हनुमान चालीसा का पाठ शनिवार के दिन इस नियम से करें,सारी बाधाएं होंगी दूर

हनुमान चालीसा का पाठ शनिवार के दिन इस नियम से करें,सारी बाधाएं होंगी दूर

हिंदू धर्म में हर दिन का अपना एक महत्व है। शनिवार के दिन साधक भगवान शनि की पूजा करते हैं। वहीं, इस पावन दिन बजरंगबली की पूजा भी विशेष फलदायी मानी जाती है। कहा जाता है कि इस दिन भगवान पवन पुत्र की पूजा करने से सभी संकटों का नाश होता है। ऐसे में इस दिन किसी हनुमान मंदिर जाएं। हनुमान जी को लाल चोला, तुलसी की माला और मोतीचूर के लड्डू का भोग लगाएं। छाया का दान करें और पीपल वृक्ष के समक्ष दीपक जलाएं। फिर हनुमान चालीसा का पाठ भाव के साथ करें। शनि देव के वैदिक मंत्रों का जाप भी करें।चमेली के तेल का दीपक जलाएं और भाव के साथ आरती से करें। ऐसा करने से शनिदेव प्रसन्न होते हैं। इसके साथ ही वीर हनुमान की कृपा मिलती है।

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हनुमान चालीसा पाठ के नियम (Hanuman Chalisa Path Rules)

  1. लाल रंग का कपड़ा पहनें।
  2. पाठ से पहले भगवान राम का ध्यान करें।
  3. पाठ के दौरान न बोलें।
  4. जल्दी जल्दी पाठ न करें।
  5. काले वस्त्र पहनकर पाठ न करें।
  6. मन में गलत भाव न लाएं।
  7. अशुद्ध अवस्था में पाठ न करें।
  8. पूजा में पवित्रता का खास ख्याल रखें।
  9. अंत में पाठ में हुई सभी गलतियों के लिए माफी मांगे।

।।हनुमान चालीसा का पाठ।। (Hanuman Chalisa)

।। दोहा।।

श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि ।

बरनउं रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि ।।

बुद्धिहीन तनु जानिके सुमिरौं पवन-कुमार ।

बल बुधि बिद्या देहु मोहिं हरहु कलेस बिकार ।।

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।। चौपाई ।।

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर । जय कपीस तिहुं लोक उजागर ।।

राम दूत अतुलित बल धामा । अंजनि पुत्र पवनसुत नामा ।।

महाबीर बिक्रम बजरंगी । कुमति निवार सुमति के संगी ।।

कंचन बरन बिराज सुबेसा । कानन कुण्डल कुंचित केसा ।।

हाथ बज्र अरु ध्वजा बिराजै । कांधे मूंज जनेउ साजै ।।

शंकर स्वयं/सुवन केसरी नंदन । तेज प्रताप महा जगवंदन ।।

बिद्यावान गुनी अति चातुर । राम काज करिबे को आतुर ।।

प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया । राम लखन सीता मन बसिया ।।

सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा । बिकट रूप धरि लंक जरावा ।।

भीम रूप धरि असुर संहारे । रामचन्द्र के काज संवारे ।।

लाय सजीवन लखन जियाए । श्री रघुबीर हरषि उर लाये ।।

रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई । तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ।।

सहस बदन तुम्हरो जस गावैं । अस कहि श्रीपति कण्ठ लगावैं ।।

सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा । नारद सारद सहित अहीसा ।।

जम कुबेर दिगपाल जहां ते । कबि कोबिद कहि सके कहां ते ।।

तुम उपकार सुग्रीवहिं कीह्ना । राम मिलाय राज पद दीह्ना ।।

तुम्हरो मंत्र बिभीषण माना । लंकेश्वर भए सब जग जाना ।।

जुग सहस्त्र जोजन पर भानु । लील्यो ताहि मधुर फल जानू ।।

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं । जलधि लांघि गये अचरज नाहीं ।।

दुर्गम काज जगत के जेते । सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ।।

राम दुआरे तुम रखवारे । होत न आज्ञा बिनु पैसारे ।।

सब सुख लहै तुम्हारी सरना । तुम रक्षक काहू को डरना ।।

आपन तेज सम्हारो आपै । तीनों लोक हांक तै कांपै ।।

भूत पिशाच निकट नहिं आवै । महावीर जब नाम सुनावै ।।

नासै रोग हरै सब पीरा । जपत निरंतर हनुमत बीरा ।।

संकट तै हनुमान छुडावै । मन क्रम बचन ध्यान जो लावै ।।

सब पर राम तपस्वी राजा । तिनके काज सकल तुम साजा ।।

और मनोरथ जो कोई लावै । सोई अमित जीवन फल पावै ।।

चारों जुग परताप तुम्हारा । है परसिद्ध जगत उजियारा ।।

साधु सन्त के तुम रखवारे । असुर निकंदन राम दुलारे ।।

अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता । अस बर दीन जानकी माता ।।

राम रसायन तुम्हरे पासा । सदा रहो रघुपति के दासा ।।

तुम्हरे भजन राम को पावै । जनम जनम के दुख बिसरावै ।।

अंतकाल रघुवरपुर जाई । जहां जन्म हरिभक्त कहाई ।।

और देवता चित्त ना धरई । हनुमत सेइ सर्ब सुख करई ।।

संकट कटै मिटै सब पीरा । जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ।।

जै जै जै हनुमान गोसाईं । कृपा करहु गुरुदेव की नाईं ।।

जो सत बार पाठ कर कोई । छूटहि बंदि महा सुख होई ।।

जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा । होय सिद्धि साखी गौरीसा ।।

तुलसीदास सदा हरि चेरा । कीजै नाथ हृदय मह डेरा ।।

।। दोहा ।।

पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप ।

राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप ।।








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