भगवान जगन्नाथ की अधूरी प्रतिमा का रहस्य क्या है?  जानें

भगवान जगन्नाथ की अधूरी प्रतिमा का रहस्य क्या है? जानें

नई दिल्ली : ओडिशा के पुरी में स्थित भगवान जगन्नाथ का मंदिर हिंदू धर्म के चार धामों में से एक है। हर साल आयोजित होने वाली यह रथ यात्रा दुनिया भर में आकर्षण का केंद्र होती है। यह पावन यात्रा आषाढ़ महीने के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को शुरू होती है, जिसमें भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा अपने-अपने रथों पर सवार होकर अपने मौसी के घर यानी गुंडिचा मंदिर जाते हैं।

वहीं, इस मंदिर और यहां की मूर्तियों से जुड़े कई रहस्य हैं, जिनमें से एक सबसे बड़ा रहस्य यह है कि भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की प्रतिमाएं अधूरी क्यों हैं? उनके हाथ-पैर के पंजे क्यों नहीं हैं? आइए इस अनूठी प्रतिमा के पीछे के रहस्य को जानते हैं।

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अधूरी प्रतिमा का रहस्य क्या है? 
भगवान जगन्नाथ की अधूरी मूर्तियों के पीछे कई सारी पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं, जिनमें से एक का जिक्र हम अपने इस आर्टिकल में करेंगे। ऐसा माना जाता है कि जब भगवान कृष्ण ने अपने शरीर का त्याग किया, तो पांडवों ने उनका दाह संस्कार किया। लेकिन उनके शरीर जलने के बाद भी हृदय नहीं जला, जिस कारण पांडवों ने उनके हृदय को पवित्र नदी में प्रवाहित कर दिया। ऐसा माना जाता है कि जल में प्रवाह‍ित हृदय ने एक लठ्ठे का रूप ले ल‍िया था, जिसकी जानकारी कान्हा जी ने सपने में राजा इंद्रदयुम्न को दी, इसके बाद राजा ने उस लट्ठे से भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा जी की मूर्ति को बनाने का संकल्प लिया।

तब विश्वकर्मा जी वहां एक वृद्ध बढ़ई का वेश धारण कर राजा के पास आए और उनके सामने प्रतिमाओं को बनाने का प्रस्ताव रखा, लेकिन उनकी शर्त यह थी कि 'वे 21 दिन में मूर्तियां बनाएंगे, इस दौरान उन्हें किसी भी कमरे में अकेले काम करने दिया जाए और कोई भी वहां आए-जाए न।' इसके साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि 'अगर शर्त तोड़ी गई, तो वे उसी समय काम छोड़ देंगे।'

राजा ने उनकी शर्त मान ली और विश्वकर्मा जी ने एक बंद कमरे में मूर्तियों को बनाना शुरू किया। कमरे से लगातार औजारों के चलने की आवाजें आती रहीं। 14 दिन बीतने के बाद, रानी गुंडिचा के मन में विचार आया कि 'कहीं बूढ़े बढ़ई को कुछ हो न गया हो? उन्होंने राजा से दरवाजा खोलने का आग्रह किया। राजा ने रानी के कहने पर 21 दिन पूरे होने से पहले ही दरवाजा खोल दिया।'

इस वजह से अधूरी रह गईं प्रतिमाएं
जैसे ही दरवाजा खुला, भगवान विश्वकर्मा गायब हो गए और अंदर भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की प्रतिमाएं अधूरी रह गईं। भगवान जगन्नाथ और बलभद्र के छोटे-छोटे हाथ थे, लेकिन पैर नहीं थे, जबकि सुभद्रा की प्रतिमा में हाथ-पैर बने ही नहीं थे। राजा को अपनी गलती का एहसास हुआ, लेकिन उन्होंने इसे भगवान की इच्छा मानकर, इन्हीं अधूरी मूर्तियों को मंदिर में स्थापित कर दिया। तब से लेकर आज तक तीनों भाई-बहन इसी स्वरूप में जगन्नाथ पूरी मंदिर में विराजमान हैं।

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