आम दो साल में फल देने वाला पौधा है. पहले साल में इसका पेड़ अच्छी उपज देता है, जो अगले साल थोड़ी कम हो जाती है. हालांकि यह पेड़ कई तरह की मिट्टी में अच्छी तरह से उगता है, लेकिन सही खादों और अच्छी सिंचाई तकनीकों के साथ पेड़ को हर साल फल देने लायक बनाया जा सकता है. तमिलनाडु के चेंगलपट्टू जिले के ममपक्कम गांव के किसान पी. वीरभद्रन एक आम किसान हैं, जिन्होंने अपनी 0.7 हेक्टेयर जमीन पर बंगनापल्ली और रुमानी दोनों तरह के आम उगाए हैं.
किसान वीरभद्रन ने बताया, "एक दशक पहले मैं धान और सब्ज़ियां उगा रहा था." "पानी की भारी कमी और लगातार मॉनसून की नाकामी के कारण मेरी फसल का एक बड़ा हिस्सा बर्बाद हो गया. इस समस्या से निपटने के लिए मैंने दूसरी फसलें उगाने के बारे में सोचा, जिसमें धान से कम पानी की जरूरत होगी और मैंने अपने खेत में आम लगाने का फैसला किया. फिलहाल मेरे खेत में लगभग 250 बंगनपल्ली और 400 रुमानी किस्में हैं. दोनों किस्में मुझे हर साल अच्छी आमदनी देती हैं," उन्होंने बताया.
आम के बाग में कई फसलों की खेती
उन्होंने बताया, "आम के पौधे लगाने के बाद पहले चार सालों तक मैंने आमदनी बढ़ाने के लिए सब्जियां और मूंगफली जैसी कई तरह की अंतर-फसलें (इंटर क्रॉप) उगाईं. फसल कटने के बाद अंतर-फसलों को हरी खाद के तौर पर मिट्टी में मिला दिया गया." फलों को पांचवें साल ही तोड़ा गया. उन्होंने आम लगाने के लिए उसकी कलम खरीदी थी और उन्हें सीधी लाइनों में लगभग 6 फीट की दूरी पर लगाया था.
रोपाई से पहले, सड़ी हुई गोबर की खाद मिलाकर जमीन को अच्छी तरह से जोता गया. लगभग 3 घन मीटर गड्ढे खोदे गए और हर गड्ढे के तीन-चौथाई हिस्से को लगभग 20 किलो गोबर की खाद से भर दिया गया.
आम के पौधों को इस तरह लगाया गया कि ग्राफ्ट किया गया हिस्सा मिट्टी की सतह से ऊपर रहे और गड्ढों को रेत से बंद करके सिंचाई की गई. सिंचाई मुख्य रूप से ट्यूबवेल से की गई और नए लगाए गए पौधों को हर 5 दिन में एक बार सिंचाई की गई. वीरभद्रन के अनुसार, रोपाई के 3 साल बाद, हर 15 दिन में एक बार सिंचाई की गई.
खाद के रूप में सड़ी गोबर का इस्तेमाल
हर साल अगस्त-सितंबर के दौरान पेड़ों को नियमित रूप से सड़ी हुई गोबर की खाद और नीम की खली से खाद दी जाती थी. आम के लिए जरूरी अन्य सामान्य तरीके जैसे कि ग्राफ्टेड हिस्से के नीचे की टहनियों की छंटाई, निराई और समय-समय पर बाग की जुताई भी की जाती थी. वीरभद्रन ने बताया कि पहले 3-4 सालों तक पेड़ों को फूल नहीं लगने दिए गए और अगर फूल दिखाई दिए तो उन्हें हाथ से हटा दिया गया.
पेड़ों को फल मक्खी और फल छेदक जैसे कीटों से बचाने के लिए किसान ने देसी विधि अपनाई. नीम, अडाथोडा, पुंगई, नोची और पेरांडई (तमिल नाम) की पत्तियों से बने पेस्ट को 15-20 दिनों तक गाय के मूत्र में भिगोया गया. 15 दिनों के बाद घोल को छान लिया गया और फिर पानी में घोल दिया गया (10 मिली पानी में 1 मिली पेस्ट) और पेड़ों ऊपरी हिस्से (फुन्गी) पर छिड़का गया.
अच्छी उपज के लिए पंचगव्य का छिड़काव
रोपाई के पांचवें साल से फलों को पकने दिया गया. जब पांचवें साल में पेड़ों में फूल आने लगे, तो पेड़ों की फुन्गी और तने पर अच्छी मात्रा में पतला पंचगव्य छिड़का गया. वीरभद्रन ने बताया कि मॉनसून के दौरान पेड़ के तने से लगभग दो फीट की दूरी पर गोल गड्ढों में खेत की खाद और चूरा बनाई गई नीम की खली डाली गई.
उन्होंने कहा, "मैंने खेती, अंतर-फसल की कटाई, पेड़ों की देखभाल और मजदूरी पर प्रति हेक्टेयर करीब 15,000 रुपये खर्च किए हैं. मुझे इस साल 8-10 टन रुमानी आम के फलों की फसल की उम्मीद है." रुमानी आम आम के मौसम के आखिर में बाजार में आते हैं और जब अन्य किस्में खत्म हो जाती हैं, तब उन्हें अच्छी कीमत मिलती है. सामान्य तौर पर इसकी कीमत 70 रुपये किलो के आसपास होती है. इस तरह वीरभद्रन को 7 लाख रुपये तक कमाई होने की उम्मीद है.
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