कृष्ण जन्माष्टमी हिंदू धर्म का एक अत्यंत पावन और आनंदमय पर्व है, जिसे पूरे देश में भक्तिभाव और उल्लास के साथ मनाया जाता है। भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को भगवान विष्णु के आठवें अवतार, श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था।
इस शुभ अवसर पर जगत के पालनहार भगवान कृष्ण का जन्मोत्सव मनाया जाता है। भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि यानी कृष्ण जन्माष्टमी के दिन मंदिरों में झांकियां सजती हैं, घर-घर में भजन-कीर्तन गूंजते हैं और आधी रात को श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव हर्षोल्लास से मनाया जाता है।
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परंपरा के अनुसार, जन्माष्टमी दो दिन मनाई जाती है। पहले दिन साधु-संन्यासी और स्मार्त संप्रदाय, तथा दूसरे दिन वैष्णव संप्रदाय और ब्रजवासी इस पावन पर्व को मनाते हैं। इस वर्ष भी यह उत्सव दो दिनों तक आस्था और प्रेम के साथ मनाया जाएगा। आइए, इसके बारे में सबकुछ जानते हैं-
जन्माष्टमी 2025 कब है?
पंचांग के अनुसार, भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 15 अगस्त 2025 को रात 11:49 बजे आरंभ होकर 16 अगस्त की रात 9:34 बजे तक रहेगी। उदया तिथि के अनुसार, 16 अगस्त को मुख्य जन्माष्टमी होगी। अतः 15 अगस्त को स्मार्त संप्रदाय के लोग पूजन करेंगे, जबकि 16 अगस्त को वैष्णव संप्रदाय और ब्रजवासी श्रीकृष्ण जन्मोत्सव मनाएंगे।
जन्माष्टमी पूजा विधि
आरती कुंजबिहारी की
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की।।
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की।।
गले में बैजंती माला,बजावै मुरली मधुर बाला।
श्रवण में कुण्डल झलकाला,नंद के आनंद नंदलाला।
गगन सम अंग कांति काली,राधिका चमक रही आली।
लतन में ठाढ़े बनमाली;भ्रमर सी अलक, कस्तूरी तिलक,
चन्द्र सी झलक;ललित छवि श्यामा प्यारी की॥
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥
आरती कुंजबिहारी की श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥
कनकमय मोर मुकुट बिलसै,देवता दरसन को तरसैं।
गगन सों सुमन रासि बरसै;बजे मुरचंग, मधुर मिरदंग,
ग्वालिन संग;अतुल रति गोप कुमारी की॥
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥
आरती कुंजबिहारी की श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥
जहां ते प्रकट भई गंगा,कलुष कलि हारिणि श्रीगंगा।
स्मरन ते होत मोह भंगा;बसी सिव सीस, जटा के बीच,
हरै अघ कीच;चरन छवि श्रीबनवारी की॥
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥
आरती कुंजबिहारी की श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥
चमकती उज्ज्वल तट रेनू,बज रही वृंदावन बेनू।
चहुं दिसि गोपि ग्वाल धेनू;हंसत मृदु मंद,चांदनी चंद,
कटत भव फंद;टेर सुन दीन भिखारी की॥
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की॥
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