एलोवेरा की खेती कम लागत में अधिक आय,जानें कैसे करें

एलोवेरा की खेती कम लागत में अधिक आय,जानें कैसे करें

नई दिल्ली: एलोवेरा की खेती कम लागत में अधिक आय – आयुर्वेदिक उपचार पद्धति में लोगों की बढ़ती रुचि औषधीय फसलों की खेती में वृद्धि का एक महत्वपूर्ण कारण है। मध्य प्रदेश औषधीय फसलों की खेती में देश में दूसरे स्थान पर है, औषधिय खेती से किसानों को जोड़ने के लिए राष्ट्रिय आयुष मिशन की ओर से सहायता प्रदान की जाती है। उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार देश में लगभग 55000 किसान औषधीय फसलों की खेती करते है।

घृतकुमारी या एलोवेरा एक महत्वपूर्ण औषधीय फसल है जिसका उत्पादन और उपयोग लगातार बढ़ रहा है। एलोवेरा की बाजार में बढ़ती मांग को देखते हुए इसकी खेती मुनाफे का सौदा साबित हो रही है। हर्बल और कास्मेटिक्स में इसकी मांग निरंतर बढ़ती ही जा रही है। इनमें अधिकांशतः एलोवेरा का उपयोग किया जा रहा है। वहीं हर्बल उत्पाद व दवाओं में भी इसका प्रचुर मात्रा में उपयोग किया जाता है। यह कम पानी की उपलब्धता में भी उग सकता है इसलिए राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के शुष्क और अर्ध-शुष्क असिंचित क्षेत्रों में खेती के लिए सबसे उपयुक्त है।

एलोवेरा खेती प्रशिक्षण

केंद्रीय औषधीय एवं सगंध पौधा संस्थान (सीमैप) लखनऊ औषधीय फसलों की खेती तकनीक का प्रशिक्षण प्रदान करता है। इसका रजिस्ट्रेशन ऑनलाइन होता है और निर्धारित फीस के बाद ये प्रशिक्षण प्राप्त किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त नजदीकी कृषि केंद्र से भी इसकी खेती की तकनीक के विषय में जानकारी प्राप्त की जा सकती है। विभिन्न निजी संस्थान जो औषधीय उत्पादों पर निर्भर होते है वे भी इसकी खेती के लिए प्रशिक्षण का कार्य करते है।

जलवायु व भूमि

एलोवेरा की खेती के लिए उष्ण जलवायु अच्छी रहती है। यह फसल 35-40 सेमी. की औसत वार्षिक वर्षा वाले उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में अच्छी तरह से पनपती है। इसकी खेती आमतौर पर शुष्क क्षेत्र में न्यूनतम वर्षा और गर्म आर्द्र क्षेत्र में सफलतापूर्वक की जाती है। यह पौधा अत्यधिक ठंड की स्थिति के प्रति बहुत संवेदनशील है। एलोवेरा को रेतली तटवर्ती से मैदानों की दोमट मिट्टी में उगाया जा सकता है। यह पौधा जल जमाव वाली भूमि के लिए अनुकूल नहीं है। जब इसे अच्छे जल निकास वाली दोमट से रेतली दोमट और 8.5 पी.एच. वाली जमीन में उगाया जाये तो यह अच्छे परिणाम देती है।

बुवाई का उचित समय

अच्छे विकास के लिए एलोवेरा के पौधे जुलाई-अगस्त में लगाना उचित रहता है। वैसे इसकी खेती सर्दियों के महीनों को छोडकर पूरे वर्ष की जा सकती है।

