शिव भक्तों के लिए सावन शिवरात्रि बेहद खास होती है। यह हर साल सावन कृष्ण पक्ष चतुर्दशी को मनाई जाती है, जो कि आज यानी 23 जुलाई को है। महाशिवरात्रि के बाद यह शिवजी की पूजा का दूसरा सबसे अहम पर्व माना जाता है। वैसे तो पूजा सावन भगवान शिव का समर्पित होता है लेकिन इस माह में हर दिन शिव जी की अर्चना करने का विधान है। इसके साथ ही देखा गया है कि लोग सावन शिवरात्रि और महाशिवरात्रि को लेकर कंफ्यूज रहते हैं, ऐसे में आइए जानते हैं इसके बीच का अंतर
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क्यों मनाई जाती है सावन शिवरात्रि?
सावन माह की कृष्ट पक्ष चतुर्दशी तिथि को पड़ने वाली शिवरात्रि को सावन या श्रावण शिवरात्रि कहा जाता है। यह भगवान शिव का प्रिय माह होने के कारण पूरा महीना भगवान शिव की पूजा और व्रत करना फलदायी होता है। ऐसे में सावन माह की शिवरात्रि का धार्मिक रूप स महत्व अधिक होता है। साथ ही इससे जुड़ी एक पौराणिक कथा भी है।
समुद्र मंथन के दौरान 14 रत्नों में से पहला रत्न हलाहल विष निकला था, जिसने संसार में हाहाकार मचा दिया था। तब भगवान शिव ने समुद्र मंथन से निकले विष को अपने कंठ में ग्रहण किया और संसार की रक्षा की। फिर सभी देवताओं ने विष के प्रभाव को कम करने के लिए शिव जी को जल, औषधि रूप में बेलपत्र, भांग-धतूरा आदि अर्पित किया था, तब से ही सावन के माह में भगवान शिव पर जलाभिषेक आदि अर्पित करने की परंपरा शुरू हुई। कहते हैं कि इसी परंपरा का पालन करते हुए भक्त सावन माह में कांवड़ यात्रा पर जाते हैं।
महाशिवरात्रि क्या है?
फाल्गुन माह की कृष्ण पक्ष चतुर्दशी को आने वाली शिवरात्रि को महाशिवरात्रि के नाम से जाना जाता है। मान्यता है कि इसी तिथि पर शिव-शक्ति का मिलन हुआ था यानी शिव विवाह हुआ था और महादेव ने अपने वैराग्य को त्याग दिया था। इसलिए इस शिवरात्रि पर शिव-पार्वती की पूजा का विशेष महत्व माना जाता है।
इसके अलावा, फाल्गुन महीने के कृष्ण पक्ष चतुर्दशी तिथि की शिवरात्रि वाले दिन महादेव पहली बार शिवलिंग के रूप में प्रकट हुए थे।
क्या है दोनों में अंतर?



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