पटना : औरंगजेब पर गौरव करने वाले लोग पटना की खुदाबख्श लाइब्रेरी में जाकर एक बार शाहजहां की जीवनी पढ़ें तो उसकी पीड़ा का पता चलेगा. जिसका आचरण औरंगजेब जैसा है, वे लोग तो औरंगजेब पर गौरव की अनुभूति करेंगे ही.
कोई भी सभ्य मुसलमान अपने पुत्र का नाम औरंगजेब नहीं रखता, क्योंकि उसे मालूम है कि यथा नाम तथा काम… अगर ऐसा नाम रखेंगे तो एक-एक बूंद पानी के लिए तरसना पड़ेगा! बीते 5 मार्च को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इन शब्दों के साथ समाजवादी पार्टी पर निशाना साधा था. उन्होंने विधान परिषद में बजट पर चर्चा के दौरान समाजवादी पार्टी पर तीखे प्रहार किये और और औरंगजेब का महिमामंडन करने वाले महाराष्ट्र के सपा विधायक अबू आजमी को पार्टी से निकलने की मांग की.
दरअसल, मुंबई के मानखुर्द शिवाजी नगर सीट से समाजवादी पार्टी के विधायक अबू आसिम आजमी ने मुगल बादशाह की तारीफ करते हुए कहा था कि वह क्रूर शासक नहीं था और उसने कई मंदिर भी बनवाए. उन्होंने कहा था कि यह बात इतिहासकारों के हवाले से कह रहे हैं. लेकिन, योगी आदित्यनाथ ने औरंगजेब के पिता शाहजहां की उस पीड़ा को बयां कर औरंगजेब की तारीफ करने वालों को आईना दिखाने की कोशिश की जो शाहजहां ने अपनी आत्मकथा 'शाहजहांनामा' में लिखी है.
शाहजहांनामा की दुर्लभ प्रति खुदा बक्श लाइब्रेरी पटना में.
बता दें कि औरंगजेब ने अपने पिता शाहजहां पर भी काफी जुल्म किये थे. औरंगजेब ने शाहजहां को आगरा के किले में कैद करके रखा था और उन्हें पानी तक के लिए तरसाया था. शाहजहां ने 'शाहजहांनामा' में औरंगजेब की करतूत का जिक्र करते हिंदुओं तुलना की और लिखा, "खुदा करे कि ऐसी औलाद किसी के यहां पैदा ना हो. औरंगजेब से अच्छे तो हिंदू हैं, जो अपने माता-पिता की सेवा करते हैं और उनकी मृत्यु के बाद तर्पण करते हैं." योगी आदित्यनाथने इसी बात का जिक्र पटना के खुदाबख्स लाइब्रेरी में रखी 'शाहजहांनामा' का उल्लेख किया तो विवाद पटना का वह यह प्राचीन लाइब्रेरी भी फिर से चर्चा में आ गया.
खुदाबख्श लाइब्रेरी को इस्लामी एवं भारतीय विद्या-संस्कृति के संदर्भ के प्रमुख केंद्र के रूप में जाना जाता है.इस लाइब्रेरी में कई दुर्लभ पांडुलिपियां हैं. यहां विभिन्न भाषाओं में करीब 21,000 पांडुलिपियां हैं.इस पुस्तकालय में कागज़, ताड़-पत्र, मृग चर्म, कपड़े और विविध सामग्रियों पर लिखित पांडुलिपियां मौजूद हैं. इसके आधुनिक स्वरूप में जर्मन, फ्रेंच, पंजाबी, जापानी व रूसी पुस्तकों के अलावा अरबी, फारसी, उर्दू, अंग्रेजी और हिंदी में मुद्रित पुस्तकें भी रखी गई हैं.
तारीख ए खानदान ए तैमूरिया की दुर्लभ प्रति पटना के खुदा बख्श लाइब्रेरी में.
