कश्मीर पर क्यों था नेहरू-पटेल में मतभेद?

कश्मीर पर क्यों था नेहरू-पटेल में मतभेद?

उत्तर प्रदेश के कैराना के प्रसिद्ध शायर मुज़फ़्फ़र इस्लाम रज़्मी ने अपनी इन पंत्कियों में बताने की कोशिश की है कि किसी लम्हें में की गई कोई गलती, कोई भूल आपके आने वाली पीढ़ियों पर भारी पड़ सकती है। पिछले 78 सालों में हजारों निर्दोष लोग मारे जा चुके हैं और हजारों सैनिकों का भी बलिदान हो चुका है। अभी भी हम युद्ध की स्थिति में है। आज उस मुद्दे की बात करेंगे कि हम दुनिया की चौथ अर्थव्यवस्था होकर भी अभी भी एक कंगाल देश के साथ विवाद में उलझे हैं। पाकिस्तान के साथ हिंदुस्तान का सबसे बड़ा विवाद का कारण कश्मीर है। ये तो हम बचपन से इतिहास की किताबों में पढ़ते हैं। ये इतिहास भी बहस का विषय है कि कश्मीर की समस्या के लिए कौन जिम्मेदार है? आरोप पंडित नेहरू पर लगते हैं और इसको लेकर देश में सियासत भी खूब होती है। किताबें भी लिखी जाती है। लेकिन 78 साल बाद भी कश्मीर में निर्दोष मारे जाते हैं। उसी कश्मीर को लेकर भारत और पाकिस्तान आमने सामने चार दिन का युद्ध लड़ते हैं तो इस पर बात करना जरूरी हो जाता है। वर्ष 1947 में जब देश को आजादी मिली और कश्मीर के भाग्य का फैसला देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के हाथ में था। तब क्या उनसे कुछ बड़ी गलतियां हुईं? जिनकी वजह से कश्मीर की समस्या और गहरी होती चली गई। कश्मीर तो भारत का अभिन्न अंग हैं ही लेकिन पूरा का पूरा कश्मीर अगर हमारे पास होता तो क्या होता? भारत की क्या तस्वीर होती। लेकिन आज कश्मीर का कुछ हिस्सा पाकिस्तान के कब्जे में है और इसी पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर को लेकर पीएम मोदी ने कुछ बड़ी बातें कही हैं।

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सरदार वल्लभ भाई पटेल की बात मानी गई होती पीओके भारत के पास होता

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि एक कांटा लगातार दर्द दे सकता है, भले ही शरीर कितना भी मजबूत क्यों न हो। उन्होंने कहा कि भारत ने 'आतंकवाद के कांटे को निकालने' का मन बना लिया और इसे पूरी दृढ़ता के साथ किया। उन्होंने आजादी के तुरंत बाद कश्मीर में हुई घुसपैठ का जिक्र करते हुए कहा कि हमें 1947 में कश्मीर में घुसने वाले मुजाहिद्दीनों को मार गिराना चाहिए था। यदि यह किया गया होता तो मौजूदा स्थिति नहीं होती। मोदी ने कहा कि विभाजन के दौरान मां भारती दो टुकड़ों में बंट गई और उसी रात मुजाहिदीन द्वारा कश्मीर पर पहला आतंकी हमला किया गया। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान ने इन्हीं आतंकवादियों की मदद से भारत माता के एक हिस्से पर कब्जा कर लिया। प्रधानमंत्री ने कहा कि सरदार पटेल की उस समय यह राय थी कि भारतीय सेना को तब तक नहीं रुकना चाहिए जब तक कि पाकिस्तान के कब्जे वाले जम्मू-कश्मीर पर फिर से कब्जा नहीं कर लिया जाता। हालांकि, पटेल की सलाह पर ध्यान नहीं दिया गया।

