मार्च महीने का एक हफ्ता बीत चुका है. ऐसे में तापमान में इजाफा हो रहा है, जिस कारण खेतों में नमी की मात्रा कम होती जा रही है. इस कारण हरे चारा (Green Fodder) की कमी आ रही है. आने वाले कुछ दिनों में पशुपालकों को हरे चारे के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ेगी. इसलिए किसान समय रहते ही हरे चारे की व्यवस्था शुरू कर दें, जिससे आने वाले समय में पशु को पर्याप्त हरा चारा मिल सके. हरे चारे की कमी से दूध उत्पादन पर असर पड़ता है और पशुपालकों की कमाई भी घटती है. ऐसे में आज हम आपको ऐसे तीन हरे चारे की फसलों की खेती के बारे में बताने जा रहे हैं जिससे गर्मी में चारे की कमी नहीं होगी.
गर्मी में बेहतर चारा है हाथी घास
नेपियर घास (हाथी घास) किसानों और पशुपालकों के बीच काफी लोकप्रिय हो रही है. नेपियर घास पशुओं के लिए बेहतर चारा है. नेपियर घास ज्यादा पौष्टिक होती है. ये घास पशुओं में दूध उत्पादन बढ़ाने के साथ ही बेहतर स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद है. पशुपालकों को अपने गाय-भैंसों को चारे के रूप में हरी-भरी घास देने की सलाह दी जाती है. हरे घास में हाथी घास के नाम से मशहूर नेपियर घास पशुओं के लिए काफी फायदेमंद मानी जाती है.
कैसे करें नेपियर घास की खेती
हाथी घास की खेती किसान किसी भी मौसम में कर सकते हैं. हाथी घास को बोने के लिए इसके डंठल को काम में लिया जाता है, जिसे नेपियर स्टिक कहा जाता है. स्टिक को खेत में डेढ़ से दो फीट की दूरी पर रोपा जाता है. वहीं एक बीघा में करीब 8 हजार डंठल की जरूरत होती है. इस घास के डंठल को जुलाई से अक्टूबर और फरवरी-मार्च में बोया जा सकता है. वहीं इसके बीज नहीं होते हैं. साथ ही इसकी खेती के लिए उचित जल निकास वाली मटियार और बलुई दोमट मिट्टी बेहतर होती है.
लोबिया चारा पशुओं के लिए बेस्ट
हरे चारे की कमी को दूर करने के लिए किसान कई बार कटाई वाली फसल लगा सकते हैं. इसके लिए लोबिया एक बेहतर विकल्प है. लोबिया की फसल लगाने से किसान हरे चारे की कमी से छुटकारा पा सकते हैं. लोबिया एक तेजी से बढ़ने वाली दलहनी चारा फसल है. यह अधिक पौष्टिक और पाचक है. इससे पशुओं के दूध उत्पादन क्षमता में बढ़ोतरी होती है.
लोबिया चारे की कैसे करें खेती
किसान लोबिया की खेती दोमट, बलुई और हल्की काली मिट्टी में कर सकते हैं. किसान लोबिया की बुवाई मार्च से अप्रैल के दौरान कर सकते हैं. लोबिया की बुवाई में 30 से 35 किलो बीज एक हेक्टेयर के लिए पर्याप्त होता है. इसकी बुवाई लाइनों में 25 से 30 सेमी की दूरी पर करनी चाहिए. बुवाई के दौरान 20 किलो नाइट्रोजन और 60 किलो फास्फोरस प्रति हेक्टेयर में इस्तेमाल करें. बता दें कि बुवाई के 85 से 90 दिनों बाद किसान इसकी कटाई कर सकते हैं.
रिजका चारे के कई सारे फायदे
रिजका को "चारा फसलों की रानी" कहा जाता है. इसे लूसर्न के नाम से भी जाना जाता है. इसकी खेती मुख्य रूप से पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और लद्दाख के लेह क्षेत्र में होती है. देश में हरे चारे में ज्वार और बरसीम के बाद रिजका की खेती प्रमुखता से की जाती है. यह एक पौष्टिक चारा वाली फसल है. इसके सेवन से पशुओं की पाचन क्षमता बेहतर होने के साथ ही दूध उत्पादन क्षमता भी बढ़ती है. इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसकी एक बार खेती करके किसान कई बार हरा चारा काट सकते हैं.
कैसे करें रिजका चारे की खेती
रिजका की खेती 5.7 या अधिक पीएच मान वाली उर्वरक भूमि पर करने से किसानों को अच्छा उत्पादन मिल सकता है. किसानों को रिजका की बुवाई से पहले एक गहरी जुताई के बाद 2 से 3 बार हैरो चलाकर खेत को समतल कर लेना चाहिए. बता दें कि रिजका की बुवाई कई तरीकों से की जा सकती है. अगर जमीन हल्की हो, तो इसे कतारों में 15-20 सेमी की दूरी पर करें. रिजका की अच्छी उपज के लिए 25-30 किलो नाइट्रोजन और 50 से 60 किलो फास्फोरस का इस्तेमाल प्रति हेक्टेयर के हिसाब से करना चाहिए. वहीं, इसकी पहली कटाई, बुवाई के 55-60 दिन बाद की जा सकती है.
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