कैसे होता है नागा साधुओं का अंतिम संस्कार? ना जलाया जाता न ही जाता दफनाया...

कैसे होता है नागा साधुओं का अंतिम संस्कार? ना जलाया जाता न ही जाता दफनाया...

हिंदू धर्म में नागा साधुओं का जीवन एक रहस्य और तपस्या का प्रतीक होता है। ये साधु अपनी कठोर साधनाओं और तपस्विता के लिए प्रसिद्ध हैं, और उनके जीवन का प्रत्येक पहलू एक विशेष उद्देश्य और गहरे अर्थ से जुड़ा होता है। विशेष रूप से, उनके अंतिम संस्कार की प्रक्रिया भी अन्य हिंदू परंपराओं से अलग और अत्यधिक विशिष्ट है। आइए जानते हैं नागा साधुओं का जीवन, उनके अंतिम संस्कार की विधि, और यह कैसे विभिन्न हिंदू परंपराओं से भिन्न है।

नागा साधु का जीवन

नागा साधु बनने के लिए व्यक्ति को 12 साल तक कठोर तपस्या करनी होती है। इस अवधि के दौरान, साधु शरीर और मन को पूरी तरह से नियंत्रित करने का अभ्यास करते हैं। एक बार जब वे नागा साधु बन जाते हैं, तो वे गांवों या शहरों की भीड़-भाड़ से दूर चले जाते हैं और पहाड़ों या जंगलों में बस जाते हैं। उनका जीवन सादगी और तपस्या से परिपूर्ण होता है, और वे ऐसे स्थानों पर रहते हैं जहां किसी बाहरी व्यक्ति का आना-जाना मुश्किल होता है। नागा साधु अपने जीवन में योग, ध्यान और समाधि के माध्यम से आत्मा को शुद्ध करने के प्रयास में रहते हैं।

नागा साधुओं का अंतिम संस्कार

हिंदू धर्म में किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद आमतौर पर उसे अग्नि से जलाया जाता है, जो शरीर के नष्ट होने के साथ-साथ आत्मा को मुक्ति का मार्ग भी दिखाता है। हालांकि, नागा साधुओं के मामले में यह परंपरा अलग होती है। उनका अंतिम संस्कार अन्य हिंदुओं की तरह अग्नि से नहीं किया जाता।

भू-समाधि की विधि

नागा साधुओं की मृत्यु के बाद उनके शरीर को जलाने की बजाय भू-समाधि दी जाती है। यह प्रक्रिया उनकी जीवनशैली और तपस्या के अनुरूप होती है। पहले उन्हें जल समाधि दी जाती थी, लेकिन अब नदियों के प्रदूषण के कारण उन्हें भू-समाधि दी जाती है।

भू-समाधि में, नागा साधु को सिद्धासन की मुद्रा में बैठाकर एक गड्ढे में दफनाया जाता है। इस दौरान, उन्हें स्नान कराकर साफ कपड़े पहनाए जाते हैं, और फिर मंत्रों का जाप करते हुए उन्हें धीरे-धीरे मिट्टी से ढक दिया जाता है। यह विधि उन्हें शांति और मोक्ष प्रदान करने के लिए होती है, और माना जाता है कि इस प्रक्रिया से उनकी आत्मा को फिर से जन्म लेने की आवश्यकता नहीं होती।

आत्मा को मोक्ष प्राप्ति

नागा साधु के अंतिम संस्कार में भू-समाधि देने की मान्यता है कि इससे उनकी आत्मा को शांति मिलती है और वह मोक्ष प्राप्त करती है। इसे एक तरह से साधु के गहरे योग और ध्यान की परिणति माना जाता है, जिसमें वह समाधि की स्थिति में होते हैं। इससे उनकी आत्मा को संसार के बंधनों से मुक्ति मिलती है।

अग्नि संस्कार से क्यों नहीं मिलता मुक्ति?

नागा साधु मानते हैं कि अग्नि संस्कार से आत्मा को मुक्ति नहीं मिलती है। वे प्रकृति के प्रति गहरे सम्मान और प्रेम का भाव रखते हैं, और उनका विश्वास है कि अग्नि से श्मशान में प्रकृति को नुकसान होता है। इसीलिए, वे अपनी मृत्यु के बाद भू-समाधि को प्राथमिकता देते हैं, जो उनके विश्वास और सिद्धांतों के अनुरूप है।

दूसरे धर्मों की अंतिम संस्कार विधि

यहां पर ध्यान देने योग्य बात यह है कि विभिन्न धर्मों में शव के अंतिम संस्कार के विभिन्न तरीके होते हैं। हिंदू धर्म में आमतौर पर अग्नि से अंतिम संस्कार होता है, जबकि पारसी धर्म में शव को पेड़ पर टांग दिया जाता है ताकि पशु-पक्षी उसे खाकर तृप्त हो जाएं। मुस्लिम धर्म में शव को दफनाया जाता है, और नागा साधुओं का अंतिम संस्कार भू-समाधि से किया जाता है।

नागा साधुओं का जीवन तपस्या और साधना से परिपूर्ण होता है, और उनका अंतिम संस्कार भी उनकी धार्मिक मान्यताओं और जीवनशैली के अनुरूप होता है। उनका विश्वास है कि अग्नि संस्कार से आत्मा को मुक्ति नहीं मिलती है, जबकि भू-समाधि उन्हें शांति और मोक्ष प्रदान करती है। यह उनकी प्रकृति और आत्मा की गहरी समझ का परिणाम है, जो साधना के हर पहलू में स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है।






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