चहुँओर चेतना जागृत हो रही अस्मिता की ललक सबमें दिख रही,सर्वोच्च न्यायलय ने देश के दो मसलों पर महत्वपूर्ण टिप्पणियां की 1984 के दंगो में एक कांग्रेसी नेता को दोषी पाया गया,पहला मसला माननीयों के अपराधों से जुड़ा है कई दागी संसद और विधानसभाओं के शोभा बढ़ा रहे,अपराधों के कलंकित इतिहास के साथ कानून बना रहे,जों है कानून के भक्षक वों कानून के संरक्षक बने बैठे, ये ऐब है सर्वदलीय, देशव्यापी कानून का इससे ज्यादा माखौल क्या उड़ाया जायेगा ? आतंकवादी देश द्रोह के आरोपी दस्यु संगीन धाराओं से आरोपित है कई माननीय 251 संसद सदस्य संगे गंभीर अपराधों से आरोपी है ,यही हाल राज्यों की विधानसभाओं का है,शिक्षित राज्य केरल औसत में नंबर एक है ,ये भारतीय शिक्षा व्यवस्था और लोकतंत्र की दुर्दशा की बानगी है,विमान अपहरण के आरोपी पाण्डेय बंधूओं की राजनीतिक हैसियत और माननीय बनने की शुरुवात से लेकर आज तक कितने बाहूबलियों ने सजा की जगह माननीय की हैसियत पाई, वर्तमान लोकसभा में भी इन आकड़ो का दर्शन है,काश न्यायलय ने तभी इन पर संज्ञान लिया होता शुरुवात में ही तल्ख़ टिप्पणियां की होती तों उत्तरोत्तर दागियों के माननीय बनने का सिलसिला चालू ही नही हुआ होता । पाण्डेय बंधू कांग्रेस के पैदाइश थे ,अपराध की चाटुकारिता में माफ़ हो गया, वों माननीय हो गए,दस्यु सुन्दरी फूलन देवी संसद की सीढ़िया चढ़ गई,कानून और कानून के रखवाले देखते रह गए, राजनीतिक दलों को बाहुबलियों में जीत की संभावना दिखने लगी बूथ कैप्चरिंग कर कर के अलहादित बाहुबलियों को राजनीति में संभावना दिखने लगी, दुसरों के लिए वोट और जीत छिनने के बजाय उन्होंने यही काम अपने लिए किया।
राजनीतिक दलों ने पूरी बेशर्मी के साथ उन्हें प्रत्याशी बनाया जीत की प्रत्याशा में उन्होंने हर गैर संवैधानिक काम किया, क्षेत्रीय दलों का उभार बाहुबलियों के मदद से ही हुआ धीरे -धीरे यह अपराधिकरण भारतीय राजनीति में सर्व स्वीकार हो गया दलों ने उम्मीदवारी दी जनता ने मुहर लगा जीत दी, राजनीतिक सुचिता गए दिनों की बात हो गई, हिंसक प्रवृतियों ने लोकतंत्र का नकाब पहन लिया ,आज भी कई ऐसे नेता है ,ताजा उदाहरण अमानतुल्लाह खान का है, जिस देश की संसद में फूलन देवी बैठ सकती है ,वहां क्या मापदंड और कैसा आदर्श ? न्यायलय की टिप्पणी है अति गंभीर पर गंभीरता देर से जागी अब जाग गई है तों जागी रहे दागियों को उनके मुकाम तक पहुंचाए जब जेल में रहकर मताधिकार का प्रयोग नही किया जा सकता तों फिर चुनाव लड़ने का किसी को अधिकार क्यों ? फ्री बीज की राजनीति पर भी सर्वोच्च न्यायालय को ऐतराज है, जायज है ,पर फिर वही देरी दक्षिण की राजनीति से उपजा फ्री बीज अपने सब से भयावह रूप में दिल्ली में दिखी, वैकलिप राजनीति का झंडा बुलंद करने वाले केजरीवाल ने फ्री बीज के भरोसे सत्ता पाई ,फिर तों चलन चल निकला सभी राजनीतिक दलों की चाल फ्री बीज पर आ टिकी, जीत की गारंटी बन गए ये फ्री बीज कल्याणकारी योजनाओं की आड़ में खूब रेवड़िया बांटी।
कई राजनीतिक हस्तियों का अस्तित्व कायम इन्ही से है,कल्याण और परजीविता में अंतर तों उतना ही है जीतना लोकतंत्र और भीड़तंत्र में है.भीड़ बनाने का चूरण है ,फ्री बीज,भीड़ को मुद्दों से भटकाया जा सकता है स्वार्थी बनाया जा सकता है,महतारी वंदन योजनायें अलग -अलग नामों से अलग -अलग प्रदेशों में चल रही है अंतोगत्वा उन्हें महतारी वंदन योजनाओं में परिणित होना है ,जिस बजट से लालों के रोजगार सृजित हो सकते है उस बजट से महतारी सम्मान सामर्थ्यता प्रदान कर रहा या परजीवी बना रहा ,देश की आर्थिक स्थिति तों कमजोर कर जीत का लालच देश को गर्त की ओर ढकेलेगा, वेनेजुएला का इतिहास सबकों पता है फिर भी पता नही क्यों सारी राजनीतिक दलों की यही मंशा है,कोई इससे हिलने को तैयार नही सबकों सत्ता हिलने का डर है, सबके चुनावी घोषणा पत्रों का ये अभिन्न अंग है ।84 के सिक्ख दंगो में अब जाकर कांग्रेसी नेता सज्जन कुमार दोषी पाए गए, कांग्रेस 84 के दंगो की जवाबदारियों से भागती थी अब तों उत्तरदायी हो गई वीभत्स नरसंहारो का इतिहास स्वतंत्रता आंदोलन के पहले बाद में रहा फिर भी सजा क्या किसी ने इसकी जवाबदारी नही ली,देर से ही हुआ पर कुछ तों हुआ बाकि आरोपियों की सांसे अटकी तों होंगी ,न्याय की देरी के लिए कौन है उत्तरदायी? क्या सर्वोच्च न्यायालय इसका संज्ञान लेगा ? न्याय देरी से मिले तों हो न्याय नही क्या इस बात का न्याय करेगा ? करवट बदलती चेतना में तब सबकों चेतनता की तलाश है बदलती परिस्थितियों में अस्मिता की दरकार सबकों है न्याय सर्वोच्च बना रहे सबकी आस है इसलिए ----------------------------------सर्वोच्च न्यायालय की सर्वोच्चता हर हाल में बनी रहे...
चोखेलाल
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मुखिया के मुखारी में व्यवस्था पर चोट करती चोखेलाल
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