शनि की बाधा से कैसे राहत पाएं? जानिए

शनि की बाधा से कैसे राहत पाएं? जानिए

न्याय के देवता शनिदेव अच्छे कर्म करने वाले लोगों पर अपनी कृपा बरसाते हैं। उनकी कृपा से व्यक्ति अपने जीवन में अवश्य ही सफल होते हैं। साथ ही समय के साथ ही जीवन में ऊंचा मुकाम हासिल करता है। वहीं, बुरे कर्म करने वाले जातकों को शनिदेव दंड देते हैं। शनिदेव की कुदृष्टि पड़ने पर जातक को जीवन में नाना प्रकार की परेशानियों की सामना करना पड़ता है। इसके लिए ज्योतिष कुंडली में शनि को मजबूत करने की सलाह देते हैं।

ये भी पढ़े : मुखिया के मुखारी – कर्महिनों को कर्मठता नही भाति

सनातन शास्त्रों में निहित है कि देवों के देव महादेव की पूजा करने से कुंडली में शनि की स्थिति मजबूत होती है। आसान शब्दों में कहें तो शनि बली होता है। साथ ही शनिदेव की कृपा साधक पर बरसती है। लेकिन क्या आपको पता है कि शनि की अंतर्दशा (Shani ki antardasha) कितने साल तक चलती है और शनिदेव को कैसे प्रसन्न करें? आइए, इसके बारे में सबकुछ जानते हैं-

शनि की अंतर्दशा
ज्योतिषियों की मानें तो शनि की महादशा तकरीबन 19 साल तक रहती या चलती है। इस दौरान सबसे पहले शनि की अंतर्दशा ही चलती है। शनि की अंतर्दशा तीन साल तक रहती है। आसान शब्दों में कहें तो शनि की महादशा प्रारंभ होने पर शनि की अंतर्दशा चलती है। शनिदेव कर्मफल दाता हैं। इसके लिए व्यक्ति को कर्म के अनुसार फल देते हैं। इसके बाद क्रमशः शुभ और अशुभ ग्रहों की अंतर्दशा चलती है। इसके अलावा, अंतर्दशा में प्रत्यंतर दशा भी चलती है। शनिदेव की कृपा पाने के लिए अच्छे कर्म करना चाहिए।

शनिदेव को कैसे प्रसन्न करें?

अच्छे कर्म करने वाले जातकों पर शनिदेव की कृपा बरसती है। इसके लिए नियमित रूप से कर्म करें। वहीं, बुरे कर्मों का त्याग करें।
झूठ बोलने से बचें। कोशिश करें कि सत्य की राह पर अग्रसर रहें।
शनिवार के दिन तामसिक भोजन का सेवन न करें।
भगवान शिव और कृष्ण जी की पूजा करें। भगवान शिव की पूजा करने से शनिदेव प्रसन्न होते हैं।

ये भी पढ़े : सोमवार के दिन भगवान शिव की इस तरह करें कृपा प्राप्त

शनैश्चरस्तोत्रम्

कोणोऽन्तको रौद्रयमोऽथ बभ्रुः कृष्णः शनिः पिंगलमन्दसौरिः।

नित्यं स्मृतो यो हरते च पीडां तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय॥

सुरासुराः किंपुरुषोरगेन्द्रा गन्धर्वविद्याधरपन्नगाश्च।

पीड्यन्ति सर्वे विषमस्थितेन तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय॥

नरा नरेन्द्राः पशवो मृगेन्द्रा वन्याश्च ये कीटपतंगभृङ्गाः।

पीड्यन्ति सर्वे विषमस्थितेन तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय॥

देशाश्च दुर्गाणि वनानि यत्र सेनानिवेशाः पुरपत्तनानि।

पीड्यन्ति सर्वे विषमस्थितेन तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय॥

तिलैर्यवैर्माषगुडान्नदानैर्लोहेन नीलाम्बरदानतो वा।

प्रीणाति मन्त्रैर्निजवासरे च तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय॥

प्रयागकूले यमुनातटे च सरस्वतीपुण्यजले गुहायाम्।

यो योगिनां ध्यानगतोऽपि सूक्ष्मस्तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय॥

अन्यप्रदेशात्स्वगृहं प्रविष्टस्तदीयवारे स नरः सुखी स्यात्।

गृहाद् गतो यो न पुनः प्रयाति तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय॥

स्रष्टा स्वयंभूर्भुवनत्रयस्य त्राता हरीशो हरते पिनाकी।

एकस्त्रिधा ऋग्यजुःसाममूर्तिस्तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय॥

शन्यष्टकं यः प्रयतः प्रभाते नित्यं सुपुत्रैः पशुबान्धवैश्च।

पठेत्तु सौख्यं भुवि भोगयुक्तः प्राप्नोति निर्वाणपदं तदन्ते॥

कोणस्थः पिङ्गलो बभ्रुः कृष्णो रौद्रोऽन्तको यमः।

सौरिः शनैश्चरो मन्दः पिप्पलादेन संस्तुतः॥

एतानि दश नामानि प्रातरुत्थाय यः पठेत्।

शनैश्चरकृता पीडा न कदाचिद्भविष्यति॥









You can share this post!


Click the button below to join us / हमसे जुड़ने के लिए नीचें दिए लिंक को क्लीक करे


Related News



Comments

  • No Comments...

Leave Comments