यहां एक पांडुलिपि औरंगजेब के शासन काल की भी है. हिंदी भाषा की पहली डिक्शनरी यही है. कहा जाता है कि औरंगजेब ने अपने बेटे के लिए दरबारी गुरु रखा था और गुरु मिर्जा खान बिन फखरुद्दीन मोहम्मद ने ही इस हिंदी डिक्सनरी को तैयार किया था. पुस्तकालय उदार संग्रह में तारिख-ए-ख़ानदान-ए-तिमुरियाह शामिल है, जो तैमूर और उनके वंशजों के इतिहास के बारे में एक भव्य रूप से सचित्र पाठ है. यह लाइब्रेरी दुनिया भर के शोधकर्ताओं को अपनी ओर खींचता है.
तारीखे खानदान तैमूरिया, दीवाने हाफिज, किताबुत तसरीफ, आईने अकबरी सिकंदरनामा, बाजनामा, शाहनामा फिरदौसी, शाहजहांनामा, हिसाबे फौजी महाराजा रंजीत सिंह के अलावा हुमायूं और जहांगीर के हस्तलिखित दस्तावेज भी यहां मौजूद हैं. कई पांडुलिपियों को डिजिटाइज्ड कर ऑनलाइन उपलब्ध कराया गया है.लार्ड कर्जन के नाम से रखा गया यहां का कर्जन पठन कक्ष सभी के लिए खुला रहता है. पुस्तकालय में दो पठन कक्ष हैं. एक कक्ष रिसर्चर और स्कॉलरों के लिए है जबकि दूसरे कक्ष को अनियमित पाठकों के लिए रखा गया है. ये पूर्व के विरासत से रूबरू कराता है.
खुदा बख्श पुस्तकाल में 22 हजार दुर्लभ पांडुलिपियों और तीन लाख से अधिक पुस्तकों का संग्रह.
मशहूर वकील मरहूम खुदा बख्श खान की बिहार ही नहीं देश के लोगों के लिए एक बहुमूल्य देन है खुदा बक्श लाइब्रेरी. इनके विद्वान पूर्वजों ने कभी औरंगजेब को फतवा-ए-आलमगीर लिखने में मदद की थी. दुर्लभ पुस्तकों, पांडुलिपियाों और तस्वीरों से भरी इस लाइब्रेरी की स्थापना वर्ष 1891 में की गई थी और इसी वर्ष 5 अक्टूबर को बिहार और बंगाल के तत्कालीन गवर्नर सर चार्ल्स इलियट ने इस पुस्तकालय का विधिवत उद्घाटन किया था. पहले इस लाइब्रेरी का नाम बांकीपुर ओरिएंटल लाइब्रेरी और बाद में ओरिएंटल पब्लिक लाइब्रेरी था.वर्ष 1969 में भारतीय संसद ने इसे संस्कृति विभाग के अधीन इसे एक स्वायत्त संस्था के रूप में मान्यता दी थी.
खुदा बख्श साहब का जन्म सारण जिले की ओखी गांव में 2 अगस्त 1842 को हुआ था. इनके पिता मोहम्मद बख्श भी पुरानी किताबों के शौकीन थे और खुदा बख्श का भी किताबों से पुराना नाता रहा. उन्हें भी करीब 300 दुर्लभ और बेशकीमती पांडुलिपि अपने पूर्वजों से मिली थी. मोहम्मद खुदा बख्श के पास लगभग 1400 पांडुलिपियों और कुछ दुर्लभ पुस्तकें थीं.उनके पिता मोहम्मद साहब जब 1876 में अपनी मृत्यु शैय्या पर थे तब उन्होंने पुस्तकों की जायदाद अपने बेटे खुदा बख्श को सौंपते हुए शहर में पुस्तकालय खोलने की इच्छा जताई थी. खुदा बख्श खान ने पिता की इस अंतिम इच्छा को पूरा करने के लिए विरासत में प्राप्त हुई पुस्तकों को लोगों के लिए समर्पित कर दिया और अपने पिता के दिए गए वादे के अनुसार 5 अक्टूबर 1891 को उन्होंने इस लाइब्रेरी की बुनियाद रखी.
Comments