जांजगीर चांपा : छत्तीसगढ़ के जांजगीर-चांपा जिले से अलग होकर बने नए जिले सक्ती के अंतर्गत तुर्री धाम स्थित है. यह स्थान शिवभक्तों के लिए अत्यंत पूजनीय है. यहां श्रद्धालु सालभर दर्शन करने आते हैं, लेकिन महाशिवरात्रि और सावन महीने में शिवभक्तों की संख्या बहुत अधिक होती है.स्थानीय दृष्टिकोण से यहां का शिवलिंग प्रमुख ज्योतिर्लिंगों के समान ही वंदनीय और पूजनीय है.
तुर्रीधाम सक्ती-चांपा मार्ग पर
सक्ती जिला मुख्यालय से 12 किलोमीटर की दूरी पर ग्राम पंचायत बासीन के अंतर्गत आता है. महाशिवरात्रि के समय लाखों श्रद्धालु यहां दर्शन करने आते हैं, जबकि सावन मास में शिवभक्तों की संख्या हजारों में होती है. मंदिर के निर्माण के बारे में जानकारी देते हुए पंडित गौतम पुरी गोस्वामी ने बताया कि इसका निर्माण सक्ती के पूर्वजों की ओर से कराया गया था, लेकिन यह किस राजा के शासन में निर्मित हुआ, यह अज्ञात है. इसका जीर्णोद्धार 3-4 पीढ़ियों से किया जा रहा है.
उत्तरमुखी प्राचीन शिवलिंग स्थापित
वर्तमान में यह मंदिर पूरी तरह से आधुनिक स्वरूप में आ गया है. इस मंदिर का स्थापत्य अनोखा है. इसके चारों ओर मंडप बनाया गया है. गर्भगृह मंदिर के मुख्य प्रवेश द्वार से 8 फीट की गहराई पर है, गर्भगृह जाने के लिए नीचे की ओर सीढ़ियां बनी हुई हैं. यहां शिवलिंग पूर्वाभिमुख है. इस तुर्रीधाम की प्रमुख विशेषता यह है कि इसके गर्भगृह में एक प्राकृतिक जलस्रोत है, जिसे स्थानीय भाषा में तुर्री (निरंतर) कहते हैं. यह जलस्रोत अनादि काल से अनवरत बहता आ रहा है. जहां से जलाभिषेक हो रहा है, वहां दीवार पर योनि आकार बना हुआ है. यह जल कहां से आ रहा है, यह आज भी रहस्य है. इसका पता भूवैज्ञानिक भी नहीं लगा पाए हैं. इसी जल पुंज के नीचे ही उत्तरमुखी प्राचीन शिवलिंग स्थापित है, जिस पर सदैव ही प्राकृतिक रूप से जल अभिषेक होता रहता है.
जलस्रोत आज भी है रहस्य…
पंडित ने बताया कि इस जलस्रोत का स्रोत आज तक पता नहीं चल पाया है. इस जलस्रोत की खासियत है कि इसकी गति वर्षा, ग्रीष्म, शीत ऋतु में अलग-अलग समय में धीमी और तेज हो जाती है. लेकिन यह जलस्रोत आज तक बंद नहीं हुआ है. इस जल पुंज को स्थानीय लोग गंगाजल के समान ही पवित्र और औषधीय गुणों से भरपूर मानते हैं और बोतलों में भरकर अपने घर ले जाते हैं. मान्यता है कि अस्वस्थ होने पर इस जल को पिलाने से अत्यंत लाभ मिलता है. मंदिर के गर्भगृह में शिवलिंग के निकट ही नंदी पश्चिम की ओर मुख किए विराजमान हैं. इस प्राचीन नंदी की खंडित प्रतिमा को ग्रामीण गज समझते हैं, वहीं दूसरा नंदी मंदिर के शिवलिंग के सम्मुख जलधारा घाट के समीप जीर्णोद्धार के समय बनाया गया. गर्भगृह में अन्य देवी-देवता भी विराजमान हैं. शिवालय से टीले की ओर रामजानकी जी मंदिर, देवी दुर्गा जी मंदिर, हनुमान जी का मंदिर जैसे दर्जनों मंदिर तुर्रीधाम में विद्यमान हैं. पंडित ने बताया कि यहां महाशिवरात्रि में 15 दिन का मेला लगता है और सावन माह में 1 माह का मेला लगता है. यहां दर्शन के लिए छत्तीसगढ़ के विभिन्न जिलों के अलावा पड़ोसी राज्य ओडिशा, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और अन्य राज्यों से भी श्रद्धालु पहुंचते हैं.
क्या कहते है भक्त
श्रद्धालु हर्ष राठौर ने बताया कि वह बाराद्वार किरारी का रहने वाला है, लेकिन वर्तमान में मुंबई में रहता है. जब भी वह अपने घर किरारी आते हैं, तब तुर्रीधाम जरूर आते हैं. यहां शिव जी के दर्शन करके मन बहुत खुश हो जाता है. अभी महाशिवरात्रि के उपलक्ष्य पर वह परिवार के साथ तुर्रीधाम दर्शन करने आए हैं और परिवार की सुख-शांति के लिए बचपन से यहां दर्शन करने आ रहे हैं.
Comments