विवेकहीन सम्बद्धता सत्ताधीशों को भी सत्ता के लिए तरसा देती है ,गहरी जड़े भी उखाड़ देती है,बुद्धजीवियों (मीडिया) ने सत्ता की समीपता सस्वार्थ प्राप्त की चारण वंदना में पारंगत इन्होंने मुग्ध राजनेताओं को आत्म मुग्ध बनाया। भ्रमित हो दिग भ्रमित हो गए ,लोकतंत्र को राजतंत्र समझ बैठे, परिवारवादी राजनीति को ये चारण वंदना और भाई ,कई संपादक सांसद हो गए,तथ्य छुपाये गए लोकप्रिय नेताओं को लोक से दूर कर पेपरों में सजा दिया, उनमें विशिष्टता का भाव जगा दिया ,विशिष्टता ने लोकप्रियता का हास् किया सत्ता सिमटती गई कल का कमजोर विपक्ष मजबूती से सत्तारूढ़ हो गया, देश का राजनीतिक नक्शा बदल गया । विश्लेषण ये बुद्धजीवी बन करते है,चुनाव दर चुनाव इनके विश्लेषण औंधेमुंह गिरते है,जनता की नब्ज समझकर भी ये विश्लेषित अपने मन मर्जी करते है,बार -बार नेता ना जानें क्यों भूल करते है, इनके चक्करों में क्यों पड़ते है ? मीडिया के लाख कोशिशों नकारात्मक विश्लेषणों के बाद भी मोदी एक चुनाव नही हारे, जीतने शान से मुख्यमंत्री रहे, दुने शान से प्रधानमंत्री बन गए,राजनीतिक फिजा बदल गई, कर नही सकते कुछ तों नकल ही कर लों, पर उसके लिए भी अकल चाहिए ,पर जों शक्ल देख के चढ़ावा चढ़ाते है वों कैसे समझें महत्व मतों का ,कांग्रेस कहां से कहां चली आई, परिवारवादी सारे दल शिकार हो रहे ,बुद्धजीवियों ने ठाना है ताजा शिकार केजरीवाल को बनाना है, मीडिया ने केजरी से लाड़ लड़ाया खूब, लाडले को मतों के लाले है, सत्ता ही नही हारे ,अपनी सीट भी हारे है,बता रहे की भाजपा को सिर्फ 2% मत ज्यादा मिला, झूठ भाजपा को 4% मत ज्यादा मिला अर्धसत्य ,पूरा सच ये है की आप 54% मतों से घटकर 43% पे आ गई ।
भाजपा 9% मतों में वृद्धि कर गद्दी पा गई 67 सीटों पर कांग्रेस जमानत नही बचा पाई ,वों क्या आपकी सत्ता बचा लेती? मत प्रतिशत का यही समीकरण छत्तीसगढ़ में भी दोहराए जाएंगे, बुद्धजीवियों के नए -नए समीकरण सामने आएंगे ,जिन सरकारों ने शराब में प्रदेश को डुबाने की सोची जिन्होंने घपले घोटालों के काले कारनामें किए ,उन्हें जनता ने हराया ही नही खदेड़ दिया, क्या इन काले कारनामों की कोई झलक किसी ने मीडिया में तब देखी जब वों सत्ता में थे, हार के बाद बदलाव सवाल ही सवाल, बवाल के पुरे आसार ,ये असर कहां से आया सत्ता बदल गई तों आस्था बदल गई, जों कल तक पूज्यनीय थे वों आज पूजने लायक हो गए क्यों ? क्योंकि सामर्थ्यवान से समीपता चाहिए, कुछ हो ना हो खुद को सत्ता के करीब होना चाहिए ,सत्ता से सुख समृद्धि, भूमि ,मकान मिलता है, पत्रकारिता मिशन नही अब दुकान है जहां सबकुछ बिकता है,मीडिया की भूमिका छत्तीसगढ़ में भी ऐसी ही थी घोटाले दर घोटाले होते रहे सत्ताधीशों ने लुट का गिरोह बना लिया,कोई विभाग ऐसा नही था जों भर्ष्टाचार से अछूता नही था,कारनामे ये तब उनके छूते नही थे । घोटाले छपते नही थे ,मुठठी भर नेताओं, कारिंदों और उनके गिरोह का मन नही पढ़ पाए ,वों करोड़ो मतदाताओं के मन पढ़ने का दावा करते है, जिन्हें नही पोल की समझ वों एग्जिट पोल कर खुद की पोल खोलते है,जाँच एजेंसियों के जाँच के बाद भी जों मौन थे वों सत्ता बदलते ही मुखर हो रहे, लीज की चीज, विज्ञापन का सवाल है अंधत्व का अपनत्व था अब अपनत्व दिखा नए को भी अंधत्व का शिकार बनाने की योजना है, ईवीएम और सारी संवैधानिक संस्थाओं पे सवाल विपक्षी बिना इनके सहारे नही लगाते है।
हारों को सहारा निस्वार्थ नही है ,जीत जाए हारे कभी तों ये भी दशकों के सूखे को हरा कर ले, पिछले पांच साल का इतिहास यही है छतीसगढ़ और छत्तीसगढ़ियों का भविष्य बर्बाद होते रहा, ये कागज बर्बाद करते रहे, हवा नही लगी इनको घोटालों की ,बिना हया मीडिया काम करता रहा,भर्ष्टाचार के आरोपी नेता सारे कार्यवाहियों को राजनीतिक बदला बताते, ये उनका बयान छाप अपना भविष्य बदलते जाते ,जन सरोकारों से दूर सरकारों के दूत चारण वंदना की सारी सीमाए पार कर जाते ,जैसे ही जाँच एजेंसीयां आरोपियों को अंजाम तक पहुचायेंगी ये गाल बजायेंगे ,हमें सब पता हम कलम जनता के प्रहरी ना सोए पूरी दोपहरी का राग अलापेंगे ,मृत देह में जान आ जाएगी, सत्ता से फिर निकटता मिल जाने की आस जग जाएगी ,जों बुद्धजीवी नही समझ पाए वों आम मतदाताओं ने समझ लिया,वापसी पुरानी सरकार की बता -बता थक रहे थे ,नेताओं के कुकर्मों से थकी जनता ने सरकार को ही पटक दिया,हार का सिलसिला अनवरत जारी है, दुर्दशा शहरी सरकारों में दिखी ,अब ग्रामीण सरकारों की बारी है,जिनके लिए महत्ता नही जनता की उनकी सत्ता जाती है,जनहित में राजनीति सध जाती है,स्वहित में --------------------------------सत्ता क्या कलम के रंग भी बेरंग हो जाते है ।
चोखेलाल
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मुखिया के मुखारी में व्यवस्था पर चोट करती चोखेलाल
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