जानिए सिर्फ एक लोटा जल से क्यों प्रसन्न हो जाते हैं भोलेनाथ

जानिए सिर्फ एक लोटा जल से क्यों प्रसन्न हो जाते हैं भोलेनाथ

नई दिल्ली :  सावन का महीना भगवान शिव को प्रसन्न करने का ऐसा समय होता है, जब वह स्वयं धरती पर आकर सृष्टि का संचालन करते हैं। देवाधिदेव महादेव इतने सरल और इतने सहज हैं कि सिर्फ एक लोटा जल चढ़ाने से भी प्रसन्न हो जाते हैं। 

यह एक प्रतीकात्मक क्रिया है, जो दिखाती है कि भगवान शिव को दिखावे या आडंबर से ज्यादा सच्चे भाव और समर्पण को स्वीकार करते हैं। शिव महापुराण में भी यह बताया गया है कि भोलेनाथ को यदि नियम और श्रद्धा के साथ शिवलिंग पर जल चढ़ाते हैं, तो वह भक्त से प्रसन्न होते हैं। 

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सिर्फ जल से ही क्यों होते हैं प्रसन्न महादेव 

इसके पीछे पौराणिक कारण समुद्र मंथन की घटना है। इस दौरान सबसे पहले हलाहल विष निकला था। इसके असर से सारी सृष्टि के नष्ट होने के संकट पैदा हो गया था। तब सबका कल्याण करने के लिए भगवान शिव ने उसे पी लिया, लेकिन अपने गले में ही उसे रोक लिया था। 

इस वजह से भोलेनाथ का कंठ नीला हो गया और वे नीलकंठ कहलाए। इस विष के प्रभाव से उन्हें अत्यंत गर्मी और जलन महसूस हो रही थी। वह इसे शांत करने के लिए हिमालय की तरफ बढ़ने लगे और एक जगह बैठकर ध्यान मग्न हो गए। तब देवताओं ने जल से उनका अभिषेक किया। 

कहते हैं कि वह समय सावन का था। तभी से भगवान शिव के का सावन के महीने में अभिषेक करने का चलन शुरू हो गया। इसीलिए सावन में कांवड़ यात्रा भी निकाली जाती है। भक्त जब एक लोटा जल चढ़ाते हैं, तो भोलेनाथ के इसलिए प्रसन्न होते हैं क्योंकि इससे उन्हें शीतलता मिलती है। 

कैसे चढ़ाना चाहिए जल 

शिवलिंग पर जल चढ़ाने के लिए पूर्व या उत्तर-पूर्व दिशा की ओर मुख करके खड़े हों। इसके बाद "ॐ नमः शिवाय" का जाप करते हुए सबसे पहले शिवलिंग दाएं हिस्से पर जल चढ़ाएं। यह गणेश जी का स्थान माना जाता है। इसके बाद शिवलिंग के बाई तरफ जल चढ़ाएं, जो भगवान कार्तिकेय का स्थान है। 

इसके बाद शिवलिंग के बीच में जलाधारी के पास जल चढ़ाएं, जो उनकी बेटी अशोक सुंदरी का स्थान है। इसके बाद शिवलिंग के गोलाकार हिस्से पर जल चढ़ाएं, जो माता पार्वती का स्थान है। इसके बाद शिवलिंग पर जल चढ़ाएं। 

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