किस्मे

क्रमांक किस्म विशेषता
1  टाइगर एलो यह एलोवेरा की सबसे खूबसूरत प्रजातियों में से एक है,
इसे बड़े पैमाने पर खेतों में उगाया जाता है.
इसमें तलवार के आकार की पत्तियां होती हैं, जिस पर
चितकबरे धब्बे होते हैं।
2  एलो
डेस्कइंगसी
 यह एलोवेरा की सबसे छोटी प्रजाति होती है. यह किस्म केवल 2-3 इंच तक बढ़ती है, इसकी गहरे हरे रंग की पत्तियों पर सफेद सफेद धब्बे होते हैं, गर्मियों के दौरान इस पर पीले-नारंगी रंग के फूल खिलते हैं।
3  रेड एलो  रेड एलो किस्म में एंटी-ंउचयमाइक्रोबियल गुण पाए जाते
हैं, यह गुण मानव -रु39यारीर के लिए काफी फायदेमंद होते
है।यह एलोवेरा के सबसे आक-ुनवजर्याक किस्मों में से एक
है।
4  एलो
ब्रेविफोलिया
 यह एलोवेरा की सबसे छोटी पत्तियों वाली किस्म है,
यह सुंदर भूरे रंग की पत्तियां कभी-ंउचयकभी बाहर
नारंगी रंग की -हजयलक दिखाई देते हैं।
5  एलो
एरिस्टाटा
 यह किस्म अन्य प्रकार के एलोवेरा से अलग होता है,
क्योंकि यह अधिक ठंड सहन कर सकती है और अन्य की
तुलना में अधिक छाया की आव-रु39ययकता होती है।

खेत की तैयारी खाद और सर्वस्क

भूमि को गहरी जुताई कर तैयार करना चाहिए। मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने को अंतिम जुताई के दौरान लगभग 13 से 15 टन गोबर की खाद डालनी चाहिए। गोबर की खाद जितनी अधिक होगी, पैदावार उतनी अच्छी होगी। अगले वर्षों के दौरान, हर साल गोबर की खाद की समान मात्रा का इस्तेमाल किया जाता है। इसके अलावा 50ः50ः50 किलोग्राम/हेक्टेयर एनःपीःके को बेसल खुराक के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।

बीज की मात्रा/रोपण विधि

इसकी बिजाई 3-4 महीने पुराने चार-पांच पत्तों वाले कंदो के द्वारा की जाती है इसके कंदो की ऊंचाई 6-8 इंच हो बिजाई किया जाना चाहिए। । प्रारम्भिक रूप से एक एकड़ भूमि के लिए करीब 7000 से 12000 कंद/सकर्स की जरूरत होती है। पौध की संख्या भूमि की उर्वरता तथा पौध से पौध की दूरी एवं कतार से कतार की दूरी पर निर्भर करती है।

इसके रोपण के लिए खेत में कूड़ (रिजेज एंड फरोज) बनाए जाते है। एक मीटर में इसकी दो लाइने लगती है तथा फिर एक मीटर जगह खाली छोड़ कर पुनः एक मीटर में दो लाइनें लगानी चाहिए। पुराने पौधे के पास से छोटे पौधे निकालने के बाद पौधे के चारों तरफ जमीन की अच्छी तरह दबा देना चाहिए। खेत में पुराने पौधों से वर्षा ऋतु में कुछ छोटे पौधे निकलने लगते है इनकों जड़ सहित निकालकर खेत में पौधारोपण के लिए काम में लिया जा सकता है। इसकी रोपाई करते समय पौधों के लिए अनुशंसित दूरी 40 सेमी गुणा 45 सेमी या 60 सेमी गुणा 30 सेमी हो इस बात कर ध्यान रखना चाहिए। इसका रोपण घनत्व 40 हजार कंद प्रति हेक्टेयर से अधिक नहीं होना चाहिए।

सिंचाई

एलोवेरा के पौधे लगातार सूखे की स्थिति में भी जीवित रह सकते हैं। हालाँकि, गर्मियों और शुष्क हालातों में 2 सप्ताह के अंतराल पर सिंचाई करना चाहिए। बारिश के मौसम में सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती और सर्दियों के मौसम में पौधा ज्यादा पानी नहीं लेता इसलिए कम सिंचाई करनी चाहिए। पौधे के गांठे बनने के बाद तुरंत पहली सिंचाई करना लाभदायक होता है। खेत में ज्यादा पानी से फसल को नुकसान होता है।

