9 अप्रैल 2025 : द्वितीय विश्व युद्ध के परिणामों से उभरी राजनीतिक पारिस्थितियों ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलनों को नई दिशा दी,1948 में मिलने वाली आजादी 1947 में ही मिल गई स्वतंत्रता सेनानियों का प्रयास फलीभूत हुआ,लेकिन वह बटवारे की त्रासदी के साथ मिली । बांग्लादेश, पाकिस्तान के बटवारे से बना इसका श्रेय जो लेते हैं वों ये नही बताते की पाकिस्तान का हिंदुस्तान से बटवारा क्यों और कैसे हुआ? पंडित नेहरु सितम्बर 1946 में देश के अंतरिम प्रधानमंत्री बन गए थे उनकी सरकार में मुस्लिम लीग भी शामिल थी ,जिसने कैबिनेट मिशन के आधार पर देश का बटवारा स्वीकार किया,बटवारे के बाद देश का प्रधानमंत्री कांग्रेस अध्यक्ष ही बनता इसकी वजह से मौलाना अजाद से त्याग पत्र लिया गया, अध्यक्ष का चुनाव हुआ जिसमें सर्वाधिक वोट सरदार पटेल को मिले फिर आचार्य कृपलानी को फिर भी पंडित नेहरु को प्रधानमंत्री बहुमत की अवहेलना कर बनाया गया,सत्ता वर्षो की गुलामी के बाद हाथ आ रही थी तो लोग लालायित भी थे ,इसी लालसा ने देश का बटवारा किया ,कांग्रेस यदि मुस्लिमों के प्रति सहिष्णु थी तो मौलाना अजाद और यदि बहुमत को मानती तो सरदार पटेल देश के पहले प्रधानमंत्री बनते ,1946 के चुनावों के परिणाम ने इस देश का बटवारा तय किया, जिस नेहरु की अंतरिम सरकार ने उसे स्वीकार क्या वों अपनी जवाबदेही से भाग इतिहास को अर्द्ध सत्य नही बना रहे ?
सरदार पटेल का गृहमंत्री के रूप में वक्तव्य है की जिन लोगों ने मुस्लिम लीग को बंगाल ,बिहार, उत्तरप्रदेश और देश के अन्य राज्यों में समर्थन दिया,वों पाकिस्तान नही गए एक रात में उनका ह्रदय परिवर्तन कैसे हो गया ? धर्म के आधार पर देश बटा तो अब किसी धर्म विशेष को ना विशेष सुविधा मिलेगी ना धर्म आधारित कानून बनेंगे । रियासतों के विलनीकरण से भारत को नया स्वरूप मिला ,भूमियां संपत्तियां मिली,क्या ये उन रियासतों का त्याग नही था? जो मुसलमान हिंदुस्तान से पाकिस्तान गए उनकी अधिकांश संपत्तियां वक्फ की हो गई पर जो हिंदू भीषणतम नरसंहार, क्रूरतम अपराध झेलकर पाकिस्तान से हिंदुस्तान आये उनकी संपत्तियों का क्या हुआ ? ऐसे हिंदू दर -दर की ठोकरे खाने मजबूर हो गए ,अपने भू -भाग से विस्थापित हो गए ,बटवारे के बाद अंतरिम सरकार भारत की सरकार बन स्थापित हो गई ,पंडित जी प्रथम प्रधानमंत्री बन गए पर क्या भारत सरकार ने बलात निर्वासित किये गए पाकिस्तानी निर्वासित ,शरणार्थी हिन्दुओं के साथ न्याय किया ? इतिहास के पन्नो से ये सत्य क्यों हटाए गया ? क्यों अर्धसत्य पढ़ाया गया ? विभाजन के पहले भी यही हालात थे जो आज हैं,मुस्लिम कट्टरता बढ़ रही थी,मौलवी मुस्लिम लीग के पक्ष में मतदान करने के फतवे जारी कर रहे थे, मत ना देने पर नमाजे जनाजे की मनाही हो रही थी ,हिंदू मुस्लिम साथ नही रह सकते का उदघोष था, क्या ये परिस्थितियां बिना राजनीतिक संरक्षण और प्रश्रय के संभव था ?
मुस्लिमों के लिए तो मुस्लिम लीग थी क्या कांग्रेस हिन्दुओं के लिए खड़ी थी ? हिंदू हितों की रक्षा क्यों नही की गई ,धर्म के आधार पर बटवारा और धर्म निरपेक्षता का चोला ,चोला हिन्दुओं का तब से घायल होते आ रहा ,आज वक्फ के पास नौ लाख एकड़ से उपर जमीन है जमीन वक्फ की गई तो आज मुसलमान क्यों इतने गरीब हैं? संसद से लेकर ईडन गार्डन तक दावे, वक्फ बाय यूजर्स धारा 40 एवं असीमित अधिकारों ने क्या नैसर्गिक न्याय की हत्या नही की ? हम फिर वही खड़े हैं ,राजनीतिज्ञों की सत्ता लालसा अराजकता को बढ़ावा दे रही, एकतरफा प्रेम में जिन हाथो में पत्थर हैं उन हाथों को ताकत यही दे रहे ,धर्म निरपेक्षता के मायने ही हिंदू विरोध हो गया है, तहजीब, गंगा जमुनी थी तो देश क्यों बटा ? लालसा यदि सत्ता की नही थी तो लीग के पूर्व कांग्रेसी जिन्ना को प्रधानमंत्री बना देश का बटवारा रोक लेते, बटवारा हुआ मतलब दावें खोखले थे,कांग्रेस और मुस्लिम लीग दोनों सत्ता के आकांक्षी थे, एक देश में एक प्रधानमंत्री हो सकता था पर जिन्ना ,नेहरु दोनों को सर्वोच्च पद चाहिए था ,उसके लिए देश का विभाजन जरुरी था और वही हुआ,दशकों की गुलामी के बाद सत्ता की लालसा तों समझ भी लें कोई पर एक दशक की सत्ता आतुरता में कांग्रेस और इंडी गठबंधन फिर वही गलती दोहरा रही ,पाकिस्तान, बांग्लादेश और भारत बटकर भी परिवारवादी राजनीति से ग्रसित रहे क्यों ? क्या ऐसा नेताओं ने कर दिया था, आर्थिक स्थितियां आज की बता रही की उचित क्या था है और रहेगा । क्या इस्लाम के नाम पर बना पाकिस्तान पूर्ण इस्लामिक राष्ट्र है ? हराम कही जाने वाली ऐसी कौन सी विधा है जो आराम के लिए उपयोग नही की जा रही, इतिहास से सिख नही ले रहे क्योंकी हमारा इतिहास ही अर्धसत्यों से भरा पड़ा है, भारत ,पाकिस्तान के बीच तीन युद्ध हुए भारतीय इतिहास कहता है की तीनों हम जीतें, पाकिस्तान इतिहासकार पाकिस्तान को जीता बताते हैं ,ऐसे विरोधाभासी इतिहास को विश्व कैसा आंकलित करता होगा ? अर्धसत्य का वही दौर फिर दोहराया जा रहा ,असफल प्रेम की मनगढंत कहानियां फिर लिखी जा रहीं ,बहुमत ना जीत सकने वाले सत्ता जीत चाह रहे ,अपनी आतुरता में देश को उसी दौर में ढकेलने की कोशिश कर रहे -------------------------तब अब और आगे अर्द्ध सत्य ,अर्द्ध सत्य ही रहेगा
चोखेलाल
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मुखिया के मुखारी व्यवस्था पर चोट करती चोखेलाल की टिप्पणी
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