दिल दहल उठेगा पढ़कर औरंगजेब का आखिरी खत,पढ़े संभाजी के कातिल के वो आखिरी पल

दिल दहल उठेगा पढ़कर औरंगजेब का आखिरी खत,पढ़े संभाजी के कातिल के वो आखिरी पल

मुगल साम्राज्य के इतिहास में औरंगजेब का नाम सबसे विवादास्पद शासकों में गिना जाता है। अपने शासनकाल में औरंगजेब ने अनेक कठोर नीतियां लागू कीं, जो आज भी चर्चा और विवाद का विषय बनी हुई हैं।

औरंगजेब की भेदभावपूर्ण नीतियां

औरंगजेब ने अपने शासनकाल (1658-1707 ईस्वी) में गैर-मुसलमानों पर जजिया कर लागू किया, जो हिंदू प्रजा पर आर्थिक बोझ डालने वाली एक भेदभावपूर्ण नीति थी। उनके शासनकाल में शरियत के आधार पर फतवा-ए-आलमगीरी लागू किया गया। इस दौरान, बड़ी संख्या में हिंदू मंदिरों को नष्ट किया गया, जिनमें काशी विश्वनाथ मंदिर और सोमनाथ मंदिर प्रमुख हैं

धार्मिक अत्याचार और हिंसा

औरंगजेब ने धर्म के नाम पर सिखों, हिंदुओं और मराठों पर भीषण अत्याचार किए। उन्होंने सिखों के नौवें गुरु, गुरु तेग बहादुर का सिर कलम करवा दिया। उनके आदेश पर गुरु गोविंद सिंह के दो बेटों को जिंदा दीवार में चुनवा दिया गया। मराठा शासक संभाजी महाराज को क्रूर यातनाएं दी गईं, जिसमें उनकी आंखें फोड़ दी गईं और नाखून उखाड़े गए। औरंगजेब के इन अत्याचारों ने भारत की जनता में आक्रोश और विद्रोह की भावना को जन्म दिया।

औरंगजेब के अंतिम समय का पश्चाताप

औरंगजेब की मृत्यु 1707 ईस्वी में महाराष्ट्र के खुल्दाबाद गांव में हुई। मृत्यु से पहले औरंगजेब ने अपने बेटों, आजम शाह और काम बख्श को लिखे पत्रों में अपने जीवन के पापों और असफलताओं का जिक्र किया। इन पत्रों में उन्होंने अपनी निराशा और पश्चाताप व्यक्त किया। उन्होंने लिखा, "मैं बूढ़ा और दुर्बल हो गया हूं। मैंने लोगों का भला नहीं किया और मेरा जीवन निरर्थक बीता। मैं पापों का भारी बोझ लेकर जा रहा हूं। मैं नहीं जानता कि अल्लाह मुझे क्या सजा देगा।

 

राम कुमार वर्मा की लिखी किताब''औरंगजेब की आखिरी रात' में औरंगजेब के खत का मजमून कुछ यूं जिक्र किया गया है. "अब मैं बूढ़ा और दुर्बल हो गया हूं.मैं नहीं जानता मैं कौन हूं और इस संसार में क्यों आया. मैंने लोगों का भला नहीं किया, मेरा जीवन ऐसे ही निरर्थक बीत गया. भविष्य को लेकर मुझे कोई उम्मीद नहीं है, मेरा बुखार अब उतर गया है, लेकिन ऐसा लग रहा है कि शरीर पर केवल चमड़ी हो. दुनिया में कुछ लेकर नहीं आया था, लेकिन अब पापों का भारी बोझ लेकर जा रहा हूं. मैं नहीं जानता कि अल्लाह मुझे क्या सजा देगा, मैंने लोगों को जितने भी दुख दिए हैं, वो हर पाप जो मुझसे हुआ है उसका परिणाम मुझे भुगतना होगा. बुराईयों में डूबा हुआ गुनाहगार हूं मैं."

पारिवारिक कलह और उत्तराधिकार संघर्ष

औरंगजेब ने अपने पिता शाहजहां को आगरा के किले में कैद कर दिया और उन्हें अत्यंत कष्ट झेलने पर मजबूर किया। शाहजहां ने अपनी आत्मकथा शाहजहांनामा में औरंगजेब की आलोचना करते हुए लिखा कि ऐसी संतान किसी को न मिले। औरंगजेब के पुत्रों के बीच भी उत्तराधिकार को लेकर युद्ध हुआ। उनके तीन पुत्रों-मुअज्जम, आजम शाह और काम बख्श-के बीच संघर्ष ने मुगल साम्राज्य को कमजोर कर दिया। अंततः उनके बड़े पुत्र मुअज्जम ने युद्ध में विजय प्राप्त की।

औरंगजेब की सादगीपूर्ण कब्र

औरंगजेब का अंतिम संस्कार खुल्दाबाद में किया गया। उनकी कब्र कच्ची मिट्टी की है, जिसके ऊपर कोई छत नहीं है। यह उनके जीवन के अंत में किए गए प्रायश्चित और सादगी के प्रतीक के रूप में देखी जाती है। उनकी कब्र पर कभी-कभी हरी दूब उगाई जाती है। यह कब्र आज भी इतिहास के उस अध्याय की याद दिलाती है, जब मुगल साम्राज्य अपने चरम पर था और क्रूर नीतियों के कारण पतन की ओर अग्रसर हो गया। औरंगजेब का शासनकाल क्रूरता, धार्मिक कट्टरता और भेदभाव की नीतियों के लिए जाना जाता है। उनके द्वारा किए गए अत्याचारों ने भारतीय उपमहाद्वीप में विद्रोह और स्वतंत्रता की भावना को प्रज्वलित किया। उनके अंतिम समय का पश्चाताप इस बात का संकेत है कि अत्याचार और अन्याय का अंत हमेशा पछतावे में होता है। इतिहास औरंगजेब को एक ऐसे शासक के रूप में याद करता है, जिसने शक्ति और साम्राज्य के विस्तार के लिए मानवता और न्याय को नजरअंदाज किया।






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