ऐसा सुनने-देखने में आता है कि तमाम किसान मांग पूरी करने के लिए जल्दबाजी में कच्चे केले को केमिकल से पका कर बेच देते हैं. अगर किसान ऐसा नहीं करते तो दुकानदार कर देते हैं. ऐसे केले को खाने से लोगों की सेहत खराब हो जाती है. लेकिन, कृषि विशेषज्ञों ने इसका हल भी ढूंढ लिया है. दरअसल, केले की एक ऐसी विधि विकसित की गई है, जो बेहद कम समय में पककर तैयार हो जाएगी. इससे उगे केले को केमिकल से पकाने की जरूरत भी नहीं पड़ेगी.
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मध्य प्रदेश के छतरपुर में इस नई वैरायटी के केले की मांग तेजी से बढ़ रही है. यह किस्म अपने छोटे आकार और तेजी से फल देने के लिए जानी जाती है. टिश्यू कल्चर के माध्यम से उगाए गए केले के पौधे 6 महीने के भीतर फल देना शुरू कर देते हैं. किसान रामचरण बताते हैं कि इस केले के पौधे को कुछ लोग ट्रक में लादकर बेचने आए थे. पिछले साल जून में उन्होंने केले के एक पौधे को 500 रुपये में खरीदा था. बेचने वालों ने इस केले की वैरायटी का नाम बौनी कैवेंडिश (Dwarf Cavendish) बताया था.
एक पौधे से निकलते हैं कई पौधे
रामचरण बताते हैं कि केले के 1 पौधे से 3 पौधे निकल आए हैं. दूसरा पेड़ 2 महीने का हो गया है. यह पेड़ 4 महीने बाद फल देने लगेगा. रामचरण बताते हैं कि इस केले की लंबाई 5 फीट तक रहती है. इतनी लंबाई में ही यह फल देना शुरू कर देता है. एक पेड़ में 100 केले निकलते हैं. एक से तीन पेड़ तैयार हो रहे हैं तो समझें कि 300 से 400 केले तोड़ने को मिल जाएंगे. अभी कुछ तोड़ लिए हैं. कुछ खराब हो गए हैं. रामचरण बताते हैं कि अगर केलों के भाव का कैलकुलेशन किया जाए तो एक पेड़ 1500 से 2000 रुपये के फल देता है.
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बगैर खाद के तैयार
किसान रामचरण बताते हैं कि केले के पौधों में किसी भी तरह की खाद की जरूरत नहीं पड़ती है. लेकिन, हर दिन पानी देना जरूरी होता है, ताकि यह सूख न पाए.
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