उत्तर भारत में जाड़े के बाद मार्च का महीना नींबू वर्गीय फसलों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होता है. इस समय मौसम में परिवर्तन शुरू हो जाता है, तापमान धीरे-धीरे बढ़ने लगता है और वसंत ऋतु का प्रभाव दिखाई देने लगता है. यह समय नींबू के बागों में नई वृद्धि, पुष्पन, कीट एवं रोग प्रबंधन, खाद एवं सिंचाई जैसी महत्वपूर्ण गतिविधियों के लिए उपयुक्त होता है. यदि इस समय उचित देखभाल की जाए तो नींबू की फसल अच्छी गुणवत्ता वाली एवं अधिक उत्पादन देने वाली हो सकती है.
नींबू की फसल के लिए मार्च में किए जाने वाले प्रमुख कृषि कार्य निम्नलिखित हैं—
1. नवीन वृद्धि एवं पुष्पन प्रबंधन
2. खाद एवं पोषण प्रबंधन
मार्च में पौधों को आवश्यक पोषक तत्व देने से उनकी वृद्धि और फलन में सुधार होता है. नींबू के लिए निम्नलिखित पोषण योजना अपनाई जा सकती है: नाइट्रोजन , फास्फोरस (P) और पोटाश (K) का संतुलित मात्रा में प्रयोग किया जाता है. प्रति वयस्क पौधे में 200-250 ग्राम नाइट्रोजन, 100-150 ग्राम फास्फोरस और 150-200 ग्राम पोटाश का प्रयोग करें. कैल्शियम नाइट्रेट या पोटैशियम नाइट्रेट का छिड़काव करने से फूलों और फलों की गुणवत्ता में सुधार होता है. प्रति पौधे 10-15 किलोग्राम गोबर की खाद या वर्मी कम्पोस्ट डालें. जैव उर्वरकों जैसे कि एजोटोबैक्टर और फॉस्फेट सोल्युबलाइजिंग बैक्टीरिया (PSB) का प्रयोग मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने में सहायक होता है.
जिंक , बोरान और आयरन की कमी को कैसे दूर करें ?
जिंक सल्फेट (0.3%); बोरॉन (0.3%)और फेरस सल्फेट (0.3%) का छिड़काव करें, जिससे पत्तियों का हरा रंग बना रहेगा और पौधों की वृद्धि प्रभावित नहीं होगी.
फूल आने की अवस्था में जिंक (0.2%) और का स्प्रे करने से फूलों की संख्या बढ़ती है और फलों का झड़ना कम होता है.
3. सिंचाई प्रबंधन
4. कीट प्रबंधन
मार्च में तापमान बढ़ने के साथ नींबू के बागों में कीटों का प्रकोप बढ़ सकता है. कुछ प्रमुख कीट इस प्रकार हैं:
सिट्रस लीफ माइनर: यह पत्तियों पर सुरंग बनाकर नई वृद्धि को नुकसान पहुंचाता है. इसे नियंत्रित करने के लिए नीम तेल (1500 PPM) या डाइमिथोएट (0.05%) का छिड़काव किया जाता है.
सिट्रस पायला: यह कीट पत्तियों और नई टहनियों से रस चूसकर पौधों को कमजोर कर देता है. इसे रोकने के लिए इमिडाक्लोप्रिड 17.8 SL (0.05%) का छिड़काव किया जाता है.
सिट्रस स्केल कीट: यह शाखाओं और फलों पर पाया जाता है. इसे नियंत्रित करने के लिए 2% नीम का तेल या क्लोरपायरीफॉस 0.05% का छिड़काव किया जाता है.
5. रोग प्रबंधन
नींबू की फसल में कई प्रकार के फंगल और बैक्टीरियल रोग लग सकते हैं, जिनका नियंत्रण मार्च महीने में करना आवश्यक होता है.
कोललेटोट्रिकम फफूंद जनित रोग: यह पत्तियों और फलों पर काले धब्बे बनाता है. इसे रोकने के लिए कॉपर ऑक्सीक्लोराइड (0.3%) या कार्बेन्डाजिम (0.1%) का छिड़काव करना चाहिए.
साइट्रस कैन्कर: यह एक बैक्टीरियल रोग है जो पत्तियों और फलों पर गहरे घाव बना देता है. इसे नियंत्रित करने के लिए स्ट्रेप्टोसाइक्लिन (500 ppm) और कॉपर ऑक्सीक्लोराइड (0.3%) का छिड़काव किया जाता है.
गमोसिस (गोंद रोग): इस रोग में तने से गोंद निकलता है, जिससे पौधा कमजोर हो जाता है. इसे रोकने के लिए बोर्डो पेस्ट का लेप किया जाता है और प्रभावित भाग को साफ करके कॉपर ऑक्सीक्लोराइड का छिड़काव किया जाता है.
6. मल्चिंग और खरपतवार नियंत्रण
मार्च में खरपतवार तेजी से बढ़ते हैं, जिससे पोषक तत्वों की कमी हो सकती है. इसे रोकने के लिए निम्न उपाय अपनाए जाते हैं:
गीली घास, भूसा, या काली पॉलीथिन से मल्चिंग करने से नमी बनी रहती है और खरपतवार नहीं उगते.
खरपतवार को हाथ से निकालना या नियंत्रित मात्रा में ग्लाइफोसेट का छिड़काव करने से समस्या को रोका जा सकता है.
7. फलों के गिरने की समस्या रोकना
मार्च में फूल आने के बाद यदि उचित पोषण और देखभाल न की जाए तो फलों का झड़ना बढ़ सकता है. इसे रोकने के लिए:
बोरॉन (0.3%) और जीबरेलिक एसिड (GA3 10-20 ppm) का छिड़काव करें.
फल लग जाने के बाद सिंचाई नियमित रूप से करें और पौधों को सूखा न पड़ने दें. सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी न होने दें.
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