राजनांदगांव/धमतरी : छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले के ग्राम भंवरमरा के निवासी दुर्गेंद्र कठोलिया की पुलिस हिरासत में हुई मौत को दो महीने बीत चुके हैं, लेकिन आज तक उनके परिजनों को न न्याय मिला, न जवाब, और न ही उनके बेटे का मृत्यु प्रमाण पत्र। परिजन अब पूछ रहे हैं — क्या गरीब और आदिवासी परिवारों के लिए इंसाफ़ सिर्फ़ किताबों तक सीमित रह गया है?
घटना की शुरुआत: डी-मार्ट से उठाया गया, परिजनों को वहीं छोड़ दिया गया
दिनांक 29 मार्च 2025, समय लगभग शाम 5 बजे। दुर्गेंद्र कठोलिया अपनी पत्नी और दो बच्चों के साथ दुर्ग के पद्मनापुर के डी-मार्ट स्टोर में सामान खरीदने गए थे। तभी अर्जुनी थाना पुलिस की टीम, जिसमें कथित रूप से पुलिस अधिकारी सनी दुबे और अन्य शामिल थे, दुर्गेंद्र को एक पुराने मामले में पूछताछ के नाम पर वहीं से उठा ले गए। दुर्गेंद्र को उसी की कार में जबरन बैठाकर ले जाया गया, जबकि उसकी पत्नी और बच्चे को वहीं छोड़ दिया गया।
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परिजनों ने बताया कि न तो पुलिस ने कोई गिरफ्तारी वारंट दिखाया, न ही महिला और बच्चों की स्थिति पर ध्यान दिया। “किसी ने नहीं सोचा कि हम घर कैसे लौटेंगे। यह क्या तरीका है कानून का?” दुर्गेंद्र की पत्नी ने आंखों में आंसू लिए कहा।
थाने में दो दिन का अंधेरा, फिर सुबह 5:00 सुरगी पुलिस के साथ आई धमतरी की पुलिस
इसके बाद परिवार को किसी भी प्रकार की कोई जानकारी नहीं दी गई। 31 मार्च को भी कोई सूचना नहीं मिली। लेकिन 1 अप्रैल 2025 की सुबह, दुर्गेंद्र के घर सुरगी पुलिस के साथ धमतरी पुलिस के और उन्होंने कहा कि उसकी तबीयत खराब हो गई है और उसे अस्पताल ले जाया गया है। कुछ देर बाद उन्होंने बताया कि “दुर्गेंद्र की मौत हो गई है, हार्ट अटैक से।”
परिवार वालों के लिए यह बात अविश्वसनीय थी। “उसे कोई बीमारी नहीं थी। वो तो एकदम ठीक-ठाक था। फिर अचानक हार्ट अटैक कैसे?” परिजन तत्काल धमतरी जिला अस्पताल पहुंचे, जहां उन्होंने दुर्गेंद्र के शरीर पर कई गहरे चोटों और जख्मों के निशान देखे। पीठ, जांघ, हाथ और सिर पर चोट के गहरे निशान थे।
मौत के बाद भी नहीं मिला मृत्यु प्रमाण पत्र, प्रशासन कर रहा टालमटोल
सबसे शर्मनाक पहलू यह है कि दुर्गेंद्र की मौत को दो महीने बीत चुके हैं, लेकिन परिवार को आज तक उसका मृत्यु प्रमाण पत्र नहीं मिला। जब वे जिला अस्पताल गए, तो वहां से कहा गया कि मौत थाने में हुई थी, इसलिए प्रमाण पत्र पुलिस देगी। वहीं, थाने जाने पर जवाब मिला — मौत अस्पताल में दर्ज हुई है, इसलिए अस्पताल से संपर्क करें।
परिजन अब दोनों जगहों के बीच फंसे हुए हैं, और पूरी तरह से असहाय महसूस कर रहे हैं। “अगर किसी की मौत हो जाती है, तो कम से कम उसका मृत्यु प्रमाण पत्र तो मिलना चाहिए। क्या हम इंसान नहीं हैं?” दुर्गेंद्र की मां ने कहा।
न्यायिक जांच का क्या हुआ? प्रशासनिक चुप्पी बनी पहेली
परिवार को शुरू में बताया गया था कि इस मामले में न्यायिक जांच करवाई जाएगी। उन्होंने धमतरी जाकर पुलिस अधीक्षक कार्यालय में भी कई बार गुहार लगाई। 9 जून 2025 को, एक बार फिर परिजन पुलिस अधीक्षक कार्यालय पहुंचे। और पुलिस अधीक्षक से मुलाकात की वहां पुलिस अधीक्षक द्वारा बताया गया कि — “जांच चल रही है।”
जबकि परिजनों को यह जानकारी मिली है कि न्यायिक जांच पहले ही पूरी हो चुकी है। सवाल यह है कि अगर न्यायिक जांच पूरी हो चुकी है, तो अब कौन सी जांच बाकी है? और यदि जांच हुई, तो अब तक दोषियों पर कोई कार्रवाई क्यों नहीं हुई?
