उत्तराखंड में बाहर वाले नहीं खरीद पाएंगे जमीन

उत्तराखंड में बाहर वाले नहीं खरीद पाएंगे जमीन

उत्तराखंड सरकार राज्य के 13 में से 11 जिलों में कृषि या फिर बागवानी की जमीन के बाहरी लोगों के खरीदने पर रोक लगाने जा रही है. इसको लेकर उत्तराखंड कैबिनेट ने बुधवार को एक विधेयक को मंजरी दे दी. इसे मौजूदा बजट सत्र में विधानसभा में पेश किया जाएगा. जिन दो जिलों को नए कानून में छूट होगी, वे हैं – हरिद्वार और उधम सिंह नगर. अब जिला अधिकारियों के पास भी जमीन खरीदने के लिए किसी को मंजूरी देने का अधिकार नहीं होगा.

फिलहाल, ऐसी व्यवस्था थी कि उत्तराखंड के बाहर के लोग 250 वर्ग मीटर जमीन नगरपालिका की सीमाओं के बाहर खरीद सकते थे. नए कानून के तहत, एक पोर्टल बनाई जाएगी. जहां जमीन की खरीद-बिक्री से जुड़े सभी रिकॉर्ड्स मौजूद होंगे. मगर ध्यान दिया जाना चाहिए कि फिर्फ उत्तराखंड ही में नहीं. बल्कि इस से इतर हिमाचल प्रदेश, नागालैंड, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश में कृषि वाली भूमि और बाहरियों के लिए जमीन खरीदने को लेकर ऐसी ही कुछ व्यवस्था है. आइये इसे विस्तार से जानें.

पहला – हिमाचल प्रदेश के पहाड़ियों में बने पर्यटन स्थलों में जाना भारतीयों को खूब अच्छा लगता है. हर साल हजारों लोग हिमाचल प्रदेश जाते हैं मगर उन्हें यहां जमीन खरीदने की इजाजत नहीं है. 1972 के भूमि कानून की धारा 118 के तहत कोई भी ऐसा शख्स जो किसान नहीं है या फिर बाहरी है, वे हिमाचल प्रदेश में कृषि की जमीन नहीं खरीद सकते.

दूसरा – नागालैंड 1963 में एक राज्य बना था. संविधान के अनुच्छेद 371ए के प्रावधानों के तहत इस विशेष अधिकार हासिल है. जिसके तहत कोई भी बाहरी शख्स यहां जमीन नहीं खरीद सकता. यहां के कानूनों के मुताबिक केवल राज्य के आदिवासी तबके के लोग ही जमीन का अधिग्रहण कर सकते हैं.

तीसरा – नागालैंड ही की तरह सिक्किम को भारत के संविधान में कुछ खास अधिकार हासिल हैं. अनुच्छेद 371 के ही तहत सिक्किम को ये विशेष अधिकार हासिल है जहां जमीन और संपत्ति को किसी बाहरी शख्स को बेचने या खरीदने पर रोक है. वहीं, सिक्किम के आदिवासी इलाकों में केवल आदिवासी लोग ही जमीन या फिर संपत्ति खरीद सकते हैं.

चौथा – अरूणाचल प्रदेश भी पर्यटकों के लिहाज से काफी अहम है. यहां भी बाहरी लोगों के जमीन खरीदने पर रोक है. यहां कृषि योग्य जमीन को सरकार की मंजूरी के बाद ही किसी को ट्रांसफर किया जा सकता है. हाल तक, अरुणाचल प्रदेश में यह व्यवस्था थी कि यहां के मूल निवासी – आदिवासियों को भी अपने जमीन पर एक व्यक्ति के तौर पर नहीं बल्कि समुदाय के नाते अधिकार थे.






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