छत्तीसगढ़ के इस गांव के लोगों को विधायक का नाम तक नहीं पता,जीवन शैली भी अलग

छत्तीसगढ़ के इस गांव के लोगों को विधायक का नाम तक नहीं पता,जीवन शैली भी अलग

बालोद  : छत्तीसगढ़ के बालोद  जिला में अंतिम छोर व वनांचल क्षेत्र में बसे दो ऐसे गांव हैं, जहां के ग्रामीण न केवल मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं, बल्कि उनकी जीवन शैली भी अलग है.गांव तक पहुंच मार्ग की स्थिति बेहद खराब है. ये दोनों ही गांव नलकसा ग्राम पंचायत के आश्रित ग्राम हैं. ग्रामीणों का माने तो कई बार गांव में सुविधाओं के लिए आवाज उठायी गयी, लेकिन इनकी आवाज सघन जंगलों में ही दब कर रह गई. इतना ही नहीं इन गांव तक अधिकारी व जन प्रतिनिधि तक नहीं पहुंचते है. इस गांव के लोगों को यह भी नहीं मालूम कि इनके क्षेत्र का विधायक कौन है? इतना ही नहीं सूबे के मुख्यमंत्री का भी नाम इन्हें नहीं मालूम है.

नारंगसुर के ऐसे हैं हालात

जंगलों के बीच स्थित इस छोटे से गांव को नारंगसुर के नाम से जाना जाता है, जो कि ग्राम पंचायत का नलकसा का आश्रित ग्राम है. यहां के ग्रामीणों की जीवन शैली भी कुछ अलग है. यहां के लोग सीमित संसाधनों के बीच अपना जीवन यापन कर रहे हैं. पिछले कई सालों से यह गांव यहां स्थापित है. बोईरडीह डेम के डूब क्षेत्र में स्थित होने के बावजूद भी, इन्हें पेयजल के लिए परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. बच्चों को पढ़ाई करने के लिए दीगर गांव जाना पड़ता है. यहां जंगलों से मिलने वाले हर्रा बेहरा, इमली, लाख, महुआ ही ग्रामीणों के लिए आय का साधन है. ग्रामीण इन्हें अपने स्तर पर एकत्र करते हैं और फिर उसे दूसरे जगह जाकर बेचते हैं. इससे उन्हें कोई खास आमदानी नहीं होती, फिर भी जीवन यापन के लिए उनका यह सहारा है.

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ग्रामीणों का माने तो मार्ग में पुल निर्माण भी नहीं हुआ है, बरसात के दिनों में ग्रामीण अपने गांव तक सिमट कर रह जाते हैं. बच्चे दूसरे गांव में पढ़ने नहीं जा पाते. गांव में सौर ऊर्जा से संचालित नल जल है, लेकिन गर्मी के इन दिनों उसमें सही ढंग से पानी नहीं आ पाता. ऐसे में ग्रामीण डैम के पानी का सहारा लेते हैं. गांव की गलियों में कुछ साल पहले खंभे लगाकर लाइट की व्यवस्था की गई. लेकिन कुछ ही दिनों में यह खराब हो गयी, उसके बाद उसे सुधारा नहीं गया. रात के अंधेरे में जंगली जानवर भी इस गांव में आ जाते है, पालतू जानवरों को नुकसान पहुंचाते हैं. गांव में साल 2013 में आंगनबाड़ी भवन बन कर तैयार किया गया, लेकिन वह भवन बिना उपयोग किए ही अब जर्जर होने की कगार पर है.

यहां आंगनवाड़ी में कोई पढ़ाने ही नहीं आता. धीरे धीरे इस गांव की आबादी कम होते जा रही है. सुविधाओं के अभाव होने की वजह से ग्रामीण अब इस गांव को छोड़ने मजबूर हो रहे है. गांव में महज 10 घर है और आबादी 48 है.

नलकसा के बारे में भी जानिए

ग्राम पंचायत नलकसा का आश्रित ग्राम हिड़कापार, जो कि आदिवासी बाहुल्य गांव है और जंगल के बीच स्थित है. इस गांव में भी समस्या कम नहीं है. गर्मी के दिनों में ग्रामीणों को पेयजल की समस्या से जूझना पड़ रहा है. ग्रामीणों की माने तो गांव पहुंच मार्ग की स्थिति बेहद खराब है. कच्चे मार्ग में पुल पुलिया नहीं होने से ग्रामीणों को आवागमन में भारी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. गांव में शासकीय उचित मूल्य की दुकान नहीं है, लिहाजा ग्रामीणों को राशन लेने नलकसा जाना पड़ता है. इसके लिए ग्रामीणों को कभी एक दिन तो कभी कभी दो दिन का समय लगता है.

ग्रामीण बताते हैं कि यहां कोई नेता या अधिकारी नहीं आते जिसके चलते यहां के लोगों को इस क्षेत्र के विधायक का नाम नहीं मालूम. यही नहीं छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री कौन है? इसकी भी जानकारी यहां के ग्रामीणों को नहीं है.इस क्षेत्र के जनप्रतिनिधि इस गांव की समस्या से अवगत हैं. अब ग्राम पंचायत नलकसा के युवा सरपंच इन गावों के समस्याओं का समाधान करने की बातों पर जोर दे रहे हैं.

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