सुहागिन महिलाएं भाद्रपद महीने में इस दिन रखेंगी हरतालिका तीज का व्रत,जानें पूरी पूजन विधि

सुहागिन महिलाएं भाद्रपद महीने में इस दिन रखेंगी हरतालिका तीज का व्रत,जानें पूरी पूजन विधि

 नई दिल्ली :  वैवाहिक जीवन में सुख और समृद्धि के साथ पति की दीर्घ आयु के लिए भाद्रपद महीने में हरतालिका तीज का पर्व आ रहा है। शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को यह व्रत भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा के साथ किया जाएगा। इस साल हरतालिका तीज की तिथि 25 अगस्त को दोपहर 12:34 बजे से शुरू होगी और 26 अगस्त को दोपहर 1:54 बजे तक रहेगी। इस तरह उदया तिथि के अनुसार हरतालिका तीज का व्रत 26 अगस्त को रखा जाएगा।

इस दिन सुहागिन महिलाएं पति की की दीर्घ आयु के लिए और कुंवारी कन्याएं मनचाहे वर की कामना से इस व्रत को करेंगी। हरतालिका तीज का व्रत निर्जला रखा जाता है। इस वजह से इसे भी बड़ा कठिन व्रत माना जाता है। 

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हरतालिका का जानिए अर्थ

हरतालिका शब्द, हरत और आलिका से मिलकर बना है। इसमें हरत का मतलब अपहरण करना और आलिका का अर्थ सहेली होता है। हरतालिका तीज की कथा के अनुसार पर्तवराज हिमालय अपनी बेटी पार्वती का विवाह भगवान विष्णु से करना चाहते थे। 

मगर, माता पार्वती इस विवाह के विरुद्ध थीं क्योंकि वह भगवान भोलेनाथ को अपना पति मान चुकी थीं। ऐसे में माता पार्वती की सहेलियों ने उनका अपहरण कर उन्हें जंगल में छिपा दिया था, जहां उन्होंने शिवलिंग बनाकर शिवजी को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए कठिन तपस्या की थी। 

पूजन की ऐसे करें तैयारी 

इस व्रत में गौरी शंकर की मिट्टी की प्रतिमा बनाई जाती है। व्रत के दिन, ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें और साफ कपड़े पहनें। इसके बाद व्रत का संकल्प लेने के लिए "उमामहेश्वरसायुज्य सिद्धये हरितालिका व्रतमहं करिष्ये" मंत्र का उच्चारण करें। 

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घर के पूजा स्थल की सफाई करने के बाद चौकी पर लाल या पीला वस्त्र बिछाएं। चौकी पर भगवान शिव, माता पार्वती और गणेश जी की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें। 

महिलाएं 16 श्रृंगार करके तैयार हों। इसके बाद पूजा के लिए धूप, दीप, चंदन, अक्षत, फूल, फल, पान, सुपारी, कपूर, नारियल, बेलपत्र, शमी पत्र आदि भगवान को अर्पित करें। 

इसके बाद कलश स्थापना करें और उस पर जल, आम के पत्ते, और नारियल रखें। शिव परिवार को गंगाजल से स्नान कराएं। धूप, दीप जलाएं और आरती करें। हरतालिका तीज की कथा सुनें। 

रात को भजन-कीर्तन करें और जागरण करें। अगले दिन सुबह, माता पार्वती को सिंदूर चढ़ाने के बाद व्रत का पारण करें।








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