जांजगीर-चाम्पा : एक ओर जहां बारात की खुशियों की गूंज रहनी चाहिए थी, वहीं दूसरी ओर बलौदा में बारात से लौटते ग्रामीणों के साथ हुई बर्बरता ने पुलिस की छवि को गहरा झटका दिया है। बलौदा थाना क्षेत्र के अंतर्गत जावलपुर गांव में शादी समारोह से लौट रहे बारातियों, बुज़ुर्गों और एक दिव्यांग युवक पर पुलिस की कथित बर्बर मारपीट ने हर किसी को हिला दिया है।
पुलिस की मौजूदगी में स्थानीय युवाओं की गुंडागर्दी और फिर खुद पुलिस का हमला
बारात में शामिल युवकों और विडियोग्राफरों पर 11 मई की रात स्थानीय युवकों ने लाठी, रॉड और बेल्ट से हमला किया। जब पीड़ित थाने पहुंचे तो एफआईआर दर्ज करवाना भी टेढ़ी खीर साबित हुआ। दो दिन बाद उच्च अधिकारियों के दबाव में मेडिकल जांच संभव हो पाई।
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पुलिस का दोहरा चेहरा: रक्षक बने भक्षक
पीड़ितों का आरोप है कि विवाह संपन्न कर लौटते समय बलौदा पुलिस ने झपेली रोड पर उनकी गाड़ी को रोका और बिना कारण पूछे मारपीट शुरू कर दी। बुजुर्गों के सामने गालियां दी गईं, एक दिव्यांग युवक लतीफ मोहम्मद को भी नहीं बख्शा गया। आरोपियों में एक पुलिसकर्मी का नाम अमित सिंह ठाकुर सामने आया है।
दर्दनाक बयान
"हम गाड़ी से उतरते रहे और वे डंडे बरसाते रहे। बार-बार कहने के बावजूद कि हम निर्दोष हैं, उन्होंने किसी की नहीं सुनी। यहां तक कि हमारे साथ मौजूद महिला की गुहार भी अनसुनी कर दी गई।"
सरपंच की चेतावनी
पोड़ी दल्हा के सरपंच जीतेंद्र सिंह ने चेतावनी दी है कि यदि दोषी पुलिसकर्मियों पर जल्द कार्रवाई नहीं हुई तो थाना घेराव किया जाएगा।
टीआई मनीष तंबोली का बयान
"मेडिकल जांच कराई गई है, रिपोर्ट के आधार पर धाराएं जुड़ेंगी। अगर जांच में पुलिस की संलिप्तता पाई गई तो कार्रवाई तय है।"
सवालों के घेरे में बलौदा थाना
क्या बलौदा पुलिस दबंगई की राह पर है?
क्या पदस्थ अधिकारी अपनी धाक जमाने के लिए मासूमों पर अत्याचार कर रहे हैं?
क्या इस केस में निष्पक्ष जांच होगी या फिर मामला ठंडे बस्ते में जाएगा?
यह मामला केवल मारपीट का नहीं, बल्कि वर्दी पर उठता एक बड़ा सवाल है। जब पुलिस ही लोगों की सुरक्षा की जगह उनकी अस्मिता और अधिकारों पर हमला करे, तो न्याय की उम्मीद कहां से करें?
इस बारात की कहानी, बारातियों की चीख और पुलिस की लाठियां – इंसाफ की गूंज कब सुनाई देगी?
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