कई हजार पश्तूनों ने बोला धावा

1947 में जम्मू और कश्मीर राज्य बहुत विविध था। कश्मीर की घाटी, सबसे अधिक आबादी वाला क्षेत्र और ऐतिहासिक रूप से शक्तिशाली राज्य था, जिसमें अफगान-तुर्क और अरब की आबादी थी। राज्य की जनसंख्या 97% मुस्लिम थी और शेष 3% थी। 1947 में पुंछ में महाराजा हरि सिंह के ख़िलाफ़ विद्रोह छिड़ गया। इस विद्रोह के पीछे का कारण क्षेत्र में किसानों पर हरि सिंह द्वारा दंडात्मक कर था। देश को आजादी मिले तीन महीने ही नहीं बीते थे। 24 अक्टूबर 1947 को पाकिस्तान ने कश्मीर पर हमला कर दिया। पाकिस्तानी सेना द्वारा समर्थित उत्तर-पश्चिम सीमांत प्रांत (एनडब्ल्यूएफपी) के कई हजार पश्तून आदिवासियों ने जम्मू-कश्मीर को महाराजा के शासन से मुक्त कराने के लिए घुसपैठ की। महाराज के सैनिकों ने इस आक्रमण को रोकने की कोशिश की लेकिन पाकिस्तान समर्थक विद्रोही आधुनिक हथियारों से लैस थे और 24 अक्टूबर 1947 को उन्होंने लगभग पूरे पुंछ जिले पर नियंत्रण हासिल कर लिया। आक्रमणकारियों ने मुज़फ़्फ़राबाद और बारामूला शहरों पर कब्ज़ा कर लिया और राज्य की राजधानी श्रीनगर से बीस मील उत्तर पश्चिम में पहुँच गए। जब परेशान और हताश महाराजा हरि सिंह ने मदद की उम्मीद के साथ फोन किया, तो नेहरू ने दिल्ली द्वारा उन्हें बचाने की स्थिति में नहीं होने की बात कही।

सिख का सिर, मुसलमान का घर और हिंदू की जर

राज्य बलों के मुस्लिम अधिकारियों ने महाराजा को धोखा दिया, कर्नल नारायण सिंह सम्ब्याल जैसे अधिकारियों को मार डाला और दुश्मन को कश्मीर का रास्ता दिखाया। मुजाहिदीनों ने बारामूला सेक्टर में तेजी से प्रगति की, 11000 से 14,000 निवासियों को मार डाला। भीम्बर से मीरपुर तक कोटली और मुजफ्फराबाद से बारामूला तक हिंदुओं और सिखों का सफाया कर दिया। वे केवल लूटपाट करने, घर जलाने, महिलाओं का बलात्कार करने और युवतियों का अपहरण करने के लिए रुके थे। कबाइली हमला करते समय नारा लगाते थे, सिख का सिर, मुसलमान का घर और हिंदू की जर। यानी पाकिस्तान की सेना ने कबायलियों को हुकूम दिया था कि उन्हें जम्मू कश्मीर में जैसे ही कोई सिख दिखाई दे उसका सिर काट कर दिया जाए, जैसे ही कोई भारत समर्थक मुसलमान दिखाई दे, उसका घर जला दिया जाए और हिंदुओं की संम्पत्ति पर कब्जा किया जाए।

आजादी के बाद से ही पाक हमले की फिराक में था

आजादी के बाद से ही पाकिस्तान जम्मू-कश्मीर पर हमला करने की फिराक में था। पाकिस्तानी हमले की रूपरेखा से जुड़ा एक पत्र संयोगवश मेजर ओएस कल्लत के हाथ लग गया। उस समय वह पाकिस्तानी इलाके बन्नू में थे। उन्होंने तुरंत भारत आकर आगाह किया। यह जानकर पटेल और तत्कालीन रक्षा मंत्री बलदेव सिंह घुसपैठियों से निपटने के लिए पाक से लगी जम्मू-कश्मीर सीमा पर सेना भेजना चाहते थे, लेकिन नेहरू इसके लिए राजी नहीं हुए। इसे भी राजनीति के जानकार एक बड़ी ऐतिहासिक भूल करार देते हैं। जिससे बाद के वर्षों में भी नेहरू ने कायम रखा।

