जीएसटी यानी गुड्स एंड सर्विस टैक्स को देशभर में एक टैक्स सिस्टम के तौर पर लाया गया था ताकि अलग-अलग टैक्स को एकसाथ जोड़ा जा सके। लेकिन अब 8 साल बाद सरकार एक और बड़ा बदलाव करने जा रही है, जिससे आम लोगों को सीधा फायदा हो सकता है।
सरकार अब गुड्स एंड सर्विस टैक्स (GST) सिस्टम में बड़ा बदलाव करने जा रही है। 12% टैक्स स्लैब हटाकर उसमें आने वाले कई सामानों को 5% टैक्स में लाने की तैयारी है। इससे जूते-चप्पल, मिठाई, कुछ कपड़े और डेयरी प्रोडक्ट्स जैसे कई सामान सस्ते हो सकते हैं।साथ ही, जो महंगी चीजें जैसे कारें, तंबाकू, पान मसाला, कोल्ड ड्रिंक्स आदि पर अभी एक्स्ट्रा टैक्स (सेस) लगता है, उसे भी अब सीधे जीएसटी के रेट में ही शामिल करने की तैयारी है।
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किन चीजों पर लगता है ये सेस?
जीएसटी काउंसिल से जुड़े दो लोगों के हवाले से मिंट ने बताया कि सरकार ने पहले ‘सेस’ इसलिए लगाया था ताकि जीएसटी लागू होने के बाद राज्यों को होने वाले नुकसान की भरपाई हो सके। बाद में कोरोना के वक्त राज्यों को जो लोन मिला था, उसकी वसूली के लिए इस सेस को मार्च 2026 तक बढ़ा दिया गया।
कारें, सिगरेट और कोल्ड ड्रिंक्स जैसी चीजों पर अभी जीएसटी के अलावा 22% तक सेस लगता है। लेकिन अब सरकार चाहती है कि यही टैक्स सीधे जीएसटी रेट में जोड़ दिया जाए। इसका फायदा ये होगा कि टैक्स सिस्टम पारदर्शी बनेगा और राज्यों को ज्यादा हिस्सा मिलेगा।
सेस हटने पर कितना असर पड़ेगा?
इस साल ये सेस करीब 1.67 लाख करोड़ रुपये का कलेक्शन देगा, लेकिन मार्च 2026 के बाद ये कलेक्शन खत्म हो जाएगा। सरकार के मुताबिक, सेस को जीएसटी में मिलाने से ग्राहकों को कीमत में कोई फर्क नहीं दिखेगा। जैसे अभी एक SUV पर 28% जीएसटी + 22% सेस लगता है, आगे चलकर यही टैक्स सीधे 50% जीएसटी के रूप में दिखेगा।
12% टैक्स स्लैब हटाने की भी तैयारी
केंद्र सरकार की योजना है कि 12% वाला टैक्स स्लैब पूरी तरह से हटा दिया जाए और इसमें आने वाले ज्यादातर सामानों को 5% स्लैब में डाल दिया जाए। इससे जीएसटी की संरचना और भी सरल हो जाएगी और ग्राहकों को भी इसका फायदा मिलेगा। लेकिन इसके लिए राज्यों की सहमति जरूरी है क्योंकि इससे कुछ राज्यों की टैक्स इनकम घट सकती है।
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12% टैक्स स्लैब हटेगा तो क्या सस्ते होंगे ये सामान?
सरकार की दूसरी बड़ी तैयारी है- 12% टैक्स स्लैब को खत्म करना और ज्यादातर चीजों को 5% टैक्स में लाना।
12% वाले प्रमुख सामान:
जीएसटी के तहत टैक्स कैसे बंटता है?
जीएसटी के तहत टैक्स दो हिस्सों में बंटता है – CGST (सेंट्रल जीएसटी) और SGST (स्टेट जीएसटी)। SGST पूरी तरह राज्यों को मिलता है, जबकि CGST का हिस्सा भी केंद्र राज्यों के साथ शेयर करता है। अगर सेस जीएसटी में आ गया तो उसका भी हिस्सा राज्यों को मिलेगा।
अभी केंद्र सरकार अपनी टैक्स इनकम का 41% राज्यों के साथ शेयर करती है। अक्टूबर 2025 में 16वां फाइनेंस कमीशन (अरविंद पनगरिया के नेतृत्व में) अगले पांच सालों का टैक्स शेयरिंग फॉर्मूला तय करेगा जो FY27 से लागू होगा। अगर तब तक GST काउंसिल सेस पर कोई फैसला नहीं ले पाई, तो फाइनेंस कमीशन को और वक्त भी दिया जा सकता है।
जरूरी दवाओं पर क्या असर?
अभी जरूरी और जान बचाने वाली दवाएं या तो जीएसटी से बाहर हैं या 5% टैक्स में हैं। बाकी दवाएं 12% में आती हैं। एक्सपर्ट्स का मानना है कि इन्हें भी 5% स्लैब में लाना चाहिए ताकि इलाज सस्ता हो।
क्यों जरूरी है ये बदलाव?
Nexdigm के टैक्स सलाहकार प्रभात रंजन कहते हैं कि जीएसटी स्लैब की संख्या घटाकर तीन करना (5%, 18%, 28%) टैक्स सिस्टम को साफ और आसान बनाएगा। इससे टैक्सपेयर्स को उलझन नहीं होगी और कस्टमर को भी कीमत का साफ हिसाब दिखेगा।
AMRG & Associates के रजत मोहन के मुताबिक, पहले भी जब टैक्स घटाए गए थे, तब पान मसाला, सिगरेट और तंबाकू जैसे सामानों पर टैक्स बढ़ाकर घाटा पूरा किया गया था। शायद अब भी वही तरीका अपनाना पड़े।
कुछ वित्तीय रूप से कमजोर राज्य इस बदलाव को लेकर चिंतित हैं क्योंकि टैक्स दर घटेगी तो उनकी कमाई कम हो सकती है।
क्या कहती है जीएसटी काउंसिल?
जीएसटी काउंसिल की बैठक जुलाई के तीसरे हफ्ते या मानसून सत्र के बाद हो सकती है। इसमें सेस को शामिल करना, टैक्स स्लैब को घटाकर तीन करना- 5%, 18%, और 28% ,जैसे मुद्दों पर चर्चा होगी। राजत मोहन ने कहा कि इस बैठक में सिर्फ रेट ही नहीं, बल्कि कई और अहम मुद्दों पर चर्चा होगी जैसे GST Appellate Tribunal शुरू करना, नया इनवॉइस सिस्टम लागू करना, और ऑनलाइन गेमिंग, बीमा और रियल एस्टेट जैसे जटिल सेक्टरों में नियमों को साफ करना।
जीएसटी काउंसिल का सबसे बड़ा टारगेट होगा टैक्स को आसान बनाना, रेवेन्यू में संतुलन बनाए रखना, और सभी राज्यों की आर्थिक जरूरतों को समझते हुए फैसला लेना।
क्या मिलेगा आम जनता को फायदा?
इस बदलाव से रोजमर्रा की चीजें सस्ती हो सकती हैं, टैक्स भरना और क्लासिफिकेशन आसान होगा। सरकार और राज्यों को टैक्स का हिस्सा ज्यादा मिलेगा, कारोबारियों को कम जटिलता होगी। इसके अलावा लोगों को कीमतों में पारदर्शिता नजर आएगी।
अगर सब राज्यों की सहमति मिल गई, तो आने वाले महीनों में देशभर में कई सामान सस्ते हो सकते हैं।
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