शराब घोटाला : सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ के पूर्व आबकारी अधिकारी को दी जमानत, तत्काल रिहाई पर लगाई रोक

शराब घोटाला : सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ के पूर्व आबकारी अधिकारी को दी जमानत, तत्काल रिहाई पर लगाई रोक

सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ के एक पूर्व आबकारी अधिकारी को राज्य के बहुचर्चित शराब घोटाले से जुड़े धोखाधड़ी और भ्रष्टाचार के एक मामले में जमानत दे दी। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि अधिकारी को 10 अप्रैल को रिहा किया जाए ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि प्रकरण की जारी जांच प्रभावित न हो। न्यायमूर्ति अभय ओका और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने कहा कि आरोपी अरुण पति त्रिपाठी लगभग 11 महीने से हिरासत में है और निकट भविष्य में मुकदमा शुरू होने की कोई संभावना नहीं है।

10 अप्रैल तक किया जाएगा रिहा

पीठ ने कहा, ‘संबंधित आदेश में हमारे द्वारा की गई टिप्पणियों पर विचार करते हुए, अपीलकर्ता को जमानत पर रिहा होने का अधिकार है। हालांकि, यह सुनिश्चित करने के लिए कि जांच किसी भी तरह से प्रभावित न हो, हम निर्देश देते हैं कि अपीलकर्ता को संबंधित सत्र न्यायालय द्वारा तय उचित नियमों और शर्तों के अधीन 10 अप्रैल, 2025 को जमानत पर रिहा किया जाएगा।’ 

पासपोर्ट को जमा कराने का आदेश

सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी त्रिपाठी को निर्देश दिया कि वह अपना पासपोर्ट जांच अधिकारी के पास जमा कराएं और प्रतिदिन सुबह 10 बजे उसके समक्ष उपस्थित हों। पीठ ने कहा, ‘जब तक आरोपपत्र दाखिल नहीं हो जाता, वह जांच अधिकारी के साथ सहयोग करना जारी रखेंगे।’ 

10 अप्रैल को सेशन कोर्ट में होना होगा पेश

कोर्ट ने कहा, ‘जमानत देने का आदेश पारित करने के लिए अपीलकर्ता को 10 अप्रैल, 2025 को उपयुक्त सेशन कोर्ट के समक्ष पेश किया जाएगा। सेशन कोर्ट अपीलकर्ता को उपरोक्त नियमों और शर्तों सहित उचित नियमों एवं शर्तों पर जमानत देगी।’ 

ये है पूरा मामला

भारतीय दूरसंचार सेवा के अधिकारी त्रिपाठी ने छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के उस आदेश को चुनौती दी थी जिसमें राज्य में शराब घोटाले के सिलसिले में उन्हें जमानत देने से इनकार कर दिया गया था। कथित घोटाले के समय छत्तीसगढ़ राज्य विपणन निगम लिमिटेड के विशेष सचिव और प्रबंध निदेशक के रूप में त्रिपाठी प्रतिनियुक्ति पर काम कर रहे थे और ईडी की जांच के बाद उन्हें गिरफ्तार किया गया था। 

ED ने रायपुर पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा द्वारा भारतीय दंड संहिता और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की कई धाराओं के तहत दर्ज एक मामले के आधार पर अपनी जांच शुरू की थी।






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