भारत के धार्मिक अखाड़े और मठ, जिनकी जड़ें प्राचीन काल से जुड़ी हैं, अक्सर अकूत संपत्ति और धन के लिए चर्चा में रहते हैं। इन अखाड़ों की संपत्तियां और आय के स्रोत हमेशा लोगों के लिए जिज्ञासा का विषय रहे हैं। महाकुंभ जैसे बड़े धार्मिक आयोजनों में इन अखाड़ों का प्रभाव और भव्यता देखने लायक होती है। लेकिन सवाल यह है कि अखाड़ों के पास इतना धन और संपत्ति कहां से आती है?
अखाड़ों का इतिहास
अखाड़ों की स्थापना का श्रेय आदि शंकराचार्य को दिया जाता है। उन्होंने हिंदू धर्म की रक्षा और वैदिक परंपराओं को मजबूत करने के उद्देश्य से इन धार्मिक संस्थानों की नींव रखी। वर्तमान में भारत में 13 प्रमुख अखाड़े हैं, जो शैव, वैष्णव और उदासीन पंथों से जुड़े हैं। प्रत्येक अखाड़े का अपना अनुशासन और कार्यप्रणाली होती है। इन अखाड़ों का संचालन प्रमुख महंतों और संतों द्वारा किया जाता है।
श्रद्धालुओं के चढ़ावे से लेकर संपत्ति तक
अखाड़ों के पास धन मुख्य रूप से श्रद्धालुओं द्वारा दिए गए चढ़ावे, दान, और अर्पित की गई संपत्तियों से आता है। देशभर में फैले अखाड़ों के पास बड़ी संख्या में जमीन, मंदिरों के प्रबंधन से होने वाली आय, और कई बार व्यापारिक गतिविधियों से जुड़ी आमदनी होती है। कुछ प्रमुख अखाड़े जैसे जूना अखाड़ा और निरंजनी अखाड़ा के पास हजारों एकड़ भूमि और अन्य संपत्तियां हैं। इसके अलावा, महाकुंभ और अर्धकुंभ जैसे धार्मिक आयोजनों में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ जुटती है। ऐसे मौकों पर अखाड़ों को विशेष चढ़ावा मिलता है, जिसमें नकदी, आभूषण, और मूल्यवान वस्तुएं शामिल होती हैं। साथ ही, संतों और महंतों की व्यक्तिगत लोकप्रियता भी अखाड़ों की आय बढ़ाने में योगदान करती है।
भारत सरकार ने धार्मिक संस्थानों और ट्रस्टों को आयकर अधिनियम की धारा 11 और 12 के तहत छूट दी है। लेकिन इस छूट का लाभ तभी मिलता है, जब यह धन धार्मिक और परोपकारी कार्यों के लिए उपयोग किया जाए। इसके बावजूद, कई बार आयकर विभाग द्वारा अखाड़ों को उनके आय और संपत्तियों को लेकर नोटिस भेजे जाते हैं। हाल के वर्षों में, कुछ बड़े अखाड़ों पर आयकर जांच भी हुई है।
अखाड़ों की संपत्तियों का ब्योरा
निरंजनी अखाड़ा: महंत नरेंद्र गिरी के नेतृत्व में, यह अखाड़ा देश के सबसे धनी अखाड़ों में से एक है। इसके पास प्रयागराज के बाघंबरी मठ सहित कई बहुमूल्य संपत्तियां हैं।
जूना अखाड़ा: यह भारत का सबसे बड़ा अखाड़ा है, जिसकी शाखाएं देशभर में फैली हुई हैं। इसके पास भी व्यापक चल-अचल संपत्ति है।
महानिर्वाणी अखाड़ा: धार्मिक गतिविधियों और संपत्ति के मामले में यह अखाड़ा भी अग्रणी है।
अखाड़ों द्वारा प्राप्त धन का उपयोग मुख्य रूप से धार्मिक आयोजनों, संतों के जीवन यापन, और सामाजिक कल्याण कार्यों के लिए किया जाता है। कई अखाड़े अस्पताल, शिक्षण संस्थान, और धर्मशालाओं का संचालन करते हैं। लेकिन समय-समय पर इनकी आय और संपत्तियों के उपयोग को लेकर विवाद भी होते रहे हैं। महाकुंभ जैसे आयोजनों में अखाड़ों की भव्यता और उनकी आर्थिक शक्ति का प्रदर्शन खुलकर होता है। लाखों श्रद्धालु इन अखाड़ों के दर्शन और उनके शिविरों में भाग लेने के लिए पहुंचते हैं। अखाड़ों के लिए महाकुंभ न केवल धार्मिक आयोजन है, बल्कि अपनी आर्थिक ताकत और परंपराओं को प्रदर्शित करने का मंच भी है।
अखाड़ों का धन और उनकी संपत्तियां केवल धार्मिक विश्वास और परंपरा का प्रतीक नहीं हैं, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और सामाजिक संरचना का हिस्सा भी हैं। हालांकि, पारदर्शिता और धर्मार्थ उद्देश्यों के प्रति जिम्मेदारी बनाए रखना इन संस्थानों के लिए बेहद जरूरी है। महाकुंभ 2025 में अखाड़ों की भूमिका और उनकी भव्यता एक बार फिर लोगों के आकर्षण का केंद्र बनेगी।
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