भारत में आमतौर पर लाल और नारंगी गाजर की खेती की जाती है, लेकिन अब एक नई और फायदेमंद वैरायटी काफी तेजी से किसानों के बीच लोकप्रिय हो रही है. काली गाजर न सिर्फ पोषण से भरपूर होती है, बल्कि इसकी मांग फार्मा इंडस्ट्री, हेल्थ सेक्टर और फूड प्रोसेसिंग इंडस्ट्री में तेजी से बढ़ रही है. यही वजह है कि काली गाजर की खेती अब किसानों के लिए बंपर मुनाफे का सौदा बन गई है.
क्या है काली गाजर?
काली गाजर (Black Carrot) का रंग गहरा बैंगनी या काला होता है. इसमें एंथोसायनिन (Anthocyanin) नामक खास प्रकार का एंटीऑक्सीडेंट पाया जाता है, जो इसे खास बनाता है. यही नहीं, यह औषधीय गुणों से भरपूर होती है और कई गंभीर बीमारियों से लड़ने में सहायक मानी जाती है.
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काली गाजर में पाए जाने वाले पोषक तत्व
काली गाजर में निम्नलिखित पोषक तत्व प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं:
इन पोषक तत्वों की वजह से यह गाजर सेहत के लिए बेहद लाभकारी होती है.
किन राज्यों में होती है इसकी खेती?
भारत में काली गाजर की खेती मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और बिहार के कुछ हिस्सों में की जाती है. अब इसकी खेती गंगा के मैदानी इलाकों से लेकर दक्षिण भारत के कुछ क्षेत्रों तक फैल रही है.
खेती का सही समय
काली गाजर की बुवाई अक्टूबर के अंत से लेकर नवंबर के पहले सप्ताह तक की जाती है. यह ठंडी जलवायु को पसंद करती है, इसलिए इसकी खेती सर्दियों के मौसम में सबसे उपयुक्त मानी जाती है.
मिट्टी कैसी होनी चाहिए?
काली गाजर की अच्छी उपज के लिए गहरी, उपजाऊ और ह्यूमस युक्त दोमट मिट्टी सबसे बेहतर होती है. मिट्टी में अच्छी जल निकासी होनी जरूरी है, ताकि जलभराव न हो.
बीज की मात्रा और बोने का तरीका
कटाई और उत्पादन
कहां है ज्यादा मांग?
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काली गाजर की मांग निम्नलिखित क्षेत्रों में बहुत ज्यादा है:
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