संभल के मसले पर विपक्षी दलों का दिल सम्हल नही रहा था,छाती फाड़कर बाहर आ रहा था ,संभल में बारंबार गिरे जा रहा था ,उदंडता सिखाना विपक्षियों का दंड विधान बन गया है, संभल में सर्वे ना हो, पुलिस और वकील पर प्राण घातक हमले से लेकर दंगे तक की योजनाएं थी, इस हिंसा के तार दुबई तक जुड़े पाए गए, जाँच एजेंसियों को दिए गए आरोपियों के बयान बता रहे की धर्मान्धता कितनी क्रूर है ,सामजिक समरसता को तोड़ने कितनी आतुर है ,सपा सांसद संभल और कई सफ़ेदपोशों की भूमिका संदिग्ध है ? संभल हिंसा पर रुदाली बने नेताओं की बेहयाई का आलम ये है की वों जब चाहे हल्ला कर सकते है, जब चाहे गूंगे बन सकते है ? परत दर परत साजिश की परते खुल रही,संभल हिंसा का मकसद और कारण स्पष्ट हो रहे,US एड का मसला भी खुल गया, ट्रम्प का बयान आ गया सोरेस की करस्तानी ,इंडिया गठबंधन के नेताओं की बेईमानी और वायडन की शैतानी सब सामने आ गए,क्यों उन्हें भारत में सत्ता परिवर्तन चाहिए था ? क्यों विपक्ष अति उत्साही था ? मुद्दे मूल नही विदेशी थे, ये साबित हो गया,जैसे -जैसे खुलासे होंगे वैसे -वैसे कई नेताओं के पैजामें के नाड़े खुलेंगे,छत्तीसगढ़ में बलौदाबाजार हिंसा मामलें में आरोपित भिलाई विधायक देवेन्द्र यादव की जमानत हो गई ,सर्वोच्च न्यायालय में छत्तीसगढ़ सरकार के अभियोजन कर्ताओं ने बचाव पक्ष के आरोपों को लेकर कोई काउंटर ऐफ़ी डेबिट नही दिया ,इसी तकनीकी आधार पर राह आसान हुई, सर्वोच्च न्यायालय ने जमानत दे दी,ऐसे ही तकनीकी आधार पर कुछ मामलों में घोटाले के आरोपियों की जमानत हो चुकी हैं।
जमानत में प्रबंधन की भूमिका कितनी होती है ,कोई कह नही सकता पर प्रबंधन की कोशिशें होती हैं,नान घोटाले के मसले पर पूर्व महाधिवक्ता से लेकर कुछ IAS अफसरों पर इसी का केस न्यायालय में लंबित हैं,सरकार के संज्ञान में है,भिलाई की तैयारियां बता रही थी कि भिलाई विधायक को पूर्वानुमान था ,ख़ुशी का अहसास पहले से था,ये कमाल न्याय व्यवस्था की है ,या फिर प्रबंधन का कमाल है ? या फिर ये सरकारें बदल जाती है व्यवस्थाएं नही बदलती वाली व्यथाएं हैं । कानाफूसी हो रही की भाजपा नेता भी मददगार हैं, बलौदाबाजार हिंसा छत्तीसगढ़ के सामाजिक ताने बाने को छिन्न -भिन्न करने वाला ,प्रशासनिक अवसान था,जिसे राजनीतिक रंग देकर कानून की धज्जियाँ उड़ाई गई, ऐसे मसलें का विशुद्ध राजनीतिक हल खोजना क्या न्याय को स्थापित करेगा? घोटालों की लम्बी फेहरिस्त आज तक खत्म नही हुई है, पूर्ववर्ती सरकार के काले कारनामों की गिनती बढ़ते ही जा रही है,पर क्या सरकार एक प्याज को छिलने में सालभर से उपर का समय लेगी ? क्या यही सुशासन है ? या फिर ये किसी नए राजनीतिक समीकरण की आहट है? हर राजनीतिक दल में बड़े -बड़े वकील है ,राजनीतिक अंतर्द्वंद के बाद भी संग लड़ते कानूनी द्वंद है, चाहे वों पूर्व कानून मंत्री कपिल सिब्बल हो या फिर रविशंकर प्रसाद, ऐसे उदाहरणों की भी लम्बी फेहरिस्त है।
बड़े खिलाड़ियों के मसले बड़े,बड़ा उनका प्रबंधन होता हैं , राजीव शुक्ला छत्तीसगढ़ से कांग्रेस के राज्यसभा सांसद हैं,भाजपा सांसद पूर्व कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद के दामाद हैं,समझदार को ईशारा काफी ईशारों में प्रबंधन हो रहा ,जनता भले देर से समझेगी ,शाषन को समझ आ गया होगा,घोटालों की जाँच क्या ? अभी तक फेहरिस्त पूरी नही हुई हैं,काबिल जिन्हें आप समझ रहें उनकी काबिलियत का कभी आंकलन किया,यदि अभियोजन ने ऐसी गलती की या वों इसकी आदि है? तों फिर इस सरकारी फ़ौज की आवश्यकता क्या है ? गिरगिटो को रंग बदलना आता है तों क्या वों कानून भी बदल लेंगे? न्याय को बाधित करेंगे,जाँच एजेंसी और अभियोजन में सामंजस्य क्यों नही है ? क्या जाँच एजेंसियों का मनोबल ऐसे में नही टूटेगा ? जीतोड़ मेहनत से जाँच की जाय, साक्ष्य जुटाय जाए,राजनीतिक दबाव झेलें और हासिल यदि शून्य हो तों फिर ऐसी जाँच की क्या विश्वसनीयता? क्या अभियोजन उच्चतम न्यायालय में सरकार का पक्ष नही रख पा रही,ऐसे में आरोंप कैसे न्यायालय में साबित होंगे, ईमानदार जाँच अधिकारी साबुत कैसे बचेंगे ? राजनीतिक घोटालों की जाँच पीठ खुजाने वाली प्रवृति के साथ होगी तों ऐसी जांचो से ईमानदार जाँच अधिकारी पीठ फेर लेंगे ,कानून विदों की फ़ौज विधि सचिव और सुशासन का दावा फिर भी पैरवी का तरीका बेरुखी भरा , ऐसा क्यों क्या सरकार अपने इन कारिंदों से सवाल पूछेगी ? उन्हें उत्तरदायी बनाएगी या फिर सिर्फ दावे होते रहेंगे मान कानून का घटता रहेगा ? शासन कारिंदों पर ,मंत्रालय विभागों पर प्रभावी नही हो पा रहा ,तों फिर परिणाम कहां से आयेगा ? जमानत कानून का मत है ,पर जनमत की परवाह तों सरकार को करनी होगी,दांवो से सरकार चल भले जाय चुनी नही जाती,पूर्ववर्ती सरकार की गति आपने भी देखी है ,प्रगति वैसी ही हो रही है, व्यवस्थाएं इंच भर भी बदली नही दिखती,मौज में आरोपी ,मौज में राजनीति,और जनता बंधक नही होती ,समय आने पर अच्छे अच्छों को बांध देती है,ना मौसम है अब चुनावों का ,ना कोई राजनीतिक मज़बूरी है ,फिर इन आरोपियों के आगे सरकार की कैसी मज़बूरी है,क्या विधि विभाग ने कानूनी लापरवाही की ,या कानून के लिए ही लापरवाह है? बस एक सवाल है ------------------दावा दिखावा या सही में हैं सुशासन?
चोखेलाल
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मुखिया के मुखारी में व्यवस्था पर चोट करती चोखेलाल
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