई इतनी आसान नही है,ये चढ़ाई छिटकते जनाधार में चटक रंग जीत का कहां से लाए, एका हो जाता कार्यकर्ताओं का मन लग जाता तों चमत्कार भी हो जाता,तेरह महीनें की सुशासन के दावों पर शहरों ने कितनी सहमती दी गाँवो का क्या अभिमत है ,मतों से कितनी आपकी झोली भरी कसौटी पे भाजपा भी कसी जाएगी ।
संसाधन आकर्षण सत्ता की अनुगामी कितने अनुगामी हुए छत्तीसगढ़िया पता चल जायेगा, पहली परीक्षा है ये इच्छा जनता की वों इसे मानती सुशासन है या फिर बताती सिर्फ दावे सुशासन का है,तेरह महीनों के कार्यो से जीत लिया जनता का मन जीत लिया चुनाव तों फिर उपलब्धि ही उपलब्धि नही तों फिर सूखे पेड़ में हरी -हरी पत्ती मरे पेड़ को जिंदा करने का सगल ठीक नही ,अपने में मशगुल हो दुश्मन को खड़ा करने में कोई उपलब्धि नही ,जागी हिन्दू अस्मिता में समय की चाल में चुनावी तुला झुका आपकी ओर है फिर भी विरोधियों को ना पाए झुका तों अवरोध आपका ही है । सत्ता ,संगठन का संतुलन कसा जायेगा, चुनावी परिणामों से सरकार का सामर्थ्य तौला जायेगा ,सरकार होगी यदि असरकार तों बनाएगी निकायों में भी सरकार ,चुनाव निकायों के है शहर से लेकर गाँवो के मोहल्लों तक है ,इकाईवार लोकप्रियता का मूल्याकंन होगा ,जिसकी जैसी राजनैतिक हैसियत वैसी उनकी प्रतिष्ठा दांव पर है,मंत्रियो को जीतना अपना गढ़ ,मुख्यमंत्री को जीतना होगा छत्तीसगढ़। बुद्धजीवियों की जद में आप भी है,आप सहित कई निर्दलीय ठोक रहे ताल ,चुनावी मैदान में ये पता आपकों भी है,कल कर ना देना बहाना की सुर ताल निर्दलियों ने है बिगाड़ा,बागियों ने आँखे दोनों को तरेरी कांग्रेस भाजपा दोनों को एक सी परेशानी, सत्ता के पेड़ को खाद चाहिए, जीत का स्वाद चाहिए, विपक्ष के सूखे पेड़ को पानी चाहिए,कर सके हरा पत्ता ऐसी जीत की रवानी चाहिए, जीत और जीत की है दोनों की आशा, सत्तारूढ़ सत्ताच्युत दोनों को है ,निकायों की सत्ता की आशा उम्मीद से दोनों है-----------------------नीति कुनीति के शोर के बीच -- जीत किसके ओर है?
चोखेलाल
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मुखिया के मुखारी में व्यवस्था पर चोट करती चोखेलाल
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