पौध संरक्षण

एलोवेरा को लीफस्पॉट रोग पैदा करने वाले फंगस से संक्रमित होने के लिए जाना जाता है। इससे उपज और जेल की गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। अनुशंसित फफूंदनाशकों का छिड़काव करके इस रोग को नियंत्रित किया जा सकता है। एलोवेरा के मुख्य कीट स्पाइडर माइट्स, फंगस ग्नैट्स कीट एवं पित्त माइट्स है जिनको कीटनाशक छिड़कने प्रभावित ऊतक को तेज ब्लेड से काटने, सिस्टमिक कीटनाशक के घोल से उपचारित करने से आसानी से रोका जा सकता है साथ ही साथ मिट्टी को सूखने देने से कीट मर जाते है और उन्हें फैलने से रोकना आसान है।

उत्पादन

एलोवेरा के पौधे रोपाई के 8-10 महीने के बाद कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं. यदि भूमि कम उपजाऊ है, तो इसके पौधों को तैयार होने में 10 से 12 महीने का समय लग जाता है। वहीं पहली कटाई के बाद इसके पौधे 2 महीने बाद दूसरी कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं।

एक हेक्टेयर में करीब 08 लाख रुपए की कमाई एलोवेरा की खेती से हो रही है। एलोवेरा कई साल तक चलने वाला औषधीय पौधा है। इसकी पत्तियों में विशेष प्रकार की मासल पाई जाती है, इसकी खेती देश के कई शुष्क इलाकों में की जा रही है।

कटाई के बाद प्रबंधन

पत्तीदार पौधों की सामग्री को सुखाने या आसवन के लिए तैयार करने में सावधानी बरतनी चाहिए। आम तौर पर, ताजे कटे हुए पौधों को परिवहन से पहले खेत में मुरझाने और नमी खोने दिया जाता है, हालांकि कुछ वाष्पशील पदार्थ नष्ट हो जाते हैं। मुरझाना आम तौर पर 24 से 72 घंटों के भीतर देखा जाता है। लेकिन किण्वन या फफूंद वृद्धि को रोकने के लिए पौधे को सूखा और ठंडा रखना चाहिए। छाया के नीचे कंक्रीट का फर्श इस्तेमाल किया जा सकता है। सबसे अच्छा तेल ऊपरी पत्तियों में होता है।

एलोवेरा की खेती हेतु महत्वपूर्ण तथ्य

  1. कटे हुए एलोवेरा को सीधे स्थानीय विक्रेताओं या प्रसंस्करणकर्ताओं को बेचा जा सकता है।
  2. भारत में डाबर, पंतजलि सहित अन्य आयुर्वेदिक कंपनियां इसकी खरीद करती है अतः इनसे कॉन्ट्रैक्ट किया जा सकता है।
  3. इसके सूखे पाउडर व जैल की विश्व बाजार में व्यापक मांग होने के कारण विदेशी मुद्रा अर्जित की जा सकती है।
  4. इस खेती पर आधारित एलुवा बनाने, जैल बनाने व सूखा पाउडर बनाने वाले उद्योगों की स्थापना की जा सकती है।
  5. पहली फसल एक साल बाद तैयार हो जाती है जिसके बाद तीन चार महीने में ही इसकी कटाई करते रहना चाहिए। कटाई के लिए धारदार हंसिये का उपयोग करना चाहिए।
  6. याद रखें कि फसल को दोबारा पानी लगाने से पहले, खेत को सूखने दें।
  7. समय-समय पर सिंचाई से पत्तों में जेल की मात्रा बढ़ती है।
  8. इसे कोई जानवर नहीं खाता है, अतः इसकी रखवाली की विशेष आवश्यकता नहीं होती है।
  9. नियमित अंतराल पर निराई-गुड़ाई करना महत्वपूर्ण अंतर-कर्षण कार्य हैं।






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