नेहरू ने कश्मीर में किया जनमत संग्रह का ऐलान

26 अक्टूबर 1947 को भारतीय सेना ने पाकिस्तानी कबायलियों पर हमला बोला। उन्हें खदेड़ना शुरू कर दिया। हिंद की सेना जीतती जा रही थी। कश्मीर का दो तिहाई हिस्सा हमलावर कबायलियों से खाली हो चुका था। तभी भारत से भारी भूल हो गई। भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने अपनी तरफ से संघर्ष विराम की घोषणा कर दी। ये घोषणा तब हुई जब भारत जीत के काफी करीब था। ब्रिटिश इतिहासकार विक्टोरिया शोफिल्ड ने अपनी किताब कश्मीर इन कनफ्लिक्ट में इस बारे में बड़ी बात लिखी है। उन्होंने लिखा कि पहली बार लॉर्ड माउंटबेटन ने कश्मीर के मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र संघ में ले जाने की सलाह दी। पाकिस्तान के पहले गवर्नर जनरल मोहम्मद अली जिन्ना को ये सलाह दी गई। लॉर्ड माउंटबेटन ने 1 नवंबर 1947 को मोहम्मद अली जिन्ना से से मुलाकात में उन्हें ये सुझाव दिया था। संयोगवश 2 नवंबर 1947 को पंडित नेहरू ने ऑल इंडिया रेडियो पर कश्मीर में जनमत संग्रह का ऐलान कर दिया था।

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फौरन भारतीय फौजों को नहीं भेजागया तो परेशानी आ जाएगी

इतिहासकार राजा मोहन गांधी ने अपनी किताब गांधी, पटेल लाइफ के पेज नं 442 में लिखा है कि सितंबर 1947 के आखिरी हफ्ते में नेहरू ने पटेल को खुफिया रिपोर्ट भेजी कि पाकिस्तान कश्मीर में घुसपैठ के लिए बड़े पैमाने पर तैयारी कर रहा है। 26 अक्टूबर 1947 को कश्मीर को लेकर नेहरू के घर पर मीटिंग हुई। जिसमें महाराजा हरिसिंह के प्रधानमंत्री मेहर चंद महाजन भी मौजूद थे। मेहरचंद ने कहा कि श्रीनगर में अगर फौरन भारतीय फौजों को नहीं भेजागया तो परेशानी आ जाएगी। उन्होंने साथ ही कहा कि अगर भारत प्रतिक्रिया नहीं दिखाता तो फिर कश्मीर को जिन्ना की शर्तें माननी होंगी। नेहरू नाराज हो गए और महाजन को मीटिंग से जाने के लिए कह दिया। तब पटेल ने बीच में ही टोका और कहा कि महाजन बिल्कुल क्या आप पाकिस्तान नहीं जा रहे हैं? इतिहासकार बताते हैं कि पटेल सैन्य कार्रवाई के पक्ष में थे, जबकि नेहरू कश्मीर में सेना भेजने से कतरा रहे थे।

पटेल ने राजेंद्र प्रसाद को लिखा पत्र

नेशनल बुक ट्रस्ट ने 2010 में एक किताब नेहरू-पटेल समझौता: मतभेदों के बीच प्रकाशित की थी। इसके मुताबिक 29 जून 1949 में सरदार पटेल ने डॉ. राजेंद्र प्रसाद को चिट्ठी लिखकर कहा था कि कश्मीर का भी हल हो गया होता। लेकिन जवाहर लाल नेहरू ने सैनिकों को बारामूला से डोमेल नहीं जाने दिया। 1947-48 के पहले कश्मीर युद्ध के दौरान उन्होंने उन्हें पुंछ की ओर भेजा। सबसे महत्वपूर्ण बात यह थी कि पटेल चाहते थे कि भारतीय सेना की कार्रवाई तब तक जारी रहे, जब तक पाकिस्तान द्वारा अवैध रूप से कब्जा किए गए कश्मीर के हिस्सों को पूरी तरह वापस न ले लिया जाए।






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