विधायक ओंकार साहू का आश्वासन: विधानसभा में उठाएँगे मुद्दा
मामले में थक-हारकर परिजन अब धमतरी के विधायक श्री ओंकार साहू से भी मिले। विधायक साहू ने कहा:
> “यह एक गंभीर मामला है। एक नागरिक की पुलिस हिरासत में मौत होना एक बड़ा प्रशासनिक और मानवीय अपराध है। मैं इस मामले को आगामी मानसून सत्र में विधानसभा में रखूंगा, ताकि दोषियों के विरुद्ध कार्रवाई हो और पीड़ित परिवार को न्याय मिले।”
परिवार की चेतावनी: अगर इंसाफ़ नहीं मिला तो आत्मदाह करेंगे
लगातार अनदेखी, अपमान और प्रशासनिक उदासीनता से पीड़ित परिवार अब चरम सीमा पर पहुँच चुका है। उन्होंने साफ कहा है कि यदि जल्द ही:
दोषी पुलिसकर्मियों पर प्राथमिकी दर्ज नहीं की जाती,
उन्हें मृत्यु प्रमाण पत्र, पोस्टमार्टम रिपोर्ट और न्यायिक जांच रिपोर्ट नहीं दी जाती,
और सुनवाई की कोई निश्चित समयसीमा तय नहीं होती,
तो वे सामूहिक आत्मदाह के लिए बाध्य होंगे।
कानून और संविधान के लिए चुनौती
यह मामला सिर्फ दुर्गेंद्र कठोलिया की मौत का नहीं है — यह भारतीय संविधान, कानून की शासन व्यवस्था और मानवाधिकारों के लिए एक चेतावनी है।
क्या पुलिस हिरासत में किसी की मौत के बाद कोई जवाबदेही नहीं होती?
क्या न्यायिक जांच सिर्फ दिखावे के लिए होती हैं?
क्या मृत्यु प्रमाण पत्र भी गरीबों के लिए एक लग्ज़री बन गई है?
समाज और सरकार से अपील
यह खबर समाज को झकझोरने के लिए काफी होनी चाहिए। दुर्गेंद्र कठोलिया का परिवार कोई विशेष सुविधा या पैसा नहीं मांग रहा, वे बस सच जानना चाहते हैं, और चाहते हैं कि दोषियों को उनके अपराध की सज़ा मिले।
यदि हम आज चुप रहे, तो कल यह अन्य किसी दुर्गेंद्र के साथ हो सकता है।
संपर्क और सहयोग की अपील
यदि कोई सामाजिक संस्था, वकील, या मानवाधिकार संगठन इस परिवार की मदद करना चाहता है, तो कृपया आगे आएं।
न्याय तभी संभव है जब समाज साथ खड़ा हो।
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