किसान जब बीज बोता है, तो सिर्फ अनाज नहीं, अपने सपनों की फसल भी उगाता है। लेकिन जब वही फसल रासायनिक खादों की कीमत और मिट्टी की बिगड़ती सेहत के बीच दम तोड़ने लगे, तब ज़रूरत होती है एक ऐसे समाधान की, जो कम लागत में खेती को फिर से ज़मीन से जोड़ दे। और यही समाधान बनकर आया है ‘पीएसबी’ – फॉस्फोरस सॉल्यूबिलाइजिंग बैक्टीरिया। उत्तर प्रदेश गन्ना शोध परिषद की इस जैविक खोज ने शाहजहांपुर के किसानों को राहत की सांस दी है। अब खेतों में रासायनिक खाद की जगह बैक्टीरिया की एक छोटी-सी सेना काम करेगी, जो चुपचाप, बिना शोर किए मिट्टी के भीतर छुपे पोषक तत्वों को जगा देगी।
क्या है पीएसबी और क्यों है यह जरूरी?
कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार, वर्तमान में किसान जो डीएपी या अन्य फॉस्फेटिक उर्वरक डालते हैं, उसका केवल 25 से 30 प्रतिशत ही पौधों द्वारा अवशोषित किया जा पाता है। शेष हिस्सा मिट्टी में पड़ा रहकर बेकार हो जाता है। यह न केवल फसल की पोषण आपूर्ति को सीमित करता है, बल्कि उत्पादन लागत भी बढ़ाता है। पीएसबी, मिट्टी में पहले से मौजूद इस बेकार पड़े फास्फेट को घुलनशील और पौधों के लिए उपयोगी बना देता है। यह प्रक्रिया न सिर्फ डीएपी के हर कण की प्रभावशीलता को बढ़ाती है, बल्कि रासायनिक खाद की आवश्यकता को भी घटा देती है।
ये भी पढ़े : मुखिया के मुखारी – सुशासन के लिए समदर्शिता है जरुरी
धान की नर्सरी में भी दिखेगा असर
पीएसबी का लाभ सिर्फ मुख्य फसलों तक सीमित नहीं है, बल्कि धान की नर्सरी में भी इसका इस्तेमाल फायदेमंद सिद्ध हो रहा है। प्रयोगों में पाया गया है कि पीएसबी से अंकुरण की दर बढ़ती है, पौधों की शुरुआती बढ़वार तेज होती है, और नर्सरी पर खर्च भी घटता है। यह किसानों को शुरुआत से ही मजबूत फसल की नींव देने में मदद करता है।
कैसे करें इस्तेमाल?
इस जैविक उत्पाद का उपयोग बेहद आसान है।
पर्यावरणीय लाभ और दीर्घकालिक असर
पीएसबी के उपयोग से रासायनिक उर्वरकों की खपत घटती है, जिससे मिट्टी में रासायनिक अवशेषों की मात्रा में कमी आती है। इससे जल स्रोतों और पर्यावरण पर होने वाला नकारात्मक प्रभाव भी कम होता है। इसके अलावा, जैविक उत्पादों के नियमित उपयोग से खेतों की दीर्घकालिक उर्वरता बनी रहती है और भूमि की प्राकृतिक संरचना का संतुलन बना रहता है।
किसानों की प्रतिक्रिया
शाहजहांपुर के कई किसानों ने इस जैविक उत्पाद का प्रयोग किया है और सकारात्मक परिणामों की पुष्टि की है। किसान रामप्रसाद वर्मा बताते हैं –
“पहले जितना डीएपी डालते थे, उतना असर नहीं दिखता था। इस बार जब पीएसबी मिलाया, तो नर्सरी की बढ़वार भी बढ़िया रही और खर्च भी घटा। अब मुख्य खेत में भी इसे इस्तेमाल करने जा रहे हैं।”
राष्ट्रीय स्तर पर विस्तार की जरूरत
पीएसबी जैसे जैविक उत्पादों की सफलता स्थानीय स्तर पर तो साबित हो चुकी है, लेकिन विशेषज्ञ मानते हैं कि यदि इसे राष्ट्रीय कृषि नीति का हिस्सा बनाया जाए, तो यह देशभर में रासायनिक खादों पर निर्भरता कम करने और टिकाऊ खेती को बढ़ावा देने में बड़ा बदलाव ला सकता है। नीति-निर्माताओं, कृषि वैज्ञानिकों और किसान संगठनों को मिलकर ऐसे उत्पादों को ग्रामीण स्तर तक पहुंचाना होगा ताकि हर किसान आधुनिक विज्ञान का लाभ उठा सके – कम लागत में ज्यादा उत्पादन और बेहतर मुनाफा।
ये भी पढ़े : बहराइच में CM योगी के आगमन से पहले 500 किलो विस्फोटक बरामद
बहरहाल पीएसबी जैसे जैविक नवाचार देश की कृषि प्रणाली को एक नई दिशा देने में सक्षम हैं। रासायनिक खादों की लगातार बढ़ती कीमतों, मिट्टी की बिगड़ती सेहत और घटती पैदावार के बीच यह उत्पाद नई आशा की तरह उभरा है। यदि इसे योजनाबद्ध तरीके से फैलाया जाए, तो यह भारत के करोड़ों किसानों के लिए एक टिकाऊ, सस्ता और प्रभावशाली समाधान बन सकता है।



Comments