राजनांदगांव : जिसे कभी संस्कारधानी के नाम से पहचाना जाता था, आज नशे की गिरफ्त में जकड़ता जा रहा है। शहर से लेकर ग्रामीण अंचलों तक, हर गली और नुक्कड़ पर शराब का कारोबार खुलेआम फल-फूल रहा है। सबसे चिंताजनक बात यह है कि यह सब कुछ आबकारी विभाग और स्थानीय प्रशासन की नाक के नीचे हो रहा है—लेकिन कार्रवाई के नाम पर शून्य।
छोटे-छोटे पान ठेले और यहाँ तक कि राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित ढाबों तक में बिना किसी डर के शराब परोसी जा रही है। स्थानीय लोगों का कहना है कि शराबियों का व्यवहार अब आम जनजीवन को प्रभावित करने लगा है, पर जिम्मेदार अधिकारी चुप्पी साधे हुए हैं।
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शहर में खुलेआम बिक रही शराब, कोई डर नहीं
राजनांदगांव शहर के बस स्टैंड, बसंतपुर, स्टेशन पारा, अटल आवास और रेलवे स्टेशन के पास खुलेआम शराब की बिक्री हो रही है। दुकानदारों ने पीछे स्टॉक छुपा कर रखा होता है और जान-पहचान वालों या 'डील' तय कर चुके ग्राहकों को वह शराब बेच देते हैं।
शहर के ही एक निवासी, जो नहीं चाहते कि उनका नाम उजागर हो, बताते हैं, "यहाँ हर गली में दो-तीन अड्डे चल रहे हैं। हम बच्चों को अकेले बाहर भेजने से डरते हैं। शाम होते ही पूरा माहौल शराबियों से भर जाता है। लेकिन पुलिस और आबकारी विभाग आंख मूंदे बैठे हैं।"
ग्रामीण इलाकों में हालात और भयावह
शहर से बाहर निकलते ही स्थिति और भी गंभीर हो जाती है। सोमनी, डिलापहरी, सुकुलदैहान, धनगांव, डोंगरगांव, डोंगरगढ़ और तमाम अन्य गांवों में शराब का अवैध कारोबार एक समानांतर अर्थव्यवस्था की तरह काम कर रहा है। यहाँ पर देशी शराब से लेकर अंग्रेजी शराब तक सब कुछ उपलब्ध है।
एक ग्रामीण ने बताया, "सरपंच से लेकर पटवारी और थाना प्रभारी तक सब जानते हैं कि कहाँ क्या बिक रहा है। लेकिन सब चुप हैं। कई बार हमने विरोध किया, तो हमें ही धमकी दी गई।"
नेशनल हाईवे पर बन गए ‘मिनी बार’
राजनांदगांव से गुजरने वाले नेशनल हाईवे के किनारे बने ढाबों का हाल तो और भी डरावना है। दिन के उजाले में यहाँ ट्रक ड्राइवरों और राहगीरों को खुलेआम शराब परोसी जाती है। होटल और ढाबे वालों ने अपने पीछे अलग कमरे बना रखे हैं, जहाँ बैठकर लोग शराब पीते हैं।
इन ढाबों में न सिर्फ शराब, बल्कि अन्य नशीले पदार्थों की भी बिक्री की खबरें हैं। लेकिन हैरानी की बात यह है कि इन पर न तो पुलिस की छापेमारी होती है और न ही आबकारी विभाग की कोई कार्रवाई।
कौन दे रहा है संरक्षण?
यह सवाल हर आम नागरिक के मन में है—जब सबको पता है कि शराब कहाँ बिक रही है, तो फिर कार्रवाई क्यों नहीं होती? कहीं न कहीं यह साफ संकेत है कि इस अवैध कारोबार को संरक्षण प्राप्त है। चाहे वह राजनीतिक हो या प्रशासनिक, इस चुप्पी के पीछे निश्चित रूप से कोई बड़ी सांठगांठ है।
शहर एवं ग्रामीण के नागरिकों ने बताया कि हमने इसकी शिकायत कई बार की, लेकिन हर बार आश्वासन ही मिला। आबकारी विभाग की भूमिका पर तो सवाल उठना लाजमी है। अगर वो चाहें, तो 24 घंटे में पूरा कारोबार खत्म हो सकता है। लेकिन नीयत में ही खोट है।"
जनता हो रही है बेहाल, युवाओं का भविष्य खतरे में
इस अवैध शराब के जाल में सबसे ज्यादा नुकसान युवा पीढ़ी को हो रहा है। कॉलेज और स्कूल के छात्र आसानी से शराब तक पहुंच बना रहे हैं। गाँवों में तो यह भी देखा गया है कि 13-14 साल के किशोर भी शराब का सेवन करने लगे हैं।
अस्पतालों में शराब के कारण बीमार हो रहे युवाओं की संख्या बढ़ रही है। कम उम्र में नशे की आदत लगना युवाओं को अपराध की ओर ले जा रहा है। इसका असर सिर्फ शारीरिक नहीं, सामाजिक और मानसिक रूप से भी बेहद खतरनाक है।
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क्या करेगा प्रशासन?
जिला प्रशासन और आबकारी विभाग अब तक किसी ठोस कार्रवाई को अंजाम नहीं दे पाए हैं। हर बार कोई घटना होती है, तब जांच बैठाई जाती है, और कुछ दिनों बाद मामला ठंडे बस्ते में चला जाता है।
अब जनता पूछ रही है—"कब तक प्रशासन यूं ही चुप बैठा रहेगा? क्या राजनांदगांव की पहचान अब नशाखोरी और अराजकता बन जाएगी?"
संस्कारधानी अब नशाखोरी का शहर बनता जा रहा है। अगर समय रहते प्रशासन ने सख्त कदम नहीं उठाए, तो आने वाले वर्षों में यह समस्या और विकराल रूप धारण कर सकती है।
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