धान रोपाई की गजब तकनीक : कम खर्च में होगी बंपर कमाई, ऐसे करें रोपाई

धान रोपाई की गजब तकनीक : कम खर्च में होगी बंपर कमाई, ऐसे करें रोपाई

मानसून का सीजन चल रहा है और इस मानसून सीजन में रिकॉर्ड तोड़ बारिश का दौर भी मध्य प्रदेश में देखने को मिल रहा है. विंध्य में भी जबरदस्त बारिश लगातार हो रही है. शहडोल संभाग में सबसे ज्यादा बड़े रकबे में धान की खेती की जाती है. जिस तरह की बारिश हुई है उसने धान किसानों की बल्ले बल्ले कर दी है, क्योंकि इस बार सब कुछ समय पर हो रहा है. धान की रोपाई का काम भी जोरों पर चल रहा है.

ऐसे में आज हम बात करेंगे धान रोपाई की एक ऐसी विधि के बारे में धान की फसल को ऐसा बना देगा, जिसमें पानी भी कम लगेगा, खाद भी कम लगेगी और पैदावार दूसरे विधि से ज्यादा होगी. इसे धान रोपाई की श्री विधि एसआरआई तकनीक कहा जाता है.

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धान रोपाई की श्री विधि तकनीक

शहडोल संभाग में इन दिनों धान की नर्सरी ट्रांसप्लांट जिसे रोपा लगाना भी कहते हैं जोरों पर चल रहा है, क्योंकि संभाग में सबसे ज्यादा बड़े रकबे में धान की खेती की जाती है. छत्तीसगढ़ से लगा हुआ इलाका है लेकिन मध्य प्रदेश के इस इलाके में भी धान की अच्छी खासी खेती होती है. छोटा-बड़ा हर किसान मानसून सीजन में धान की खेती करता है.

ऐसे में इन किसानों के लिए धान रोपाई करते समय श्री विधि बड़ा काम आ सकती है. ये धान की खेती करने का एक तरीका है जिसमें कुछ बातों का ख्याल रखना होता है. धान रोपाई की श्री विधि का पूरा नाम है सिस्टम ऑफ राइस इंटेंसिफिकेशन यानि एसआरआई है. इस विधि में कम लागत, कम पानी कम बीज का उपयोग करके बंपर पैदावार ली जा सकती है.

धान लगाने की इस विधि की खोज सबसे पहले अफ्रीकी देश मेडागास्कर में 80 के दशक में की गई थी. वहीं इस विधि से पहली बार धान का बंपर उत्पादन भी किया गया था. धान रोपाई की इस तकनीक की खोज फादर हेनरी लाउलेनी ने की थी. धान उगाने की ये एक ऐसी तकनीक है जिसमें पानी कम लगता है, धान की पैदावार दूसरे विधि से ज्यादा होती है, लागत में भी काफी बचत होती है. बस एक बात का ध्यान रखना होता है कि पौधों की जड़ों में नमी बराबर बनी रहे. ऐसे में सिंचाई का साधन होना जरूरी है क्योंकि इस तकनीक में जब जमीन पर दरारें पड़ने लगती हैं उसके बाद सिंचाई करनी होती है. इसलिए कभी भी पानी की जरूरत पड़ सकती है.

श्री विधि भारत में सबसे पहले कहां?

कृषि वैज्ञानिक डॉ बी के प्रजापति बताते हैं कि "श्री विधि से 80 के दशक में मेडागास्कर में इसकी खेती की गई थी और हमारे
देश भारत में सबसे पहले तमिलनाडु में श्री विधि से धान की खेती की गई थी, और उसके बाद से धीरे धीरे भारत के कई राज्यों में फैल गई. हालांकि हमारे देश में ज्यादातर किसानों ने धान रोपाई की इस श्री तकनीक को अपने जरुरत के हिसाब से मॉडिफाई भी कर लिया है. जैसे इसमें नर्सरी ट्रांसप्लांट के लिए एक समय दिया गया है, जिसे किसान आगे पीछे जरूरत के हिसाब से कर लेता है, इसके लिए एक-एक पौधा लगाने की दूरी भी तय की गई है. उसे भी किसान जरूरत के हिसाब से आगे पीछे कर लेता है."

श्री विधि से कैसे करें खेती

धान की रोपाई को लेकर कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर बी के प्रजापति बताते हैं कि "श्री विधि से मुख्य रूप से धान की खेती ऑर्गेनिक मतलब जैविक खेती करना होता है. हालांकि हमारे यहां पूरी तरह से श्री विधि नहीं बल्कि मॉडिफाई श्री विधि से खेती की जाती है. श्री तकनीक से धान की खेती की बात करें तो श्री विधि से जब आप धान की खेती करते हैं तो इसके लिए आपको 5 किलो बीज एक हेक्टेयर रकबे के लिए जरूरत होती है. धान की किस्मों का सेलेक्शन आप अपने खेतों के आधार पर कर सकते हैं. जैसे हल्की मिट्टी, भारी भूमि, मिट्टी किस तरह की है, उसके आधार पर धान के किस्म का चयन कर लें जैसा धान की खेती में दूसरे विधियों में करते हैं."

