वसंत मूंग की बुवाई का समय शुरू होने वाला है. इसकी बुवाई के लिए उपयुक्त समय 10 मार्च से 10 अप्रैल तक है. साथ ही उड़द की बुवाई का सही समय 15 फरवरी से 15 मार्च तक है. किसानों के पास उड़द की बुवाई के लिए भी समय बचा है. इसलिए जितनी जल्द हो सके, यह काम पूरा कर लें. जिन किसानों ने सरसों, गेहूं और आलू की कटाई कर ली है, वे मूंग और उड़द की फसल को लगा सकते हैं. किसानों को ऐसी किस्में लगानी चाहिए जो 70-80 दिनों में तैयार हो जाए.
किसान मूंग और उड़द की 60-65 दिनों में तैयार होने वाली किस्मों को 15 अप्रैल के बाद बो सकते हैं. ध्यान रहे कि इन दोनों फसलों की बुवाई देर से नहीं करनी है क्योंकि इससे पैदावार घट सकती है. देर से बुवाई करने पर खेत में नमी की कमी हो जाती है जिससे फसल की वृद्धि कम हो जाती है. मूंग और उड़द की देर से बुवाई करने पर अगली फसल में भी देरी हो सकती है और इससे फसल पर रोग और कीटों का प्रकोप बढ़ सकता है.
मूंग-उड़द की उन्नत किस्में
मूंग और उड़द की अधिक पैदावार लेने के लिए किसानों को अच्छी और क्वालिटी वाली किस्में लगानी चाहिए. ICAR के मुताबिक, किसान मूंग की उन्नत प्रजातियां जैसे-पूसा 1431, पूसा 9531, पूसा रत्ना, पूसा 672, पूसा विशाल, के.पी.एम 409-4 (हीरा), वसुधा (आई.पी.एम. 312-20), सूर्या (आई.पी.एम. 512-1), कनिका (आई.पी.एम. 302-2), वर्षा (आई. पी.एम. 2के 14-9) आदि लगा सकते हैं.
उड़द की उन्नत प्रजातियां जैसे-पीडीयू 1 (वसंत बहार), के.यू.जी. 479, मुलुंद्र उड़द 2 (के.पी.यू. 405), कोटा उड़द 4 (के.पी.यू. 12-1735) और सुजाता प्रमुख हैं.
इन किस्मों को लगाने से पहले बीजों का उपचार जरूरी है क्योंकि कवक और जीवाणु से रोग पैदा हो सकते हैं जिससे पैदावार को नुकसान होगा. बीजों को कवकनाशी से उपचारित करना जरूरी होता है. इसके लिए उड़द और मूंग के प्रति किलोग्राम बीज को 2.5 ग्राम थीरम और 1 ग्राम कार्बेन्डाजिम से उपचार करने के बाद रोइजोबियम कल्चर से बीजोपचार करना चाहिए.
इन दवाओं से करें बीजोपचार
ICAR ने बताया है कि मूंग और उड़द की बुवाई के समय खेत में बीज डालने से पहले सल्फर धूल का प्रयोग जरूर करना चाहिए. इसी प्रकार फॉस्फेट घुलनशील बैक्टीरिया से बीज का उपचार करना भी जरूरी होता है. गर्मी में बोई जाने वाली मूंग और उड़द के लिए 20-25 किलो बीज प्रति हेक्टेयर पर्याप्त होता है. बीज की बुवाई सीडड्रिल से पंक्तियों में की जानी चाहिए.
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