वैसे तो पूरी हनुमान चालीसा ही हनुमान जी के शक्तियों और उनके द्वारा दिए जाने वाले आशीर्वाद से भरपूर है। मगर, इसका एक दोहा ऐसा है, जो आपके सभी कष्टों को हर लेगा। सभी तरीके के सुख से आपको भर देगा।
हनुमान चालीसा में 40 छंद हैं। इसके अलावा दो दोहे शुरुआत में है और हनुमान चालीसा के अंत में एक दोहा है इस प्रकार इसमें कुल 43 छंद हैं। यदि हनुमान चालीसा को समझकर उसका पाठ किया जाए, तो हनुमान जी की विशेष कृपा और उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है।
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हनुमान जी को शनिदेव ने भी वरदान दिया था कि जो भी उनकी शरण में होगा, वह उसे कभी कोई कष्ट नहीं देंगे। साहस की मूर्ति, भगवान की भक्ति में प्रथम हनुमान जी ऐसी कोई चीज नहीं है, जो अपने भक्त को नहीं दे सकते हैं।
माता सीता ने दिया था ये वरदान
हनुमान चालीसा के पाठ में आप पढ़ेंगे कि उनको यह वरदान मिला है कि वह अष्ट सिद्धि यानी आठ प्रकार की सिद्धियां और नवनिधि यानी नौ प्रकार के वैभव को देने वाले हैं। यह वरदान उन्हें माता सीता ने दिया था।
इसलिए सभी को हर मंगलवार और शनिवार के दिन हनुमान चालीसा का पाठ करना चाहिए। इस पाठ को करने से भय से मुक्ति मिलती है। नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है। रोग और शत्रु आस-पास भी नहीं भटक पाते हैं।
मगर, यदि आप पूरी हनुमान चालीसा का पाठ नहीं कर सकते हैं, तो आप सिर्फ पहला दोहा ही पढ़ लें। वह दोहा सब तरीके की समस्याओं से आपको उबार सकता है। वह होदा है…
श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि। बरनऊँ रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि।।
बुद्धिहीन तनु जानिकै, सुमिरां पवनकुमार। बल बुधि बिद्या देहु मोहिं हरहु कलेस बिकार।।
इस दोहे का अर्थ जानिए
मैं अपने गुरु के चरणों की धूल से अपने हृदय रूपी दर्पण को स्वच्छ करके भगवान राम के निर्मल यश का वर्णन कर रहा हूं, जो चार कामनाओं को पूरा करने वाले हैं। मैं स्वयं को बुद्धिहीन जानकर पवन कुमार हनुमान जी को याद करता हूं कि वह मुझे बल, बुद्धि, विद्या दें और मेरे शरीर के सारे कष्टों और विकारों को दूर करें।
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अब आप समझिए कि इस दोहे में अपने बजरंगबली से क्या-क्या मांग लिया। आपने उनसे बल मांग लिया यानी साहस में आपका कोई मुकाबला नहीं कर सकता। बुद्धि और विद्या मांग ली, जिसे आप हर तरीके की परेशानियों से उबार सकते हैं।
अपने सारे शरीर के कष्टों और परेशानियों को दूर करने का आशीर्वाद भी उनसे मांग लिया। यदि यह सारी चीज आपके पास में है, तो आपको कोई कष्ट नहीं होगा।
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