बेख़ौफ़ जारी अतिक्रमण का खेल ! रामपुर की सरकारी भूमि बना माफियाओं का अड्डा

बेख़ौफ़ जारी अतिक्रमण का खेल ! रामपुर की सरकारी भूमि बना माफियाओं का अड्डा

रायगढ़ :  सरकारी जमीनें आमजन की साझा संपत्ति होती हैं, जिनका संरक्षण प्रशासन की प्राथमिक जिम्मेदारी मानी जाती है। लेकिन रायगढ़ में यह परिभाषा अब मजाक बनकर रह गई है। यहां नजूल भूमि पर जारी अतिक्रमण न केवल कानून की अवहेलना है, बल्कि स्थानीय प्रशासन की कार्यशैली पर भी गंभीर सवाल खड़े करता है। शहर के रामपुर क्षेत्र में सरकारी जमीनों पर अतिक्रमण का खेल थमने का नाम नहीं ले रहा। सत्ता बदली, चेहरे बदले, लेकिन जमीनों पर कब्जे की तस्वीरें आज भी वैसी की वैसी हैं। रामपुर की सरकारी भूमि आज माफियाओं के लिए सोने की खान बन चुकी है। यहां खुलेआम सरकारी जमीनों को घेरकर घर बनाए जा रहे हैं। अतिक्रमण केवल जारी नहीं है, बल्कि और भी योजनाबद्ध तरीके से बढ़ता जा रहा है। रामपुर अहाते के आस-पास की जमीनों पर अब भी धड़ल्ले से अतिक्रमण जारी है।

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सूत्रों के मुताबिक, कुछ कबाड़ व्यवसायियों ने यहां डेरा डाल लिया है और खाली जमीनों पर अस्थायी ढांचे खड़े कर लिए हैं। स्थानीय दलाल इन सरकारी जमीनों को डिसमिल के हिसाब से बेच रहे हैं, जैसे ये उनकी पुश्तैनी संपत्ति हो। अहाते के आसपास की जमीनों को कई बार बेचा जा रहा है। खरीददार भी, बिना वैध दस्तावेजों की जांच किए, केवल कम कीमत के लालच में निवेश कर रहे हैं। इन जमीनों की अवैध बिक्री में स्थानीय माफिया की अहम भूमिका बताई जा रही है। पहले वे जमीन पर कब्जा करते हैं, फिर उस पर आधा-अधूरा निर्माण करवा देते हैं और बाद में उसे बेच देते हैं। इस पूरे सिलसिले में स्थानीय राजस्व अमले की भूमिका भी सवालों के घेरे में है।

सूत्रों का दावा है कि पटवारी स्तर पर इन अतिक्रमणों की जानकारी पहले से होती है, मगर विभागीय रिपोर्टिंग में जानबूझकर देरी की जाती है। इससे निर्माण कार्य पूरा हो जाता है और फिर अधिकारी केवल औपचारिक नोटिस जारी कर इतिश्री कर लेते हैं। रामपुर की यह स्थिति कोई नई नहीं है। पिछले वर्ष भी इन अवैध गतिविधियों को लेकर शिकायतें हुई थीं और मीडिया में मामला जोर-शोर से उठा था। लेकिन एक साल के भीतर तस्वीर और भयावह हो चुकी है। अब हालात यह हैं कि कब्जाधारी खुद को जमीन का मालिक बताकर उसे आगे बेच रहे हैं। यह स्थिति केवल प्रशासनिक सुस्ती की नहीं, बल्कि व्यापक तंत्रगत विफलता की ओर संकेत करती है। जिस नजूल भूमि को खुलेआम बेचा जा रहा है, वह यह भी दर्शाता है कि इस खेल में कहीं न कहीं ‘सिस्टम’ की मौन सहमति भी शामिल है।

हालांकि, राजस्व विभाग में फेरबदल की कोशिशें जरूर हुई हैं। वर्षों से एक ही हल्के में पदस्थ कुछ पटवारियों और राजस्व निरीक्षकों को हाल ही में स्थानांतरित किया गया है। लेकिन जमीनी हकीकत यही है कि जब तक इस अवैध धंधे की जड़ में बैठे गठजोड़ को नहीं तोड़ा जाएगा, तब तक केवल तबादलों से बदलाव की उम्मीद करना बेमानी है।

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