ईरान ने भारत को क्यों कहा शुक्रिया? इजरायल ने खुद को बताया ग्लोबल पावर

ईरान ने भारत को क्यों कहा शुक्रिया? इजरायल ने खुद को बताया ग्लोबल पावर

जब मिसाइलें आसमान फाड़ रही थीं, बंकर बस्टर बम ज़मीन हिला रहे थे, और मध्य-पूर्व की धरती आग उगल रही थी - तब एक राष्ट्र न केवल लड़ रहा था, बल्कि गवाही दे रहा था… इंसानियत की, अपनी मातृभूमि की, और उस समर्थन की जो सरहदें पार कर आया।

वह समर्थन किसी छोटे देश से नहीं, बल्कि 140 करोड़ आत्माओं वाले भारतवर्ष से आया। और अब, जब धुएं की परतें छंट चुकी हैं और बंदूकें कुछ पल को खामोश हैं-तो उसी ईरान ने पूरे संसार के सामने सिर झुकाकर एक देश का नाम लिया है… भारत।

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भारत के लिए खुले दिल से शुक्रिया

नई दिल्ली स्थित ईरान के दूतावास ने जैसे ही सोशल मीडिया पर अपना आधिकारिक संदेश पोस्ट किया, पूरी दुनिया सन्न रह गई। क्योंकि यह कोई औपचारिक बयान नहीं था-यह एक जज़्बाती स्वीकारोक्ति थी, एक युद्धरत राष्ट्र की उस भावना की, जिसे लगा कि भारत ने उसे मुश्किल वक्त में अकेला नहीं छोड़ा। ईरान ने लिखा-"भारत के सभी महान और स्वतंत्रता प्रेमी लोगों को हमारी तरफ से हार्दिक आभार।" सिर्फ जनता नहीं, बल्कि इस्लामी गणराज्य ने भारतीय राजनीतिक दलों, संसद के सदस्यों, धार्मिक नेताओं, मीडिया और सामाजिक कार्यकर्ताओं तक को धन्यवाद दिया। उसने भारत को "शांति, स्थिरता और वैश्विक न्याय का समर्थक" बताया, और इसे ईरान की जीत का प्रतीकात्मक भागीदार कहा। लेकिन यहीं से शुरू होती है एक नई बहस-क्या भारत अब वैश्विक शक्ति समीकरणों में एक निर्णायक चेहरा बन चुका है?

क्या यह सिर्फ धन्यवाद था… या एक नई धुरी की शुरुआत?

ईरान का यह संदेश सिर्फ एक कूटनीतिक औपचारिकता नहीं था। इसमें इतिहास की गहराई भी थी और भविष्य का इशारा भी। ईरान ने खासतौर पर लिखा कि यह समर्थन "हमारे दोनों देशों के बीच लंबे समय से चले आ रहे सांस्कृतिक, सभ्यतागत और मानवीय संबंधों का प्रमाण है।" यानी बात केवल युद्ध की नहीं है-यह उस साझी विरासत की भी है जो *कुरुक्षेत्र से लेकर कर्बला* तक फैली हुई है। और शायद यही कारण है कि आज जब पश्चिमी मीडिया भारत को 'मौन दर्शक' कह रहा था, तो ईरान ने उसे 'प्रतिरोध का सच्चा साथी' कहा।

फांसी, खून और इन्कलाब की हकीकत

पर इसी कृतज्ञता के साथ आई एक और खबर… जिसने इस युद्ध के 'विजयी' नैरेटिव को खून में रंग दिया। ईरान ने उसी दिन इजराइल के लिए जासूसी के आरोप में तीन और कैदियों को फांसी दे दी। अब तक कुल छह लोग इस आरोप में फांसी पर चढ़ाए जा चुके हैं। इनमें से एक इराकी नागरिक रसूल अहमद रसूल भी शामिल था। ईरानी मीडिया का दावा है कि ये लोग हथियारों की तस्करी में लगे थे, जबकि मानवाधिकार संगठनों का आरोप है कि युद्ध के शोर में राजनीतिक विरोध को कुचलने के लिए फांसी को हथियार बनाया जा रहा है। क्या इस "विजय" के पीछे लाशों का पहाड़ खड़ा किया गया है? और क्या ईरान की "शुक्रिया इंडिया" रणनीति इस मानवाधिकार हनन से ध्यान भटकाने का प्रयास है?

इज़राइल खामोश, अमेरिका सतर्क… और भारत?

इज़राइल ने इस 'धन्यवाद' पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। अमेरिका भी खामोश है, लेकिन उसकी नज़रें ज़रूर इस नई समीकरण पर टिकी होंगी। क्योंकि भारत, जो कभी मध्य-पूर्व के मुद्दों से दूरी बनाए रखता था, अब ईरान जैसे कट्टरपंथी राष्ट्र से खुले समर्थन के लिए सम्मान पा रहा है। क्या यह भारत की नई वैश्विक नीति है? या एक राजनयिक संतुलन का हिस्सा, जहां एक तरफ अमेरिका और इज़राइल से दोस्ती, और दूसरी ओर ईरान से आत्मीयता?

भारत के लिए चेतावनी या सौभाग्य?

जहां एक ओर यह "शुक्रिया" भारत के लिए सम्मान का प्रतीक है, वहीं दूसरी ओर यह एक चुनौती भी है। क्योंकि अब भारत को यह तय करना है-क्या वह मध्य-पूर्व की नई धुरी में भागीदार बनेगा? या तटस्थता के अपने पुराने ढांचे में लौटेगा? लेकिन जो बात अब निर्विवाद है, वह यह है कि जब पूरी इस्लामी दुनिया बिखरी हुई थी, तब ईरान को अगर किसी से उम्मीद थी-तो वह था भारत।

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भारत का उदय… केवल भू-राजनीति में नहीं, भरोसे में भी

ईरान का यह 'शुक्रिया' एक सादा डिप्लोमैटिक स्टेटमेंट नहीं था, यह *एक राष्ट्र की पुकार* थी-जो युद्ध की राख से उठकर कह रहा था कि भारत, तुमने साथ निभाया… अब हम नहीं भूलेंगे। और शायद आने वाले समय में यही समर्थन, भारत को केवल *महाशक्ति नहीं, बल्कि *विश्व में नैतिक नेतृत्व की भूमिका में खड़ा कर देगा। लेकिन इस सबके बीच एक सवाल तैरता रहेगा-क्या भारत इस 'शुक्रिया' की कीमत अदा करने को तैयार है? या फिर यह दोस्ती… एक नए मोर्चे की शुरुआत है? भारत पर दुनिया की नजरें - और अब शुक्रिया कहता है युद्धरत ईरान! यह सिर्फ संदेश नहीं, भूचाल है… जो अंतरराष्ट्रीय राजनीति की नींव हिला सकता है!






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