नई दिल्ली : वैदिक पंचांग के अनुसार, आज यानी 26 फरवरी को महाशिवरात्रि व्रत किया जा रहा है। हर साल इस व्रत को फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को किया जाता है। इसके अलावा विधिपूर्वक शिवलिंग का अभिषेक किया जाता है। धार्मिक मान्यता है कि इन कामों को करने से साधक को सभी काम में सफलता मिलती है और सुख-समृद्धि में वृद्धि होती है। ऐसा माना जाता है कि महाशिवरात्रि के दिन कथा का पाठ न करने से साधक को पूजा का पूर्ण फल नहीं मिलता है। इसलिए पूजा के दौरान व्रत कथा का पाठ करना चाहिए। ऐसे में आइए इस आर्टिकल में पढ़ते हैं महाशिवरात्रि की कथा।
महाशिवरात्रि की व्रत कथा
शिव पुराण के अनुसार, एक चित्रभानु के नाम का शिकारी था। एक बार उस पर कर्ज हो गया था। कर्ज को समय पर न चुकाने पर साहुकार ने उसे शिवरात्रि के दिन बंदी बना लिया। ऐसे में वह भूखे प्यासे रह कर महादेव के नाम का ध्यान किया । शाम को साहूकार ने उसे अगले दिन कर्ज चुकाने के लिए कहा।
इसके बाद चित्रभानु जंगल में शिकार खोजने लगा। इस दौरान वह एक बेल के पेड़ चढ़ गया और सुबह होने का इतंजार करने लगा। उसी बेल के पेड़ के नीचे शिवलिंग था। शिकारी बेलपत्र को तोड़कर नीचे गिरा रहा था और वह बेलपत्र शिवलिंग पर गिर रहे थे। इस प्रकार से शिकारी दिनभर भूखा और प्यासा रहा। उसका व्रत भी हो गया। साथ ही शिवलिंग पर बेलपत्र गिरने से महादेव की पूजा-अर्चना भी हो गई।
उसे जगल में गर्भवती हिरणी दिखी। ऐसे में वह धनुष-बाण से उसका शिकार करने के लिए तैयार हो गया। गर्भवती हिरणी ने शिकारी से कहा कि मैं गर्भवती हूं। जल्द ही प्रसव करुंगी। अगर तुम मेरा शिकार करोगे, तो तुम एक साथ दो जीव हत्या करोगे। इसके बाद हिरणी ने उसे वचन दिया कि मैं बच्चे को जन्म देने के बाद आपके सामने आ जाउंगी। मुझे तुम अपना शिकार बना लेना। इसके बाद उसे शिकारी ने जाने दिया। इसके बाद पेड़ पर बेलपत्र टूटकर शिवलिंग पर गिर गए, जिससे महादेव की पहले प्रहर की पूजा हो गई।
इसके बाद दूसरी हिरणी वहां से जा रही थी। चित्रभानु शिकार करने के लिए तैयार हो गया। ऐसे में हिरणी ने कहा कि 'हे शिकारी! मैं थोड़ी देर पहले ऋतु से निवृत्त हुई हूं। कामातुर विरहिणी हूं। अपने प्रिय को जंगल में खोज रही हूं। इसके बाद पेड़ पर कुछ बेलपत्र टूटकर शिवलिंग पर गिर गए गए और दूसरे प्रहर की पूजा हो गई।
उसी समय एक हिरणी अपने बच्चों के साथ जा रही थी। उसे देख चित्रभानु ने शिकार करने का फैसला लिया। हिरणी ने कहा कि मैं इन बच्चों को इनके पिता के पास छोड़कर आपके पास लौट आऊंगी। ऐसे में सुबह हो गई और शिकारी की शिवरात्रि व्रत के साथ पूजा-अर्चना हो गई और शिवरात्रि की रात्रि का जागरण भी हो गया। इस दौरान वहां से एक हिरण जा था, उसे देख चित्रभानु ने शिकार करने का फैसला लिया।
हिरण ने शिकारी से कहा कि मुझे कुछ देर के लिए जीवनदान दे दो। हिरण ने कहा मैं आपके सामने उन हिरणी के साथ उपस्थित होता हूं। ऐसे में शिकारी ने उस हिरण को भी जाने दिया। शिवरात्रि व्रत पूरा होने से उसके अंदर भक्ति की भावना उत्पन्न हो गई। कुछ समय के बाद हिरण अपने परिवार के साथ शिकारी के सामने उपस्थित हो गया। उसने हिरण परिवार को जीवनदान दे दिया और शिवरात्रि व्रत एवं पूजा करने से चित्रभानु को मोक्ष की प्राप्ति हुई और शिवलोक मिल गया।
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