रायगढ़ : अजय अग्रवाल पिता मुनुलाल निवासी रायपुर, अरुण अग्रवाल पिता मुनुलाल निवासी रायपुर, मदनपुर साउथ कोल कंपनी डायरेक्टर आलोक चौधरी, विमल एग्रीकल्चर डायरेक्टर विमल अग्रवाल निवासी रायपुर, ये नाम साराडीह बैराज में प्रभावित हुए किसानों के हैैं। इनके नाम पर कोई एक-दो हेक्टेयर जमीन नहीं बल्कि करीब 200 हे. भूमि है। सुशासन तिहार में साराडीह बैराज घोटाला एक बार फिर सामने आया है। अविभाजित रायगढ़ जिले के शुरुआती घोटालों में से एक साराडीह बैराज घोटाला भी है। किसानों की डूब क्षेत्र में जाने वाली जमीनों को रेत लीज के नाम पर औने-पौने दामों में खरीदा गया। महानदी पर सारंगढ़ तहसील में बना साराडीह बैराज भूअर्जन में कई अनियमितताओं के लिए जाना जाता है। सुशासन तिहार में आई शिकायत ने पुराने घोटाले की फाइल से धूल झाड़ दी है। कुल नौ गांवों जशपुर, छतौना, नावापारा, तिलाईमुड़ा, जसरा, दहिदा, बरभांठा, धूता, घोटला छोटे के 1034 किसानों से 432.150 हे. भूमि का अधिग्रहण किया गया।
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किसानों की इस सूची में करीब आठ नाम ही गांवों से बाहर के हैं। इसमें भी चार नाम ऐसे हैं जिसको पढक़र आप चौंक जाएंगे। पहला नाम अजय अग्रवाल पिता मुनुलाल का है जिनकी 0.119 हे. भूमि के लिए 2.62 लाख रुपए मिले। इसी तरह अरुण अग्रवाल निवासी रायपुर को भी 2.036 हे. भूमि के एवज में 44.91 लाख रुपए मिले। इसके बाद विमल एग्रीकल्चर डायरेक्टर विमल अग्रवाल निवासी रायपुर को 10.758 हे. भूमि का मुआवजा 2.38 करोड़ रुपए दिया गया है। अंतिम नाम सबसे बड़ी कंपनी मदनपुर साउथ कोल कंपनी डायरेक्टर आलोक चौधरी का है। इनको जशपुर की 126 हे. जमीन के बदले करीब 28 करोड़ रुपए मिले। नौ गांवों में से एक जशपुर में ही मदनपुर साउथ कोल कंपनी ने 126 हे. जमीन खरीद ली थी। पूरी जमीन टुकड़ों में नदी किनारे की थी।
हैरानी की बात है कि पूरी जमीन कृषि भूमि के रूप में एक व्यावसायिक संस्थान ने खरीदी। मदनपुर कोल कंपनी ने 136 टुकड़ों में 126 हे. जमीन खरीदी थी। मुआवजा पाने के लिए धोखे से रजिस्ट्री करवाई गई। औने-पौने दामों में मदनपुर साउथ कोल कंपनी और विमल एग्रीकल्चर ने भूमि क्रय की। किसानों ने बाद में कई बार शिकायत की, लेकिन मामला दबा दिया गया। 4 जनवरी 2017 को कोसीर थाने में भी शिकायत दर्ज की गई। 15 जनवरी 2017 को एसपी के निर्देश पर जांच शुरू हुई जो अधूरी है। अब सुशासन त्योहार में फिर से शिकायत हुई है।
कैसे हुई इतनी रजिस्ट्रियां
जशपुर गांव में दो भागों में भूअर्जन किया गया। सवाल यह है कि दोनों कंपनियों ने इतनी जमीनों की रजिस्ट्री कैसे करवाई। पता चला है कि आधी रात तक उप पंजीयक सारंगढ़ के दफ्तर खुले रहे। एक साथ इतनी जमीन खरीदने पर सीलिंग एक्ट कैसे नहीं लगा। इस दौरान पटवारी वहां पदस्थ थे।
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