गेहूं की तरह अब धान की भी करें सीधी बुआई, कम खर्च में होगा बेहतर मुनाफा

गेहूं की तरह अब धान की भी करें सीधी बुआई, कम खर्च में होगा बेहतर मुनाफा

किसानों की आय बढ़ाना डबल इंजन सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता है. इसे बढ़ाने का सबसे प्रभावी जरिया है, कम लागत में अधिक उपज. केंद्र सरकार इसी मकसद से 'विकसित कृषि संकल्प अभियान' शुरू कर रही है. उम्मीद है कि इस देशव्यापी अभियान का लाभ खरीफ के मौजूदा सीजन में ही मिलेगा. योगी सरकार भी इस अभियान को सफल बनाने के लिए जी-जान से जुट गई है.

उल्लेखनीय है कि खरीफ की मुख्य फसल धान है. नर्सरी में तैयार पौधों को कुशलता से निकालना, इनकी रोपाई के लिए खेत की तैयारी, फसल संरक्षण के उपायों से लेकर फसल की कटाई और मड़ाई तक का काम काफी श्रमसाध्य है. स्वाभाविक है कि इस सबमें अच्छी खासी लागत आती है.

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एक्सपर्ट्स का मानना है कि धान की फसल भी गेहूं की तरह सीधे लाइन से बोआई कर नर्सरी से लेकर पलेवा तक का खर्च बचाया जा सकता है. जीरो सीड ड्रिल, हैप्पी सीडर से बोआई आसान भी है. यही नहीं इसके जरिए बोआई के दौरान खाद और बीज एक साथ गिरने से पौधों को खाद की उपलब्धता भी बढ़ जाती है. फसल के लाइन से उगने के कारण फसल संरक्षा के उपाय में भी आसानी होती है.

यही वजह है कि योगी सरकार लाइन सोइंग के लाभों से किसानों को लगातार जागरूक कर रही है. सरकार का तो यहां तक भी प्रयास है कि जिस फसल के लिए लाइन सोइंग उपयुक्त हैं, उसे किसान लाइन से बोएं. जिनको बेड बनाकर बोना है, उनको बेड बनाकर बोएं. इनमें उपयोग आने वाले कृषि यंत्रों पर सरकार 50% तक अनुदान भी देती है.

गोरखपुर स्थित कृषि विज्ञान केंद्र (केवीके) बेलीपार के प्रभारी डॉ. एस. के. तोमर और मनोज कुमार के मुताबिक, इस विधा से बोआई करने पर उपज में कोई फर्क नहीं पड़ता. प्रति हेक्टेयर लागत करीब 12,500 रुपए घट जाती है. किसान अगर तकनीक का सही तरीके से प्रयोग करना सीख लें तो परंपरागत विधा की तुलना में अधिक उत्पादन भी संभव है.

बोआई के पहले खेत की लेवलिंग जरूरी है. यह लेवलिंग अगर लेजर लेवलर से हो तो और बेहतर. समतल खेत में बीज की बोआई समान रूप से होती है. सिंचाई के दौरान पानी कम लगता है. इससे सिंचाई की भी लागत घटती है. जून का तीसरा हफ्ता बोआई का सबसे उचित समय होता है, यानी धान की सीधी बोआई का सबसे उचित समय 10-20 जून के बीच होता है. बाढ़ वाले क्षेत्रों में पहले बोआई कर लें ताकि बाढ़ आने तक पौधों की जड़ें मजबूत हो जाएं और फसल को न्यूनतम क्षति हो. बेहतर जर्मिनेशन (अंकुरण) के लिए बोआई के समय खेत में पर्याप्त नमी जरूरी है.

मध्यम और मोटे दाने वाले धान में 35 तथा महीन धान में 25 किग्रा, संकर प्रजातियों के लिए 8 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से बीज लगता है. अधिक उपज देने वाली प्रजातियों के लिए एनपीके (नाइट्रोजन, फास्फोरस एवं पोटाश) का अनुपात प्रति हेक्टेयर 150: 60:60 किग्रा की जरूरत होती है. इसमें से बोआई के समय 130 किग्रा. डीएपी का प्रयोग करें. खाद की बाकी मात्रा को दो या तीन हिस्सों में बांटकर हर सिंचाई के ठीक पहले या बाद में प्रयोग करें.

भूमि-जनित एवं बीज जनित रोगों से बचाव के लिए प्रति किग्रा बीज को 3 ग्राम कार्बेडाजिम से उपचारित कर सकते हैं. बोआई के समय सबसे जरूरी चीज है, गहराई के लिए मशीन की सेटिंग. गहराई का मानक 2 से 3 सेंटीमीटर है. अधिक गहराई पर बीज गिराने से जमाव प्रभावित होता है.

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धान बारिश की फसल है. इस सीजन में खरपतवारों का बहुत प्रकोप होता है. इनका समय से सही और प्रभावी नियंत्रण न होने से फसल को बहुत क्षति होती है. इसके लिए बोआई के 24 घंटे बाद जब खेत में नमी रहे तभी पैडी मिथेलीन 30 ईसी की 3.3 लीटर मात्रा को 600 लीटर पानी में घोलकर शाम को छिड़काव करें. 

जमाव के बाद, विस्पैरी बैक सोडियम (नोमिनीगोल्ड) या एडोरा की 100 मिली मात्रा प्रति एकड़ 150 लीटर पानी में घोलकर बोआई के 25 दिन बाद छिड़काव करने से चौड़ी पत्ती वाले और घास कुल के अधिकतर खरपतवार नियंत्रित हो जाते हैं. मोथा के नियंत्रण के लिए इथोक्सी सल्फ्यूरान (सनराइस) 50-60 ग्राम सक्रिय तत्व को पानी में घोलकर बोआई के 25 दिन बाद छिड़काव कर सकते हैं.









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