खेती करते समय इन बातों का रखें ध्यान

कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर बी के प्रजापति बताते हैं कि "श्री तकनीक में हमें ये ध्यान रखना होता है कि 8 से 14 दिन की नर्सरी जब हमारी तैयार हो जाए तो हमें इसे दूसरे खेतों में ट्रांसप्लांट करना होता है, जिसे रोपा लगाना भी कहते हैं. श्री विधि के अंतर्गत जो सबसे नन्हा पौधा होता है, 8 से 15 दिन का उसे एक हील में लगाना होता है और जो पौधे से पौधे की दूरी होती है, वो 25 सेंटीमीटर रखनी होती है, मतलब लगभग 10 इंच.

आसान भाषा में बोलें तो लाइन से लाइन 10 इंच हो गया और पौधे से पौधे की दूरी जो है वो भी 10 इंच की हो गई. दूसरी चीज हमें ये ध्यान रखना होता है कि भूमि में हमेशा पानी भरककर नहीं रखना होता है. इसको ड्राइंग और वेटिंग पद्धति से हमें पानी भरना होता है. मतलब 2 सेंटीमीटर लगातार पानी भरकर के रखना होता है. उसके बाद पानी को खेत में एक सिस्टम से रोटेट करना होता है."

कोनो वीडर का करें इस्तेमाल

खरपतवार कंट्रोल के लिए कोनो वीडर इस्तेमाल कर सकते हैं, क्योंकि आपने जो नर्सरी ट्रांसप्लांट की है वो तो पौधे से पौधे की दूरी लाइन से लाइन की दूरी 25 सेंटीमीटर बनाकर रखी है. ये पर्याप्त स्पेस होता है तो उनके बीच जब हम कोनो वीडर चलाते हैं तो उसके माध्यम से एक तो पौधे के आसपास खरपतवार खत्म हो जाते हैं और ये जो पौधे के साथ खरपतवार की प्रतिस्पर्धा पानी के लिए न्यूट्रिशन के लिए होती है तो खरपतवार भूमि में मिक्स हो जाते हैं. वो खाद बन जाते हैं तो फसल के लिए पोषक तत्व का काम करते हैं.

श्री विधि में इन बातों का रखें ख्याल

श्री विधि में हमें ये भी ध्यान रखना होता है, कि हमारे यहां पानी की समुचित व्यवस्था हो, भूमि जो है हमारी उबड़ खाबड़ न हो, समतल जमीन हो, मुख्य रूप से श्री विधि जैविक खेती के लिए उपयोग किया जाता है परंतु ये सभी चीजें हमारे किसान नहीं कर पाते हैं. किसान अपनी आवश्यकता अनुसार थोड़ी मॉडिफाई कर लेते हैं. हो सकता है खेत में पानी नहीं है तो किसान कई बार 15 दिन से ऊपर की नर्सरी लगाता है या दूरी 25 की बजाय 20 कर लेता है.

श्री तकनीक से अगर अच्छे से आप खेती करना चाहते हैं तो खेत की तैयारी करते समय करीब 70 क्विंटल तक गोबर खाद प्रति एकड़ के हिसाब से मिक्स कर दें. श्री तकनीक से जब नर्सरी ट्रांसप्लांट करें तो खेत को गीला रखें. श्री विधि में एक बार में एक ही पौधा लगाएं. बारिश न हो मिट्टी में दरार आए तो सिंचाई जरूर कर दें नहीं तो नुकसान हो जाएगा.

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श्री विधि से कितना उत्पादन

श्री तकनीक से धान की खेती करने से आखिर कितना ज्यादा उत्पादन मिल सकता है. इसे लेकर कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर बी के प्रजापति बताते हैं कि "श्री तकनीक से सारे नियम फॉलो करके अगर खेती की जाए तो किसान को बंपर उत्पादन मिलेगा, लगभग 50 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उत्पादन किसान ले सकता है. अगर सही तरीके से इस तकनीक से खेती करे तब. जब आप नॉर्मल तरीके से धान की खेती करते हैं तो धान में 5 से 8 कल्ले ही आते हैं लेकिन श्री विधि से खेती करने पर 40 से 50 तक कल्ले आ सकते हैं. कभी कभी तो उससे भी ज्यादा कल्ले आ जाते हैं. परंपरागत खेती से ज्यादा उपज श्री विधि से खेती में मिलती है."

लागत कैसे बचेगी?

श्री तकनीक से धान की खेती ज्यादातर जैविक तरीके से की जाती है तो इसी में सबसे ज्यादा लागत बच जाएगी. रासायनिक खाद, महंगे कीटनाशक और फिर उसे खेतों में डलवाने के लिए मजदूर सबमें पैसा बचेगा, दूसरे खेती के लिए ज्यादा बीज नहीं लगेगी, ज्यादा पानी नहीं लगेगा तो खेती में लागत कम लगेगी.

 








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