अगर आप भगवान शिव की कृपा पाना चाहते हैं, तो प्रदोष व्रत से बेहतर कोई अवसर नहीं हो सकता। ये व्रत न सिर्फ आध्यात्मिक उन्नति देता है, बल्कि जीवन की हर परेशानी को भी दूर करने में सहायक माना जाता है।
हिंदू धर्म में इसे अत्यंत शुभ माना गया है, क्योंकि ये स्वयं महादेव और माता पार्वती को समर्पित होता है। पंचांग के अनुसार, प्रदोष व्रत हर महीने की त्रयोदशी तिथि को रखा जाता है और सालभर में 24 बार पड़ता है। इस वर्ष फाल्गुन मास का ये विशेष व्रत 11 मार्च को पड़ रहा है, जिसे शिव भक्तों के लिए बेहद फलदायी माना जा रहा है।
मान्यता है कि इस दिन विधिपूर्वक शिव आराधना करने से भक्तों की सभी इच्छाएं पूर्ण होती हैं और जीवन में सुख-समृद्धि आती है। शिव कृपा प्राप्त करने का ये सुनहरा अवसर भक्तों को निश्चित रूप से नहीं छोड़ना चाहिए।
प्रदोष व्रत का शुभ मुहूर्त जानें
मंगलवार के दिन पड़ने वाले प्रदोष व्रत को भौम प्रदोष व्रत कहा जाता है, जिसे विशेष रूप से शुभ माना जाता है। इस वर्ष, फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि की शुरुआत 11 मार्च को सुबह 8:13 बजे होगी और इसका समापन 12 मार्च को सुबह 9:11 बजे होगा। इस समय में भगवान शिव की विधिपूर्वक पूजा करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है।
व्रत के साथ कथा का महत्व
जो भी श्रद्धालु प्रदोष व्रत रखते हैं, उन्हें इसकी कथा का पाठ अवश्य करना चाहिए। प्रदोष व्रत कथा का श्रवण और पाठ करने से व्रत का पूर्ण फल प्राप्त होता है और भगवान शिव की कृपा बनी रहती है।
फाल्गुन प्रदोष व्रत कथा
एक समय की बात है, अंबापुर नामक गांव में एक ब्राह्मणी रहती थी, जिसका पति स्वर्गवासी हो चुका था। वह भिक्षा मांगकर अपना जीवन व्यतीत कर रही थी। एक दिन जब वह भिक्षा मांगकर लौट रही थी, तो उसने दो छोटे बच्चों को अकेले भटकते हुए देखा। वे परेशान हो गई और सोचने लगी कि इनके माता-पिता कौन होंगे? दयालु स्वभाव की ब्राह्मणी उन दोनों बच्चों को अपने घर ले आई और उनकी देखभाल करने लगी।
राजकुमारों की पहचान
समय बीतने के साथ वे बालक बड़े हो गए। एक दिन ब्राह्मणी उन्हें लेकर प्रसिद्ध संत ऋषि शांडिल्य के आश्रम में गई। उसने ऋषि को प्रणाम कर उन दोनों बच्चों के माता-पिता के बारे में जानने की इच्छा जताई। तब ऋषि शांडिल्य ने बताया कि ये बालक विदर्भ नरेश के पुत्र हैं, जिनका राज्य गंधर्व नरेश ने हड़प लिया था, और इसी कारण वे अपने राज्य से निर्वासित हो गए हैं।
प्रदोष व्रत का चमत्कार
ब्राह्मणी ने ऋषि से उपाय पूछा, जिससे वे राजकुमार अपना खोया हुआ राजपाट पुनः प्राप्त कर सकें। ऋषि शांडिल्य ने उन्हें श्रद्धा और भक्ति के साथ प्रदोष व्रत करने की सलाह दी। ब्राह्मणी और दोनों राजकुमारों ने विधि-विधान से इस व्रत का पालन किया। कुछ समय बाद, विदर्भ नरेश के बड़े पुत्र की भेंट अंशुमती नामक कन्या से हुई। दोनों विवाह के लिए सहमत हो गए। जब ये बात अंशुमती के पिता को पता चली, तो उन्होंने राजकुमारों की सहायता करने का निर्णय लिया। उन्होंने गंधर्व नरेश के विरुद्ध युद्ध छेड़ा, जिसमें राजकुमारों को विजय प्राप्त हुई।
राजपाट की पुनः प्राप्ति और ब्राह्मणी का सम्मान
प्रदोष व्रत के प्रभाव से राजकुमारों को उनका राज्य पुनः प्राप्त हो गया। इससे प्रसन्न होकर उन्होंने ब्राह्मणी को अपने राजदरबार में विशेष सम्मान दिया, जिससे उसकी गरीबी समाप्त हो गई। वो दोबारा समृद्ध हो गई और शिव भक्ति में लीन रहने लगी।
भौम प्रदोष व्रत विधि
व्रत संकल्प - सुबह स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें और व्रत का संकल्प लें।
उपवास - पूरे दिन उपवास रखें, फलाहार या जल ग्रहण कर सकते हैं।
शिव पूजन का समय - सूर्यास्त के बाद और रात्रि के पहले प्रहर में पूजा करें।
अभिषेक - शिवलिंग का गंगाजल, दूध, दही, शहद और पंचामृत से स्नान कराएं।
अर्पण सामग्री - बेलपत्र, धतूरा, भांग, चंदन, फल, फूल, धूप-दीप अर्पित करें।
मंत्र जाप - 'ॐ नमः शिवाय' का 108 बार जाप करें, रुद्राष्टकम या महामृत्युंजय मंत्र का पाठ करें।
व्रत कथा - पूजा के दौरान प्रदोष व्रत कथा का श्रवण या पाठ करें।
आरती और प्रसाद - भगवान शिव की आरती करें और भक्तों में प्रसाद वितरित करें।
व्रत पारण - अगले दिन सुबह व्रत खोलें और जरूरतमंदों को दान दें।
प्रदोष व्रत का पालन करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। ये व्रत न केवल भौतिक सुख-संपत्ति की प्राप्ति में सहायक होता है, बल्कि आध्यात्मिक रूप से भी भक्तों को शिव कृपा का अनुभव कराता है।
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