ज्योतिष शास्त्र में सभी ग्रहों में से चंद्रमा को सबसे तेज गति से चलने वाला ग्रह माना जाता हैं, क्योंकि चंद्रमा हर ढाई दिन में राशि परिवर्तन करते हैं, ऐसे में वे किसी न किसी ग्रह के साथ युति बनाते है, जिससे योग-राजयोग का निर्माण होता है।वही देवगुरू बृहस्पति साल में एक बार राशि परिवर्तन करते है।
वर्तमान में देवगुरु बृहस्पति वृषभ राशि में विराजमान है। 5 मार्च को चंद्रमा वृषभ राशि में प्रवेश करेंगे, ऐसे में वृषभ राशि में गुरु और चंद्रमा की युति से शक्तिशाली गजकेसरी राजयोग का निर्माण होगा, जिसे ज्योतिष शास्त्र में बहुत शुभ माना जाता है। जो कई राशियों के लिए शुभ साबित होने वाला है। इन राशियों को धनलाभ के साथ कार्यों में सफलता मिलेगी।
3 की किस्मत चमकाएगा गजकेसरी राजयोग
कर्क राशि :मार्च में बनने वाला गजकेसरी राजयोग जातकों के लिए शुभ साबित हो सकता है ।निवेश के लिए समय अनुकूल रहेगा। आर्थिक स्थिति मजबूत होगी। स्वास्थ्य अच्छा रहेगा। कार्यों के सफलता मिलेगी। हर क्षेत्र में अपार सफलता हासिल हो सकती है। करियर के क्षेत्र में भी पदोन्नति हो सकती है। व्यापार में मुनाफा मिलेगा। परिवार के साथ अच्छा वक्त बीतेगा।
कन्या राशि: गजकेसरी राजयोग जातकों के लिए शुभ सिद्ध हो सकता है। आकस्मिक धन प्राप्ति के योग बनेंगे। मनोकामना पूरी हो सकती है। करियर व नौकरी में सफलता मिल सकती हैं। लव लाइफ अच्छी रहने वाली है। पार्टनर के साथ रिश्ता मजबूत होगा।भाग्य का पूरा साथ मिल सकता है। पारिवारिक रिश्तों में मजबूती बनेगी । स्वास्थ्य अच्छा रहेगा।
मेष राशि: गजकेसरी राजयोग जातकों के लिए लकी साबित हो सकती है। नौकरीपेशा को नौकरी के कई अवसर मिल सकते हैं।भाग्य का पूरा साथ मिल सकता है। आय में भी खूब बढ़ोतरी हो सकती है। लव लाइफ भी अच्छी रहेगी । आत्मविश्वास में वृद्धि होने से सभी काम समय से पूरे होंगे। कोर्ट के किसी मामले से राहत प्राप्त होने की संभावना है।स्वास्थ्य अच्छा रहेगा।जीवन में खुशियों की दस्तक हो सकती है। परिवार के साथ अच्छा वक्त बीतेगा।
कब बनता है कुंडली में गजकेसरी राजयोग
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, गजकेसरी योग मतलब हाथी के ऊपर सवार सिंह। इस योग में चंद्रमा की युति गुरु, बुध और शुक्र के साथ होती है। अगर चंद्रमा गुरु, बुध और शुक्र में से किसी एक से भी केंद्र में हो तो गजकेसरी योग का निर्माण जातक की कुंडली में होता है या अगर किसी जातक की कुंडली के लग्न,चौथे और दसवें भाव में गुरु-चंद्र साथ हो तो इस योग का निर्माण होता है। चंद्र या गुरु में से कोई भी एक दूसरे के साथ उच्च राशि में हो तो भी यह योग बनता है।
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